नयी दिल्ली: पॉस्को और आर्सेलरमित्तल द्वारा 18 अरब डालर की परियोजनाओं से पीछे हटने के बाद अब घरेलू इस्पात कंपनी मोनेट इस्पात एंड एनर्जी की बारी है. मोनेट झारखंड में अपनी 15 लाख टन के कारखाने की योजना को रद्द करने पर विचार कर रही है.
स्पॉन्ज आयरन एवं बिजली उत्पादक कंपनी मोनेट ने झारखंड में 15 लाख टन सालाना क्षमता का नया संयंत्र लगाने का प्रस्ताव किया है. कच्चे माल, जमीन तथा पानी की उपलब्धता न होने की वजह से अब इस परियोजना से पीछे हटने पर विचार कर रही है. परियोजना रद्द करने के लिए आर्सेलरमित्तल तथा पॉस्को ने भी यही वजह बताई है.
मोनेट इस्पात एंड एनर्जी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (विपणन एवं कंपनी मामले) अमिताभ मुद्गल ने कहा, हां, यह सही है कि हम झारखंड की परियोजना से हटने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. मोनेट इस्पात छत्तीसगढ़ में 15 लाख टन सालाना क्षमता का इस्पात संयंत्र लगा रही है. कंपनी ने 2003 में झारखंड सरकार के साथ एक सहमति ज्ञापन (एमओयू) किया था. इसके तहत कंपनी की हजारीबाग में 500 एकड़ भूमि पर 1,400 करोड़ रपये के निवेश से डीआआई आधारित 15 लाख टन क्षमता का इस्पात संयंत्र लगाने की योजना है.
मोनेट की परेशानी भूमि अधिग्रहण के मुद्दे के साथ शुरु हुई. एमओयू पर दस्तखत के बाद झारखंड सरकार ने नोडल एजेंसी झारखंड संरचना विकास निगम (जिडको) का गठन किया, जिसे परियोजना के लिए भूमि का अधिग्रहण करना था. मोनेट ने इसके लिए जरुरी राशि जमा करा दी. लेकिन तीन सालन बाद जिडको को भंग कर दिया गया और मोनेट को सीधे खुद ही जमीन करने की हिदायत दी गई.
मुद्गल ने कहा कि हमने हजारीबाग में जमीन का अधिग्रहण शुरु किया. उसके बाद हमें बताया गया कि परियोजना स्थल पर पानी उपलब्ध नहीं है. उसके बाद हमने परियोजना स्थल स्थानांतरित कर बोकारो जिले में चस ब्लाक कर दिया. हमें राज्य सरकार ने भरोसा दिलाया कि दामोदर नदी से पानी उपलब्ध कराया जाएगा.
उन्होंने कहा कि बाद में राज्य सरकार ने सूचित किया कि नदी से पानी उपलब्ध नहीं कराया जा सकेगा. लौह अयस्क के मोर्चे पर कंपनी ने कहा कि इस मामले में भी राज्य सरकार अपने वादे पर नहीं टिकी. मुद्गल ने बताया कि राज्य सरकार ने केंद्र से मोनेट इस्पात को घाटकोरी लौह अयस्क खदान आवंटित करने की सिफारिश की थी. बाद में राज्य सरकार ने यह सिफारिश यह कहते हुए वापस ले ली कि यह क्षेत्र सरकारी कंपनियों के लिए आरक्षित है. मोनेट इस मामले में अदालत भी गई, लेकिन वहां उसे हार का सामना करना पड़ा.
मुद्गल ने हालांकि कहा कि कंपनी ने अभी झारखंड को लेकर उम्मीद पूरी तरह छोड़ी नहीं है. उन्होंने कहा कि यदि झारखंड सरकार हमें पानी और अन्य बातों को लेकर आश्वासन देती है, तो हम इस परियोजना पर अभी भी आगे बढ़ सकते हैं.