नयी दिल्ली : आंध्रप्रदेश के विभाजन के सरकार के फैसले को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक बताते हुए सीमांध्र के कांग्रेस सांसद एल राजगोपाल ने आज कहा कि वह इस कदम को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगे. उन्होंने कहा कि राज्य के विभाजन का फैसला संविधान के ढांचे और संघीय सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.
राजगोपाल ने कहा कि आंध्रप्रदेश की आबादी का बड़ा हिस्सा राज्य के विभाजन के विरोध में है. उन्होंने कहा कि जब इस बारे में प्रस्ताव राज्य विधानसभा में पेश किया जाएगा तो हम सुनिश्चित करेंगे कि यह नामंजूर हो जाए. उन्होंने कहा मैं आंध्रप्रदेश को विभाजित करने के केंद्र सरकार के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दूंगा.
सीमांध्र से आने वाले नेताओं और मंत्रियों के कड़े विरोध के बावजूद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कल आंध्रप्रदेश से अलग कर तेलंगाना राज्य बनाने के फैसले पर आगे बढ़ने का निर्णय किया.
राजगोपाल ने कहा कि किसी राज्य के विभाजन का जब सवाल आए तो उसके बारे में स्पष्ट दिशानिर्देश होना चाहिए. उन्होंने वर्ष 1994 के एस आर बोम्मई बनाम भारत सरकार के मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले का संदर्भ दिया जिसमें उच्चतम न्यायालय ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए अनुच्छेद 356 का उपयोग करने के संबंध में कड़े दिशानिर्देश तय किए थे.
उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामलों में राज्य के विभाजन का फैसला केंद्र की इच्छा जनता पर थोपने के अलावा और कुछ नहीं होता और यह संघीय सिद्धांतों के खिलाफ है. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री पल्लम राजू और फिल्मों से राजनीति में आने के बाद पर्यटन मंत्री बनाए गए चिरंजीवी ने कल रात मंत्रिमंडल के फैसले के विरोध में पद छोड़ने की पेशकश की थी.
चिरंजीवी के निजी सहायक ने बताया कि उन्होंने अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री कार्यालय को फैक्स कर दिया है. राजू ने भी इस्तीफा दे दिया है. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में यह भी तय किया गया कि हैदराबाद 10 साल तक दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी रहेगा.