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मौका निकल जाने के बाद मुस्तैद हुए राहुल गांधी

कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का कल संसद में एक नया रूप दिखा. अबतक संसद में शांत रहने वाले और किसी भी चर्चा में शामिल होने से बचने वाले राहुल गांधी ने कल वेल में पहुंच कर नारेबाजी की और सत्तापक्ष पर जमकर निशाना साधा. यहां तक कि कांग्रेस उपाध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को निशानेपर लेकर […]

कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का कल संसद में एक नया रूप दिखा. अबतक संसद में शांत रहने वाले और किसी भी चर्चा में शामिल होने से बचने वाले राहुल गांधी ने कल वेल में पहुंच कर नारेबाजी की और सत्तापक्ष पर जमकर निशाना साधा. यहां तक कि कांग्रेस उपाध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को निशानेपर लेकर नारेबाजी की और संसद से बाहर निकल यह कहा कि यहां सिर्फ एक ही आदमी नरेंद्र मोदी की बात सुनी जाती है, बाकी लोगों को बोलने का मौका भी नहीं दिया जाता है. हालांकि राहुल के इस बयान पर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जमकर चुटकी ली और कहा कि कुछ नहीं बोलने वाले लोग यह कहने लगे हैं, हमें बोलने का मौका नहीं दिया गया. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस में राहुल के खिलाफ आवाज बुलंद हो रही है, जिसके कारण वे अपनी कुर्सी बचाने के लिए ढोंग की उग्रता दिखा रहे हैं. लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि आखिर अकसर शांत रहने वाले राहुल गांधी को इतना गुस्सा क्यों आया?

क्या है राहुल के गुस्से का राज

भाजपा का आरोप है कि राहुल गुस्सा इसलिए दिखा रहे हैं क्योंकि कांग्रेस में उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाया जा रहा है. एक कांग्रेसी नेता जगमीत बराड़ तो यहां तक कह चुके हैं कि उन्हें राजनीति से दो साल की छुट्टी ले लेनी चाहिए. लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस में नेतृत्व शून्यता की स्थिति उत्पन्न हो गयी है. सोनिया गांधी के राजनीतिक जीवन का यह सबसे कठिन समय है. जिस प्रकार सोनिया, राहुल को अपने उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तुत कर रही थीं, वैसी स्थिति में 16वीं लोकसभा का चुनाव एक तरह से नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी हो गया था. लेकिन राहुल गांधी इस लड़ाई में फिसड्डी साबित हुए. अब राहुल गांधी डैमेज कंट्रोल में जुटे हैं.उनकी उग्रता यह साबित करना चाह रही है कि वे फिसड्डी नहीं है और उनमें नेतृत्व क्षमता कूट-कूट कर भरी है.

इससे पहले भी राहुल का गुस्सा सार्वजनिक हुआ है

यूपीए 2 के समय जब कैबिनेट ने दागी नेताओं से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए एक बिल तैयार किया, जिसमें यह फैसला लिया गया था कि दागी नेता भी चुनाव लड़ सकेंगे, तो राहुल गांधी ने उस बिल के प्रारूप को फाड़ कर फेंक दिया था और कैबिनेट के फैसले को गलत करार दिया था. राहुल गांधी ने क्रोधित होकर उस बिल को नॉनसेंस करार दिया था. इसमें कोई दो मत नहीं है कि राहुल गांधी ने जो किया, वह बिलकुल सही था, लेकिन किसी सरकर के फैसले को इस तरह दरकिनार करना अशिष्ट आचरण माना गया और राहुल के इस रवैये से सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी.

शांत स्वभाव के हैं राहुल गांधी

अगर राहुल गांधी के राजनीतिक कैरियर का विश्लेषण करें, तो पायेंगे कि वे एक शांतचित्त और शालीन व्यक्तित्व हैं. किसी का अपमान करना उनकी आदत में शुमार नहीं है. यहां तक कि चुनावी भाषणों में भी वे मर्यादित भाषा का प्रयोग करते हैं और अकसर कांग्रेसियों को यह हिदायत देते रहते हैं कि वे शालीन भाषा का इस्तेमाल करें और कोई अभद्र आचरण ना करें.

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