मुंबई : पाकिस्तानी हस्तियों का विरोध करते हुए शिव सेना ने सोमवार को पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की किताब के विमोचन का विरोध किया. इस मामले ने आज भी मीडिया में जगह बनायी हुई है. मंगलवार को शिव सेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए इस कार्यक्रम से जुड़े ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सुधींद्र कुलकर्णी पर फिर हमला किया है. शिवसेना ने कालिख पोतने वालों को राष्ट्रभक्त बताया है.
सामना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा गया है कि भावुक मुंबईकर की भावना कल छलकर सामने आई जिसका सम्मान किया जाना चाहिए. यदि आगे भी इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है तो मुंबई में इसका विरोध किया जाएगा. सामना ने लिखा है कि 100 कसाब मिलकर वह काम नहीं कर सकते जो एक कुलकर्णी नामक फिसड्डी बम ने कर दिया है. यह देश के शहीदों का अपमान है.
सुधीन्द्र कुलकर्णी के चेहरे पर कालिख पोतने पर हो रही आलोचनाओं से अप्रभावित शिवसेना ने आज इस मसले पर एक कदम आगे बढकर उन्हें मुम्बई पर 26/11 आतंकी हमले के दोषी अजमल कसाब से जोडते हुए कहा कि भारत को आतंकवादियों से उतना खतरा नहीं है जितना इनके जैसे लोगों से है. शिवसेना ने कहा कि वह पाकिस्तान के खिलाफ अपने रुख में कोई बदलाव नहीं करेगा, चाहे उसकी जितनी भी आलोचना हो और उसे बदनाम किया जाए. शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में कहा गया है कि, ‘‘ जैसे ही सुधीन्द्र कुलकर्णी के चहरे पर स्याही पोती गई, उन्होंने तत्काल अपनी फोटो सोशल नेटवकि’ग साइट पर डाल दी और आरोप लगाया कि इस हमले के पीछे शिवसेना है.
हम उनके आरोपों से सहमत हैं. देशभक्त होना और देश की सुरक्षा करना महाराष्ट्र का काम है और हम अपना काम कर रहे हैं.” उन्होंने कहा, ‘‘ देश की सम्प्रभुता के समक्ष वास्तविक खतरा उग्रवादियों या आतंकवादियों के कारण नहीं है बल्कि कुलकर्णी जैसे लोगों से है. इनके जैसे लोग हमारे देश का गला काटने पर उतारु हैं. जब उनके जैसे लोग यहां मौजूद हों, तब पाकिस्तान को आतंकवादी गतिविधियों के लिए कसाब जैसे लोगों को भेजने की जरुरत नहीं है.”
इधर, शिवसेना कसूरी के मसले पर बीजेपी से नाराज चल रही है. सूत्रों के मुताबिक कसूरी के बुक लॉन्च के मौके पर सुरक्षा के तगड़े इंतजाम किए गए थे और यह बात शिवसेना को रास नहीं आ रही है. शिवसेना का यह भी आरोप है कि गठबंधन सरकार के बावजूद मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस फैसले अकेले लेते हैं. इस वजह से दोनों पार्टियों में दरार आ सकती है और शिवसेना सरकार से बाहर होने का फैसला ले सकती है.