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#Emergency : इंदिरा गांधी को मिली सीख, लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि, तानाशाह नहीं

-रजनीश आनंद- आज 25 जून है, भारतीय राजनीति के इतिहास का काला दिन. पूरे 44 साल हो गये जब देश में आपातकाल की घोषणा हुई थी. उस वक्त देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं जिन्होंने अपने तानाशाही रवैये को विस्तार देते हुए देश में इमजेंसी यानी आपातकाल की घोषणा की थी. इंदिरा गांधी ने 25 […]

-रजनीश आनंद-

आज 25 जून है, भारतीय राजनीति के इतिहास का काला दिन. पूरे 44 साल हो गये जब देश में आपातकाल की घोषणा हुई थी. उस वक्त देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं जिन्होंने अपने तानाशाही रवैये को विस्तार देते हुए देश में इमजेंसी यानी आपातकाल की घोषणा की थी. इंदिरा गांधी ने 25 जून की मध्यरात्रि को अपने राजनीतिक जीवन का सबसे कठोर और गलत फैसला लिया था, जिससे भारतीय लोकतंत्र पर कलंक तो लगा ही, लेकिन यह बात भी पुख्ता हुई कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है.

वाजपेयी ने कहा था अब इंदिरा ही मुझे खिलायेंगी

इमरजेंसी के बारे में एनपी उल्लेख ने किताब ‘वाजपेयी एक राजनेता के अज्ञात पहलू’ में लिखा है-समय क्या करवट लेने वाला था, इसके संकेत 1973 में ही मिल गये थे. जब जेपी कांग्रेस विरोधी आंदोलन के प्रमुख प्रचारक के रूप में उभरने लगे थे.छह मार्च को जब जेपी की रैली में दिल्ली में लाखों लोग जमा हुए तो इंदिरा गांधी बहुत परेशान थीं. वह 26 जून 1975 की सुबह थी. आडवाणी और वाजपेयी विधायकों के बंगले में थे, उन्हें 7.30 बजे जनसंघ के दिल्ली से कार्यालय किया गया था कि देश में आपातकाल लागू कर दिया गया है और रात हुई कार्रवाई में देश के सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है. इन लोगों में जयप्रकाश नारायण भी शामिल थे. अब बारी वाजपेयी और आडवाणी की थी. आडवाणी भागकर वाजपेयी के पास आये और उन्होंने इमरजेंसी की निंदा वाला एक साझा बयान तैयार किया. कुछ घंटों में ही पुलिस आयी और वाजपेयी, आडवाणी, मधु दंडवते और कांग्रेस ओ के नेता श्याम नंदन मिश्रा को गिरफ्तार कर बंगलुरू सेंट्रल जेल भेज दिया गया.

जुलाई के महीने में आडवाणी और वाजपेयी के वकील एमएम ‘अप्पा’ घटाटे जेल आये थे, उन्होंने जब वाजपेयी को जेल के कपड़ों में देखा तो पूछा अटल जी यह सब क्या है? इसपर वाजपेयी जी ने हंसकर कहा था अब इंदिरा गांधी ही मुझे खिलायेंगी और वही कपड़े भी देंगी मैं अपनी जेब से एक पैसा थी खर्च करने वाला नहीं हूं. उनके वकील ने उन्हें बताया कि उन्होंने बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका तैयारा की है और नजरबंदी को चुनौती दी है, तो वाजपेयी ने उन्हें आगे बढ़ने को कहा. वकील ने बताया कि कुछ लोग 1942 का रुख अपनाना चाहते हैं और कोई याचिका नहीं देना चाहते, इसपर वाजपेयी जी ने कहा था, हम स्वतंत्र देश में हैं, 1942 की बात और थी. अब अदालतें हमारी हैं, वह हमें राहत दे सकती हैं, यदि हम न्यायपालिका के दरवाजे तक नहीं गये, तो बाद में यह कहा जा सकता है कि हमें न्यायालय को परखना चाहिए था, संभवत: हमें राहत मिल सकती थी.

लगभग दो साल देश में रहा आपातकाल, नागरिक अधिकार रहे सीज

25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक जारी रहा . उस समय देश के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद थे और उन्होंने ही भारतीय संविधान की धारा 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी. इमरजेंसी के दौरान देश के सभी बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया था या तो वे अंडरग्राउंड हो गये थे. जब 12 जून 1975 को इलाहबाद हाईकोर्ट की ओर से इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला आया और उनके चुनाव को खारिज कर दिया तो इंदिरा बौखला गयीं थीं. उनके पास सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए 20 दिन का समय था, सत्ता हाथ से ना जाये इसके लिए इंदिरा गांधी ने यह फैसला ले लिया जो देश के इतिहास का काला दिन बन गया. सरकार ने पूरे देश को एक बड़े जेलखाना में बदल दिया गया था. आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था. इमरजेंसी में जीने तक का हक छीन लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी 2011 में अपनी गलती मानी थी. सुप्रीम कोर्ट ने 2 जनवरी, 2011 को यह स्वीकार किया कि देश में आपातकाल के दौरान इस कोर्ट से भी नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ था.

जनता ने साबित किया, लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि

लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है यह बात तब साबित हुई जब देश से इमरजेंसी का अंत हुआ और लोकसभा चुनाव में जनता ने इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी को पराजित किया. 1977 में देश में जनता पार्टी की सरकार बनी. यह विपक्ष की एकजुटता का शानदार इतिहास है, जब पूरा विपक्ष एक तानाशाही प्रधानमंत्री के खिलाफ एकजुट हुआ था और जनता ने यह संदेश दिया था कि वह सर्वोपरि है और संविधान से छेड़छाड़ की इजाजत किसी को नहीं दी जायेगी.

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