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सोना गिरवी रखेगी सरकार!

चालू खाता घाटा का दबाव कम करने के लिए सरकार सोना गिरवी रखने का विचार कर रही है. केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने जी न्यूज से कहा कि 31000 टन स्वर्ण भंडार में से 500 टन सोना गिरवी रख दिया जाये, तो चालू खाता घाटा नियंत्रित हो जायेगा. शर्मा ने कहा कि […]

चालू खाता घाटा का दबाव कम करने के लिए सरकार सोना गिरवी रखने का विचार कर रही है. केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने जी न्यूज से कहा कि 31000 टन स्वर्ण भंडार में से 500 टन सोना गिरवी रख दिया जाये, तो चालू खाता घाटा नियंत्रित हो जायेगा. शर्मा ने कहा कि 31 मार्च तक विदेशी मुद्रा की खरीद और बिक्री का अंतर 88 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है, जो हमारी जीडीपी का 4.8% है. वर्ष 2011-12 में यह 4.2} था. कहा कि चालू खाता घाटा की वजह से रुपये पर दबाव है और वह लगातार गिररहा है.

इससे पहले सोमवार की रात को कांग्रेस की महत्वाकांक्षी खाद्य सुरक्षा बिल लोकसभा से मंजूर होने के अगले दिन मंगलवार सुबह शेयर बाजार और रुपया दोनों धराशायी हो गये. डॉलर के मुकाबले रुपया 194 पैसे की अब तक की सबसे बड़ी गिरावट के साथ अपने न्यूनतम स्तर 66.24 पर आ गया. शेयर बाजार का सेंसेक्स तीन 590 अंक गिर कर 18 हजार के स्तर से नीचे खिसक गया. निफ्टी में 189 अंक तक गिर गया. हालांकि, सोना में 1859 और चांदी में 3208 रुपये की जबरदस्त तेजी दर्ज की गयी. विशेषज्ञ मानते हैं कि 1.25 लाख करोड़ रुपये के खाद्य सुरक्षा बिल को मंजूरी से वित्तीय घाटा बढ़ने की आशंका से बाजार सहम गया है. हालांकि, कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि इस वित्तीय वर्ष में बिल का असर नहीं पड़ने जा रहा है, क्योंकि खाद्य सुरक्षा अभी लागू नहीं हुआ है.

घरेलू कारण भी जिम्मेदार:चिदंबरम

वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने राज्यसभा में विश्वास जताया कि रुपया अपने उचित स्तर को पुन: प्राप्त कर लेगा. कहा : हम मानते हैं कि केवल बाहरी कारण ही नहीं, घरेलू कारण भी हैं. इनमें से एक कारण यह है कि हमने राजकोषीय घाटे को सीमा तोड़ने दिया और चालू खाते का घाटा भी बढ़ने दिया गया. ऐसा 2009 और 2011 के दौरान किये गये कुछ फैसलों के कारण हुआ.’ चिदंबरम के अनुसार, यह वह अवधि थी, जब सरकार ने पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं के लड़खड़ाने से उत्पन्न वैश्विक परिस्थितियों के असर से घरेलू अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए कुछ राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेजों की घोषणा की थी. इससे अर्थव्यवस्था स्थिर हुई और वृद्धि दर में सुधार हुआ. लेकिन, इसका नतीजा हमारे सामने राजकोषीय घाटे और चालू वित्त घाटे के रूप में आया.’ सरकार ने राजकोषीय घाटे पर अंकुश के लिए कदम उठाये हैं और देश राजकोषीय स्थिति मजबूत करने की ओर बढ़ रहा है. वित्त मंत्री ने कहा कि अगस्त, 2012 से मई, 2013 के बीच विनिमय दर स्थिर थी, लेकिन 22 मई के बाद से रुपया दबाव में है.

गिरते रुपये से कम होता निवेश

प्रो अरुण कुमार,अर्थशास्त्री

एक ओर डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट का दौर थमता नहीं दिख रहा है, तो दूसरी ओर अर्थव्यव्यवस्था को पटरी पर लाने के सरकार के आधे-अधूरे कदमों का भी असर नहीं हो रहा है. हालत यह है कि आज एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 66 से भी अधिक हो गयी है. शेयर बाजार लुढ़क रहा है. सुधार के लक्षण भी नहीं दिख रहे. ऐसे अनिश्चित माहौल में निवेश का प्रभावित होना तय है. भ्रष्टाचार के मामलों के कारण विदेशी निवेशकों का भरोसा पहले से ही बाजार में कम है. देश की मौजूदा आर्थिक हालात के लिए विदेशी और घरेलू दोनों कारण जिम्मेदार हैं. इधर, काफी समय बाद अमेरिका और यूरोपीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिख रहे हैं, तो भारतीय अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है. आर्थिक विकास दर लगातार कम हो रहा है. आद्योगिक विकास दर सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. विकास दर में अहम हिस्सेदारी निभाने वाले सेवा क्षेत्र की स्थिति भी अच्छी नहीं है. लेकिन मॉनसून अच्छी होने के कारण कृषि क्षेत्र की स्थिति बेहतर रहने की उम्मीद है. लेकिन, कृषि क्षेत्र से विकास दर में वृद्धि नहीं होगी.

संभव है विकास दर और कम हो. मौजूदा समय में चालू खाते का घाटा काफी अधिक है. यह लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में अमेरिकी और यूरोपीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत मिलते ही विदेशी पूंजी वहां जाने लगी और इससे शेयर बाजार कमजोर हुआ. शेयर बाजार में गिरावट से रुपया लगातार गिर रहा है. आज हमारा विदेशी कर्ज 380 बिलियन डॉलर हो गया है, जबकि विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 300 बिलियन डॉलर है. ऐसे में विदेशी मुद्रा भंडार का प्रयोग रुपये की गिरावट को थामने में नहीं किया जा सकता है. आर्थिक-राजनीतिक अनिश्चितता के कारण निवेशक भारत से पैसा निकाल रहे हैं. रुपये में गिरावट निर्यातकों के लिए आर्थिक तौर पर फायदेमंद नहीं होता है और इस कारण विदेशी मुद्रा का प्रवाह कम हो गया है. रुपये में गिरावट के कारण आयात महंगा हो गया है. पेट्रो उत्पादों पर खर्च बढ़ गया है. इससे व्यापार घाटा भी बढ़ रहा है. आयात महंगा हो गया और निर्यात में वृद्धि की तत्काल उम्मीद नहीं है. पहले चालू खाता घाटे को विदेशी निवेश की मदद से नियंत्रण में रखा जाता था, लेकिन अब पूंजी ही नहीं आ रही है. साथ ही पूंजी का प्रवाह विदेशों की ओर हो रहा है. इससे चालू घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है. बाहरी कारणों के साथ ही अर्थव्यव्यवस्था अंदरूनी तौर पर भी कमजोर हुई है. राजकोषीय घाटा कम करने के लिए सरकार खर्च में कटौती कर रही है. जबकि योजनागत खर्च से ही अर्थव्यवस्था को गति मिलती है. निवेश बढ़ता है.

इस वजह से निवेश दर लगातार कम हो रहा है. निवेश बढ़ाने के लिए नियोजित खर्च में बढ़ोतरी करनी होगी. मौजूदा माहौल में निजी क्षेत्र से निवेश की उम्मीद नहीं की जा सकती, लेकिन सरकार रेटिंग घटने के डर से राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए गैर जरूरी कदम उठा रही है. इससे निवेश का माहौल प्रभावित हुआ है. जबकि कुल निवेश में विदेशी निवेश की हिस्सेदारी महज तीन-चार फीसदी ही है. ऐसे में सरकार को घरेलू निवेश बढ़ाने के उपायों पर गौर करना चाहिए. लेकिन, घरेलू निवेश की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं रही है. इसलिए भ्रष्टाचार के अनेकों मामले सामने आये और सरकार नीतिगत स्तर पर फैसले लेने में डरने लगी. 2जी, कोल-गेट इसके उदाहरण हैं. घोटालों के सामने आने से निजी क्षेत्र निवेश करने से घबरा रहा है. यह स्थिति वर्ष 2014 के चुनाव के बाद ही ठीक होने की उम्मीद है. राजनीतिक अनिश्चितता के माहौल में कोई भी निवेश नहीं करना चाहता. ऐसे में मौजूदा संकट से निकलने के लिए सरकारी खर्च को ही बढ़ाना होगा. सरकार को आधारभूत संरचना के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश करना चाहिए, इससे अर्थव्यवस्था में तेजी आयेगी और निवेशकों का भरोसा भारतीय बाजार पर एक बार फिर बढ़ेगा. इसके लिए सरकार को सुस्ती से उबरना होगा.
(बातचीत:विनय तिवारी)

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