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अदालत का अंक प्रणाली समाप्त करने के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार

नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने यहां के निजी गैर सहायता प्राप्त विद्यालयों की नर्सरी कक्षाओं में प्रवेश के लिए उप राज्यपाल द्वारा लायी गई अंक प्रणाली रद्द करने के एकल न्यायाधीश की पीठ के फैसले पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश देने से आज इनकार कर दिया. मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति […]

नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने यहां के निजी गैर सहायता प्राप्त विद्यालयों की नर्सरी कक्षाओं में प्रवेश के लिए उप राज्यपाल द्वारा लायी गई अंक प्रणाली रद्द करने के एकल न्यायाधीश की पीठ के फैसले पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश देने से आज इनकार कर दिया.

मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति आर एस एंडला की पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर विस्तृत विचार.विमर्श की जरुरत है इसलिए एकल न्यायाधीश के आदेश के अमल पर रोक लगाने के अनुरोध वाली अंतरिम अर्जी पर कल मुख्य अपील के साथ सुनवायी की जायेगी.
पीठ ने कहा, ‘‘हम आदेश पर आज रोक नहीं लगाएंगे. यह ऐसा मामला है जिस पर विचार की जरुरत है, इसलिए हम इस पर कल विस्तार से सुनवायी करेंगे.’’ अदालत ने यह भी सवाल किया कि क्या ‘‘ऐसी कोई सामग्री उपलब्ध है जो यह दिखाती हो कि यह इस शैक्षणिक सत्र में लागू होगा.’’ इस सवाल का जवाब देते हुए दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी पी मल्होत्र ने कहा, ‘‘इसका इस वर्ष से भी संबंध है.’’
एकल पीठ के न्यायाधीश ने अंक प्रणाली की शुरुआत करने संबंधी 18 दिसम्बर 2013 और 27 दिसम्बर 2013 की उपराज्यपाल की अधिसूचनाओं को चुनौती देते हुए एक कमेटी और निजी विद्यालयों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक मंच की दो याचिकाओं का निस्तारण करते हुए 28 नवम्बर को यह आदेश दिया था.
दिल्ली सरकार के अधिवक्ता ने दलील दी कि एकल न्यायाधीश का आदेश ‘‘पूरी तरह से गलत,’’ ‘‘त्रूटिपूर्ण’’ और ‘‘कानून के खिलाफ’’ है. अधिवक्ता ने कहा कि इस आदेश ने सही कानूनी स्थिति और संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 21.ए की कदर नहीं की और विद्यालयों के अधिकार पर अनुचित जोर दिया है.
याचिका में कहा गया है, ‘‘न्यायाधीश ने यह धारणा बनाने में गलती की कि यदि अभिभावकों को विद्यालय चुनने की स्वतंत्रता दे दी गई तो अच्छे विद्यालयों में अधिक छात्र आकर्षित होंगे और उनका विस्तार होगा तथा जो विद्यालय उतने अच्छे नहीं उनमें छात्रों की संख्या घट जाएगी.’’ सरकार ने अदालत से अनुरोध किया है, ‘‘28 नवम्बर के त्रुटिपूर्ण फैसले को रद्द किया जाये.’’

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