मुंबई : महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के दो हफ्ते बाद भी सरकार गठन की प्रक्रिया अधर में है. भाजपा की सरकार बनाने से इनकार करने के बाद शिवसेना को राज्यपाल ने न्योता दिया था, लेकिन तय समय (शाम 7:30) तक उद्धव की सेना दावा पेश नहीं कर पायी. नतीजा राज्यपाल ने शिवसेना की तीन दिन अतिरिक्त समय दिये जाने की मांग को खारिज कर दिया.
अब राज्य की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी एनसीपी को राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए न्योता दिया है और उसे मंगलवार रात 8:30 तक का समय दिया है. तय समय तक एनसीपी को अपना संख्या बल राज्यपाल के पास दिखाना होगा.
* सरकार बनाने से कैसे चूकी शिवसेना
शिवसेना द्वारा गैर भाजपा सरकार बनाने के प्रयास को अंतिम समय में तब झटका लगा, जब राज्यपाल ने शिवसेना की मांग को ठुकरा दिया. एक समय खबर आयी कि कांग्रेस और एनसीपी ने शिवसेना को समर्थन देने का फैसला कर लिया है, लेकिन जब शिवसेना के विधायक आदित्य ठाकरे राज्यपाल से मिलने पहुंचे उस समय खबर आयी कि कांग्रेस-एनसीपी ने शिवसेना को समर्थन नहीं दिया है और इस पर शरद पवार की पार्टी से और चर्चा करने के बाद फैसला किया जाएगा.
इधर शिवसेना नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात कर सरकार बनाने की इच्छा प्रकट की लेकिन वे जरूरी समर्थन पत्र जमा नहीं कर सके.
राजभवन ने एक बयान में यह बात कही. राजभवन की ओर से यहां जारी बयान में कहा गया कि शिवसेना ने समर्थन पत्र जमा करने के लिए तीन दिन का समय और मांगा था, लेकिन राज्यपाल ने इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया. इसमें कहा गया है कि शिवसेना नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने कोश्यारी से मुलाकात की और सरकार बनाने की इच्छा प्रकट की.
बयान के अनुसार, शिवसेना समर्थन का जरूरी पत्र नहीं जमा कर सकी. शिवसेना ने समर्थन पत्र जमा करने के लिए समयसीमा तीन दिन और बढ़ाने का अनुरोध करते हुए पत्र दिया था जो सोमवार शाम 7:30 बजे समाप्त हो गयी.
राज्यपाल से मुलाकात के बाद शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे ने संवाददाताओं से कहा कि उनकी पार्टी का सरकार बनाने का दावा अब भी कायम है क्योंकि दोनों दलों ने शिवसेना नीत सरकार को सैद्धांतिक रूप से समर्थन की सहमति जताई है. उन्होंने कांग्रेस और राकांपा का नाम नहीं लिया.
* 288 विधानसभा वाले महाराष्ट्र में क्या है एनसीपी की स्थिति
288 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा (105) और शिवसेना (56) के बाद राकांपा 54 विधायकों के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है. राकांपा की सहयोगी कांग्रेस के 44 विधायक हैं जबकि 288 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 145 है.
* भाजपा-शिवसेना : 30 साल पुरानी हिंदुत्व जोड़ी की दोस्ती टूटी
हिन्दुत्व की विचाराधारा से बंधा भाजपा-शिवसेना का तीन दशक से अधिक पुराना गठबंधन महाराष्ट्र में ‘मुख्यमंत्री पद’ के मुद्दे पर टूट गया. महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर जारी राजनीतिक घटनाक्रम के बीच, केंद्र में भारी उद्योग मंत्री एवं शिवसेना नेता अरविंद सावंत ने सोमवार को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार से इस्तीफा दे दिया और भाजपा पर सत्ता में हिस्सेदारी के तय फार्मूले से मुकरने का आरोप लगाया.
सावंत ने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि कुछ चीजों पर सहमति बनी थी जिसमें मुख्यमंत्री पद सहित सीटों के 50-50 के अनुपात में बंटवारे का फार्मूला तय हुआ था लेकिन भाजपा अब इससे इंकार कर रही है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपना इस्तीफा भेज दिया है. इससे पहले, शरद पवार की राकांपा ने शर्त लगायी थी कि वह शिवसेना के राजग से अलग होने के बाद ही सहयोग पर विचार करेगी और सरकार के लिये साझा न्यूनतम कार्यक्रम तय होगा. इसके बाद ही केंद्र में शिवसेना के कोटे से मंत्री सावंत ने इस्तीफा दिया.
भाजपा का हालांकि कहना है कि इसमें आधे-आधे समय के लिये मुख्यमंत्री पद का बंटवारा करने की कोई बात तय नहीं हुई थी. शिवसेना राजग की सबसे बड़ी घटक दल रही है जिसके लोकसभा में 18 सदस्य हैं । 543 सदस्यीय लोकसभा में भाजपा के 303 सदस्य हैं.
रविवार को भाजपा ने स्पष्ट किया था कि उसके पास सरकार बनाने के लिये संख्या बल नहीं है और इसलिये वह विपक्ष में बैठेगी. महाराष्ट्र में संख्या बल की कमी का हवाला देते हुए सरकार बनाने से इन्कार करने के एक दिन बाद भाजपा सोमवार को राज्य में हुई राजनीतिक गतिविधियों पर नजर बनाए हुए है.
दोनों दलों के 98 विधायक हैं और सरकार बनाने के लिए 145 सीटों की आवश्यकता है। शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस को मिलाकर यह संख्या पूरी हो जाती है. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि भाजपा और शिवसेना के बीच सबसे पहले 1984 में गठबंधन हुआ था जब दोनों दलों ने लोकसभा चुनाव साथ साथ लड़ा था और तब शिवसेना के तीन उम्मीदवार भाजपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़े थे.
भाजपा और शिवसेना 1989 का विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ी थीं और दोनों दलों ने पहली बार 1995 से 2000 तक गठबंधन सरकार बनाई थी. तीन दशक से अधिक पुराने भाजपा-शिवसेना गठबंधन में कई ऐसे मौके आए जिसमें दोनों दलों में खींचतान दिखाई दी, लेकिन गठबंधन पूरी तरह से नहीं टूटा.
शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के निधन के बाद 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना के बीच गठबंधन नहीं हो पाया था और दोनों दल अलग अलग मैदान में उतरे थे, लेकिन चुनाव के बाद दोनों दलों की गठबंधन की सरकार बनी और इसने कार्यकाल पूरा किया.
इस चुनाव में भाजपा को 122 सीट और शिवसेना को 63 सीट मिली थी और भाजपा के देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने. दोनों दलों ने 2019 का लोकसभा चुनाव साथ साथ लड़ा था. हालांकि इसी साल विधानसभा चुनाव से पहले दोनों दलों में मनमुटाव दिखाई देने लगा. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद दोनों दलों ने साथ साथ चुनाव लड़ा था.
इससे पहले हाल के समय में भाजपा से कई सहयोगी दल अलग हुए हैं जिसमें आंध्रप्रदेश में उसकी सहयोगी चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) शामिल है. तेदेपा 2019 के लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव से पहले राजग से अलग हुई थी.
पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर में पीडीपी की गठबंधन सरकार से भाजपा अलग हो गई बिहार में भी 2013 में सहयोगी नीतीश कुमार की जदयू भाजपा से अलग हो गई थी, लेकिन 2016 में जदयू और भाजपा साथ आ गई थी.