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बाबरी प्रकरण : अक्तूबर में होगी सुनवाई

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में विवादित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद ढांचा गिराने की घटना के सिलसिले में लालकृष्ण आडवाणी और 19 अन्य के खिलाफ लंबित मामले की सुनवाई पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से दो महीने पहले करने का निश्चय किया है. सीबीआई ने इस मामले की अक्तूबर में सुनवाई कराने का अनुरोध किया […]

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में विवादित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद ढांचा गिराने की घटना के सिलसिले में लालकृष्ण आडवाणी और 19 अन्य के खिलाफ लंबित मामले की सुनवाई पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से दो महीने पहले करने का निश्चय किया है. सीबीआई ने इस मामले की अक्तूबर में सुनवाई कराने का अनुरोध किया जिसका वरिष्ठ भाजपा नेता ने विरोध नहीं किया.

न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष सीबीआई ने इस मामले का उल्लेख किया. यह मामला पहले दिसंबर में सुनवाई के लिये सूचीबद्ध था जिसे न्यायालय ने अब अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया.

केंद्रीय जांच ब्यूरो ने इस मामले में आडवाणी और 19 अन्य के खिलाफ साजिश का आरोप खत्म करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दे रखी है. जांच ब्यूरो की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी पी राव ने कहा कि पहले इस मामले को सितंबर में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया था लेकिन रजिस्टरी के रिकार्ड के अनुसार शीर्ष अदालत दिसंबर में इस पर विचार करेगी.

आडवाणी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल इस मामले की पहले सुनवाई कराने के लिये तैयार हो गये. शीर्ष अदालत ने इससे पहले उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने में विलंब के लिये सीबीआई को आड़े हाथ लिया था.सीबीआई ने उच्च न्यायालय के 21 मई, 2010 के निर्णय को चुनौती दी है. उच्च न्यायालय ने इन नेताओं के खिलाफ साजिश का आरोप खत्म करने के विशेष अदालत के निर्णय को सही ठहराया था.

विशेष अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, मुरली मनोहर जोशी, सतीश प्रधान, सी आर बंसल, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, साध्वी रितंभरा, विष्णु हरि डालमिया, महंत अवैद्यनाथ, आर वी वेदांति, परमहंस राम चंद्र दास, जगदीश मुनि महाराज, बैकुण्ठ लाल शर्मा, नृत्य गोपाल दास,धरम दास, सतीश नागर और मोरेश्वर सावे के खिलाफ आपराधिक साजिश का आरोप खत्म कर दिया था. इस निर्णय को उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था. इस मामले से बाल ठाकरे का नाम उनकी मृत्यु के बाद हटा दिया गया था.

उच्च न्यायालय ने उस समय सीबीआई को रायबरेली की अदालत में आडवाणी और अन्य के खिलाफ दूसरे आरोपों में कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी थी. उच्च न्यायालय ने विशेष अदालत के चार मई, 2001 के फैसले के खिलाफ सीबीआई की पुनरीक्षण याचिका पर अपने निर्णय में कहा था कि इसमें कोई दम नहीं है.

इस प्रकरण में दो मामले हैं. एक में आडवाणी और दूसरे वे लोग शामिल हैं जो अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराये जाते वक्त राम कथा कुंज के मंच पर विराजमान थे जबकि दूसरा मामला उन अज्ञात कार सेवकों के खिलाफ है जो विवादित ढांचे के आसपास थे.

जांच ब्यूरो ने आडवाणी और 20 अन्य के खिलाफ दाखिल आरोप पत्र में भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए (वर्गो के बीच कटुता पैदा करना) धारा 153-बी (राष्ट्रीय अखंडता को खतरा पैदा करने वाले कृत्य करना) और धारा 505 (लोक शांति भंग करने के इरादे से मिथ्या बयान और अफवाह फैलाना) के तहत आरोप लगाये गये थे.

जांच ब्यूरो ने बाद में भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) का आरोप भी लगाया था जिसे विशेष अदालत ने निरस्त कर दिया था.

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