नयी दिल्ली: कानून मंत्री डी वी सदानंद गौडा का कहना है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अभिन्न अंग नहीं है. इसके साथ ही उन्होंने उन आशंकाओं को खारिज कर दिया कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कार्यपालिका के पक्ष में झुका हुआ है.
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कालेजियम के अस्तित्व में नहीं होने के बावजूद नियुक्तियों में न्यायपालिका की प्रधानता हमेशा होगी. उन्होंने कहा, न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अभिन्न अंग नहीं है. न्यायाधीशों की नियुक्ति कार्यपालिका का कार्य है क्योंकि कार्यकारी आदेश के जरिए आदेश जारी किए जाएंगे.
उन्होंने पीटीआई के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ह्यह्य यह विभिन्न चरणों से गुजरता है और प्रधानमंत्री तक जाता है. अंतत: राष्ट्रपति कार्रवाई करेंगे. इसलिए, यह कोई न्यायिक आदेश नहीं होगा, यह कार्यपालिका का कार्य होगा. गौडा की टिप्पणी एनजेएसी कानून की वैधता पर उच्चतम न्यायालय में चल रही सुनवाई के बीच आयी है जिसमें केंद्र ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की कालेजियम प्रणाली पर हमला बोला है. केंद्र ने कहा है इसने प्रतिभा के सिद्धांत का पालन नहीं किया जिससे कई अयोग्य लोग न्यायाधीश बन गए.
गौडा ने उन आशंकाओं के बारे में पूछे गए सवाल पर भी प्रतिक्रिया व्यक्त की कि दो दशक से ज्यादा समय से चली आ रही कालेजियम प्रणाली के समाप्त होने का मतलब न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायपालिका की प्रधानता की समाप्ति होगी.
गौडा ने कहा, न्यायपालिका की प्रधानता छीन लेना ….सवाल ही पैदा नहीं होता. उसके अलावा मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि एनजेएसी का गठन इस तरीके से किया गया है कि कार्यपालिका की जिम्मेदारी काफी कम है. वहां सरकार का सिर्फ एक सदस्य (कानून मंत्री) है. उन्होंने कहा, न्यायपालिका की प्रधानता कायम है क्योंकि इसकी अध्यक्षता देश के प्रधान न्यायाधीश करेंगे और उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश सदस्य हैं. दो प्रख्यात लोगों का चयन प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा. कालेजियम प्रणाली के तहत प्रधान न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय और 24 उच्च न्यायालयों के लिए न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश करते हैं. सरकार उनकी सिफारिश को सिर्फ एक बार पुनर्विचार के लिए लौटा सकती है.
आयोग में शामिल दो प्रख्यात लोगों के फैसलों को सरकार के पक्ष मे करने संबंधी विचार के बारे में पूछे जाने पर कानून मंत्री ने कहा कि आयोग में प्रख्यात लोगों की सिफारिश करने वाले प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश और विपक्ष के नेता ह्यह्य तीन विभिन्न दिशाओं से होते हैं.
उन्होंने कहा, ह्यह्य लोकतंत्र में किसी भी समय, विपक्ष और सत्तारुढ पार्टी एक साथ आयी है, इतिहास में कहीं भी नहीं. न्यायपालिका यह नहीं कह सकती कि विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री हाथ मिला लेंगे. यह धरती पर काफी मुश्किल है.
उन्होंने कहा, ह्यह्य इसलिए दो प्रख्यात लोगों का चयन भी ऐसे तरीके से किया जाना है जो पूरी तरह से पारदर्शी हो और यह पक्षपाती नहीं बनाया जा सकता तथा यह एकतरफा कार्रवाई नहीं हो सकती. प्रधान न्यायाधीश आयोग की अध्यक्षता करेंगे और वहां वीटो का अधिकार भी है. इसलिए कोई वैसी बात नहीं कह सकता।ह्णह्ण जारी
प्रख्यात व्यक्ति श्रेणी के दायरे में लोगों के आने के मापदंड के बारे में कानून मंत्री गौडा ने कहा कि चयन समिति की बैठक में, हर कोई इस प्रावधान के बारे में सुझाव दे सकते हैं कि कौन प्रख्यात व्यक्ति हो सकते हैं.
उन्होंने कहा कि मापदंड और अन्य बातों पर भी समिति में चर्चा हो सकती है. यह उसी प्रकार पारदर्शी है जिस प्रकार संसद में चर्चा होती है. उन्होंने देश के 24 उच्च न्यायालयों में 350 से ज्यादा रिक्तियां होने पर भी चिंता जतायी. रिक्तियों की संख्या में वृद्धि का एक कारण यह भी है कि सरकार ने हाल ही में उच्च न्यायालयों में पदों की संख्या में 25 प्रतिशत की वृद्धि की है.
गौडा ने कहा, लेकिन हमने सोचा कि जैसे ही एनजेएसी का गठन होगा, रिक्तियां तत्काल दूर हो जाएंगी. लेकिन एनजेएसी कानून न्यायिक जांच के तहत है, इसलिए कुछ देर हो रही है. मैं स्वीकार करता हूं. लेकिन हमने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया है कि कुछ अतिरिक्त न्यायाधीशों के कार्यकाल की अवधि में विस्तार किया जाए. उन्होंने उनके कार्यकाल में तीन महीने का विस्तार किया है.
उन्होंने कहा, ह्यह्य रिक्तियों को भरा जाएगा. इनमें बढी हुयी 25 प्रतिशत संख्या शामिल हैं. मामला के निपटारे तक रिक्तियां जारी रहेंगी। निश्चित रुप से. जब तक उच्चतम न्यायालय अपना फैसला नहीं दे देता, हम आगे बढने की स्थिति में नहीं हैं.