नयी दिल्ली : Supreme Court News. राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण अपनी वेबसाइट पर डालें.
आगे कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपनी वेबसाइट पर ऐसे व्यक्तियों को प्रत्याशी के रूप में चयन करने की वजह भी बतानी होगी जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं. न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसे प्रत्याशियों के चयन को चुनाव में जीतने की संभावना से इतर उनकी योग्यता और मेरिट न्यायोचित ठहराने की वजह भी बतानी होंगी जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं. कोर्ट ने यह भी कहा है कि पार्टी को भी उस नेता को टिकट देने का कारण बताना होगा. ऐसा नहीं करने पर कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी.
भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय कीराजनीतिमे बढ़ते अपराध की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति नरीमन की बैंच ने यहआदेश सुनाया है. कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि दागी और अपराधी नेताओं को नामांकन के 48 घंटे पहले स्थानीय अखबारों में अपराध का विज्ञापन देना होगा. साथ ही, राजनीतिक पार्टियों को भी अपराधी नेताओं के बारे में अपने वेबसाइट पर प्रमुखता से प्रकाशित करना होगा.
इसके अलावा, कोर्ट ने निर्देश देते हुए चुनाव आयोग से कहा है कि आदेश का पालन नहीं करने वाले राजनीतिक दलों और नेताओं पर अवमानना का मुकदमा दर्ज करें.
29 प्रतिशत सासंदों अपराधिक प्रवृत्ति के
2019 में लोकसभा चुनाव में निर्वाचित हुए 29 प्रतिशत सांसद आपराधिक प्रवृत्ति के हैं. चुनाव आयोग की प्रक्रिया से जुड़ी शोध संस्था ‘एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक एलायंस’ (एडीआर) की रिपोर्ट के अनुसार, सत्तारुढ़ दल भाजपा के 303 सासंदों में से 116 पर गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, जबकि कांग्रेस के 52 में से 29 सांसदों पर आपराधिक प्रवृत्ति के मामले दर्ज हैं. वहीं, देश के 21 प्रतिशत विधायकों पर गंभीर अपराध के मुकदमे दर्ज हैं.
बिहार झारखंड अव्वल
एडीआर की रिपोर्ट की मानें तो आपराधिक प्रवृति वाले नेताओं की संख्या में बिहार और झारखंड सबसे अव्वल है. जहां झारखंड के नवनिर्वाचित विधायकों में 62 प्रतिशत विधायकों पर गंभीर मुकदमा दर्ज है. वहीं बिहार के 58 प्रतिशत विधायक दागी हैंं.