12.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

दो साल की सजा,तो सदस्यता रद्द

नयी दिल्ली:संसद और विधानसभाओं को अपराधियों से मुक्त कराने में मददगार होने वाले ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जनप्रतिनिधित्व कानून के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया, जो दोषी ठहराये गये कानून निर्माताओं को हाइकोर्ट में याचिका लंबित होने के आधार पर अयोग्यता से संरक्षण प्रदान करता था. न्यायमूर्ति एके पटनायक और […]

नयी दिल्ली:संसद और विधानसभाओं को अपराधियों से मुक्त कराने में मददगार होने वाले ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जनप्रतिनिधित्व कानून के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया, जो दोषी ठहराये गये कानून निर्माताओं को हाइकोर्ट में याचिका लंबित होने के आधार पर अयोग्यता से संरक्षण प्रदान करता था. न्यायमूर्ति एके पटनायक और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा, इसमें सिर्फ जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) के अधिकारातीत होने का सवाल है.

हम इसे अधिकारातीत घोषित करते हैं. साथ ही दोषी ठहराये जाने की तारीख से ही अयोग्यता प्रभावी होगी. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह फैसला उन सांसदों और विधायकों पर लागू नहीं होगा जिन्होंने इस निर्णय से पहले ही हाइकोर्ट में अपील दायर कर रखी है. यह निर्णय आम आदमी और जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत संरक्षण प्राप्त निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच भेदभाव करने वाला प्रावधान खत्म करता है.

इसे माना गैर कानूनी : सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामले में दोषी ठहराये जाने के बावजूद सांसदों, विधायकों को संरक्षण प्रदान करने वाले कानूनी प्रावधान निरस्त कर दिया है. कोर्ट ने दोषी निर्वाचित प्रतिनिधि की अपील लंबित होने तक उसे पद पर बने रहने की अनुमति देने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान को गैर कानूनी बताया.दाखिल किया हलफनामा केंद्र सरकार ने इस साल की शुरु आत में कहा था कि अदालत से दोषी ठहराए गये सांसद, विधायक को अपील पर अंतिम फैसला होने तक सदन का सदस्य बने रहने की छूट देने वाला कानून सही और जरूरी भी है. सरकार ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) का पक्ष लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर यही दलील दी थी. इन्होंने कहा : कम्युनिस्ट पार्टी के नेता डी राजा ने कहा कि यह फैसला काफी महत्वपूर्ण है. हमें यह देखने के लिए इंतजार करना होगा कि राजनीतिक दल और निर्वाचन आयोग इस मसले को किस तरह लेता है.

162 एमपी पर मामले
एक गैर सरकारी संगठन एडीआर के अनुसार विभिन्न मामलों में 162 वर्तमान सांसदों पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं. इनमें से 76 तो ऐसे मामलों में शामिल हैं जिनमें पांच साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है. इसी तरह 1460 विधायकों पर आपराधिक मामलों में विभिन्न अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं. इनमें से 30 फीसदी मामलों के पांच साल या इससे अधिक की सजा हो सकती है.

न वोट दे सकेंगे, न लड़ सकेंगे चुनाव
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मुताबिक, इतना ही नहीं, कैद में रहते हुए किसी नेता को वोट देने का अधिकार भी नहीं होगा और न ही वे चुनाव लड़ सकेंगे. जेल जाने के बाद उन्हें नामांकन करने का अधिकार नहीं होगा.

याचिका में क्या
कोर्ट ने वकील लिली थामस व गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी के सचिव एसएन शुक्ला की जनहित याचिका पर यह निर्णय दिया है. इन याचिकाओं में जनप्रतिनिधित्व कानून के चुनिंदा प्रावधानों को निरस्त करने का अनुरोध किया गया था. इससे उन प्रावधानों का हनन होता है जो अपराधियों के मतदाता बनने या सांसद या विधायक बनने पर स्पष्ट प्रतिबंध लगाता है.

ऐतिहासिक है फैसला पर चुनाव सुधार जरूरी

!!सुभाष कश्यप, संविधानविद्!!
जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को निरस्त करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है. यह जनता और लोकतंत्र दोनों के लिए स्वागतयोग्य कदम है. लेकिन केवल इस एक कानून मात्र से राजनीति का अपराधीकरण नहीं रुकनेवाला है. देश में पिछले कई सालों से चुनाव सुधार की बात होती रही है, लेकिन इस दिशा में किसी भी राजनीतिक दल ने कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाया. चुनाव के दौरान अपराधियों को टिकट देने के मामले में कोई भी दल पीछे नहीं रहता है.

वैसे अपराधीकरण को रोकने के लिए यह काम संसद को करना चाहिए था, लेकिन राजनीतिक दलों की बेरुखी के कारण अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ा. केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर अदालत से दोषी ठहराये गये सांसद-विधायक को अपील पर अंतिम फैसला होने तक सदन का सदस्य बने रहने की छूट देनेवाले कानून को सही और जरूरी बताने से राजनीतिक दलों की मंशा साफ जाहिर हो जाती है. उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलों के रवैये में कुछ सुधार आयेगा.

पहले दोषी करार दिये जाने पर चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध तो था, लेकिन अगर किसी के खिलाफ मामला चल रहा है और उसके चुनाव जीतने के बाद उसके खिलाफ फैसला आ जाता था, फिर भी उसकी सदस्यता बची रहती थी. इसके लिए जनप्रतिनिधियों को 90 दिनों के भीतर अपील करनी होती थी. इससे दागी लोगों की सदस्यता बची रहती थी और वे महत्वपूर्ण पदों पर भी काबिज हो रहे थे.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ऐसा नहीं होगा. अब अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में दो साल से ज्यादा की सजा होती है तो ऐसे में उनकी सदस्यता (संसद और विधानसभा से) निलंबित हो जायेगी. यही नहीं सुप्रीम कोर्ट से बरी होने पर ही निलंबन खत्म होगा. सुप्रीम कोर्ट यह यह फैसला चुनाव सुधार की दिशा में एक महत्वूपूर्ण कदम माना जा सकता है. इस फैसले का दूरगामी असर होगा. हालांकि मौजूदा भ्रष्ट व्यवस्था को बेहतर करने के लिए चुनाव सुधार होना बेहद जरूरी है.

राजनीति को साफ-सुथरा बनाने में मददगार फैसला

!!केजे राव, पूर्व सलाहकार, चुनाव आयोग!!

चुनाव सुधार और चुनावी प्रक्रिया से दागी व्यक्तियों, बाहुबलियों और भ्रष्ट आचरण वाले लोगों को बाहर करने की लड़ाई लंबे समय से लड़ रहे लोगों के लिए आज बहुत बड़ा दिन है. सुप्रीम कोर्ट ने एक ही झटके में पूरी संसदीय व्यवस्था को आईना दिखाते हुए लोकतंत्र को साफ-सुथरा बनाने के लिए अभूतपूर्व फैसला दिया है, जिसका दूरगामी असर होगा. सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) को रद्द करते हुए स्पष्ट कहा है कि यह धारा पक्षपातपूर्ण है. अबतक ऐसा होता रहा है कि नेता किसी मामले में निचली अदालत में सजा सुना दिये जाने के बाद उस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में चले जाते थे.

अदालत की प्रक्रिया काफी सालों तक चलते रहने के कारण माननीय सांसद व विधायक चुनावी प्रक्रिया में शामिल होकर फिर मंत्री बन कर या सांसद व विधायक के रूप में कानून बनाते थे. इसी कानून के अनुरूप देश का विधान चलता था. लेकिन अब वे ऐसा नहीं कर सकेंगे. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया है कि पहले से जिन लोगों ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील दायर कर दिया है, उन पर यह फैसला लागू नहीं होगा.

अभी तक कानून की कमजोरी का फायदा उठाते हुए बहुत सारे लोग जेल में रहते हुए भी चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बन जाते थे. यही नहीं वे अपने पक्ष में तर्क भी गढ़ लेते थे कि उन्हें राजनीतिक षड्यंत्र के तहत फंसाया गया है. अब वे ऐसा नहीं कर सकेंगे. उन्हें इसके लिए पहले सुप्रीम कोर्ट से बरी होना होगा और बड़ी अदालत तथ्यों को पूरी तरह से परख कर ही अपना फैसला देगी. इस तरह सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से राजनीति को साफ-सुथरा बनाने में मदद मिलेगी और राजनीति का अपराधीकरण कुछ हद तक रुकेगा.

क्या कहती है धारा

धारा 8 (3) : जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (3) के तहत ऐसा व्यक्ति जो किसी अपराध में दोषी ठहराया गया है और उसे दो साल से कम की कैद की सजा नहीं हुई है तो वह रिहाई के बाद दो साल तक अयोग्य रहेगा.

धारा 8 (4) : जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) कहती है कि कानून निर्माता दोषी ठहराये जाने की तिथि से तीन महीने तक और यदि इस दौरान उसने अपील दायर कर दी है तो इसका निबटारा होने तक अयोग्य घोषित नहीं किये जायेंगे.

पहले क्या: अगर किसी को सजा होती थी तो उसे सजा के फैसले को चुनौती देने के लिए तीन महीने का वक्त मिलता था. सदस्यता तब तक बरकरार रहती थी जब तक सुप्रीम कोर्ट अपना आखिरी फैसला न सुना दे या फिर उसका कार्यकाल पूरा न हो जाये.

सिफारिश : निर्वाचन आयोग ने समय- समय पर अपनी रिपोर्ट में यह प्रावधान खत्म करने के लिए कानून में संशोधन की सिफारिश की थी.

दलों की दलील : राजनीतिक दल जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान में संशोधन का विरोध करते हुए दलील देते हैं कि सत्तारूढ़ दल चुनाव प्रक्रिया से प्रतिद्वंद्वियों को दूर करने के इरादे से राजनीतिक विद्वेष के कारण झूठे मामले बनाते हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें