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लिंग अनुपात में कमी के बावजूद, बालिका भ्रूण हत्या के लिए दोषसिद्धि दुर्लभ

नयी दिल्ली: भारत के बाल लिंग अनुपात में कमी आने के बावजूद कम से कम 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में वर्ष 2011 से 2013 के बीच पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व लिंग जांच के लिए एक भी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जिससे पीसीपीएनडीटी कानून का सही तरीके से कार्यान्वयन न होने को […]

नयी दिल्ली: भारत के बाल लिंग अनुपात में कमी आने के बावजूद कम से कम 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में वर्ष 2011 से 2013 के बीच पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व लिंग जांच के लिए एक भी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जिससे पीसीपीएनडीटी कानून का सही तरीके से कार्यान्वयन न होने को लेकर चिंता होती है.

पांच राज्यों में बाल लिंग अनुपात की बदतर स्थिति है. ये राज्य दमन और दीव (प्रति 1000 लडकों पर 618 लडकियां), दादरा और नगर हवेली (775 लडकियां), चंडीगढ (818 लडकियां), दिल्ली (866 लडकियां) और अंडमान तथा निकोबार द्वीपसमूह (878 लडकियां) हैं और यहां 2011 से 2013 के बीच गर्भस्थ शिशु के लिंग परीक्षण के लिए एक भी व्यक्ति को सजा नहीं दी गई.

पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसीपीएनडीटी) कानून 1994 बालिका भ्रूण हत्या रोकने और गर्भस्थ शिशु के लिंग परीक्षण पर प्रतिबंध लगा कर लिंग अनुपात में अंतर को समाप्त करने के लिए लागू किया गया था.भारत में वर्ष 2001 में प्रति 1000 लडकों पर 927 लडकियां थीं लेकिन 2011 में स्थिति बदतर हो गई जब लिंग अनुपात प्रति 1000 लडकों पर 918 लडकियां हो गया। लेकिन ऐसा प्रतीत नहीं होता कि बालिका भ्रूण हत्या को रोकने के उद्देश्य से पीसीपीएनडीटी कानून का कडा कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए बहुत प्रयास किए गए हों.
स्वास्थ्य मंत्रालय के पास उपलब्ध आंकडों के अनुसार, वर्ष 2011 से 2013 के बीच गर्भस्थ शिशु का लिंग परीक्षण कराने के 563 मामलों की खबर आई लेकिन पूरे देश में केवल 32 व्यक्तियों को सजा दी गई.

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