नयी दिल्लीः भारत में नयी सरकार को यूं तो अभी डेढ़ महीना ही हुआ है. लेकिन इस दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने पूर्व की चुनौतियों के साथ कई नयी चुनौतियां उत्पन्न हो गयी है. आंतरिक मामलों के साथ – साथ सरकार के पास दूसरे देशों से रिश्तों को बेहतर करने की चुनौती मुंह बाये खड़ी है. आंतरिक मामलों में सरकार महंगाई, भष्टाचार, बेरोजगारी जैसे गंभीर मुद्दों पर ध्यान दे रही है, तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी विदेश यात्रा उन देशों से संबंध बेहतर करने की कवायद है जिनसे कुछ सालों से संबंध खटास में पड़े हैं.
हालांकि मोदी ने भी अपने चुनावी वादों को पूरा करते हुए कई काम शुरु कर दिये है. इसलिए दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार मानी जाने वाली भारतीय अर्थव्यवस्था में सभी विकसित मुल्कों और बड़े निवेशकों की दिलचस्पी लाजमी है. मोदी सरकार के साथ संपर्को की पहल में दुनिया के कई मुल्क 100 स्मार्ट सिटी, हीरक चतुर्भुज रेल परियोजना, बुलेट ट्रेन समेत ढांचागत विकास की बड़ी परियोजनाओं में निवेश व हिस्सेदारी के लिए अपनी दावेदारियां पेश कर चुके हैं. मोदी के सामने इन देशों से संबंध सुधारने के पीछे भारत में अर्थव्यस्था को मजबूत करना, निवेश को बढ़ावा देना और कई सालों से जारी सीमा विवाद को बातचीत के जरिये सुलझाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं. मोदी ब्रिक्स सम्मेलन में वाहवाही लूटने में कामयाब रहे हैं उन्होंने आतंकवाद को लेकर जिस तरह से चिंता जाहिर की है उससे कई देश मोदी का समर्थन करते नजर आये.
पाकिस्तान के साथ संबंध
भारत ने पाकिस्तान के साथ संबंध को हमेशा से बेहतर करने कोशिश की है. मोदी भी इसकी अहमियत को अच्छी तरह समझते है शायद यही कारण है कि मोदी ने शपथग्रहण समारोह में शार्क देशों को न्योता भेजा. मोदी की प्राथमिकता थी पहले शार्क देशों से संबंध बेहतर किये जाए. कई सालों से रुकी बातचीत को आगे बढ़ाया जाए. इस मुलाकात में नवाज शरीफ औऱ नरेंद्र मोदी के बीच हुई बातचीत में भले ही दोनों देशों के गंभीर मुद्दों पर ना हुई हो लेकिन व्यक्तिगत तौर पर दोनों का मातृत्व प्रेम बेहद चर्चा में रहा.
मोदी ने नवाज की मां के लिए शॉल भेजा तो जवाब में नवाज ने मोदी की मां के लिए सफेद रंग की शानदार साड़ी भेजी. दोनों देशों के प्रधानमंत्री के बीच तोहफे की लेनदेने ने दोनों देशों के रिश्ते और मजबूत किये. लेकिन तोहफा मिलने के बाद पाकिस्तान की तरफ से सीजफायर का उल्लंघन पाकिस्तान सरकार की नीयत पर एक सावलिया निशान खड़ा करता है. पाकिस्तान कई बार अपने वादे से मुकरता आया है. भारत की तरफ से की गयी हर कोशिश पाकिस्तान की इस चाल के कारण नाकाम रह जाता है. हालांकि सीजफायर को लेकर सरकार कई बार अपना विरोध जता चुकी है लेकिन इन विरोधों का पाकिस्तान पर कोई खास असर नहीं पड़ा. दरअसल वहां की राजनीति व विदेश निति में आइएसआई का सीधा हस्तक्षेप है. इसलिए वहां की सरकार की कथनी और करनी में हमेशा अंतर दिखता है. बल्कि हाफिज सईद- वेद प्रताप वैदिक प्रकरण के बाद मंगलावर को एक पाकिस्तान टीवी के पत्रकार ने जिस तरह से अपने बयानों के माध्यम से भारत को घेरने की कोशिश की इससे यह संकेत भी मिलता है कि वहां की सरकार के साथ मीडिया पर भी तो आइएसएसआई व अतिवादी संगठनों का प्रभाव तो नहीं है.अब जब देश में हंगामा मचा है, तो मोदी के स्वदेश वापसी के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि इस पूरे मुद्दे पर उनका क्या रुख रहेगा.
चीन के साथ संबंध बेहतर करने की चुनौती
भारत और चीन के बीच व्यापारिक रिश्ते को भारत और मजबूत करना चाहता है. चीन में भी भारत की कई कंपनियां निवेश कर रही है. नरेंद्र मोदी के पास भारत और चीन के संबंधो को लेकर जो सबसे बड़ी चुनौती है वह सीमा विवाद की. चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता रहा है. इसके अलावा भारत के सीमा क्षेत्र में कई बार कैंप बना चुका है. ब्राजील में दोनों देश करीब आये. यहां दोनों के बीच कई मुद्दों पर बातचीत भी हुई. शी चिनपिंग के साथ अपनी द्विपक्षीय वार्ता को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेहद सफल करार दिया। शायद इस बात का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि मुलाकात के लिए जहां 40 मिनट का वक्त मुकर्रर था, वहीं यह मुलाकात तकरीबन 80 मिनट तक चली। इस दौरान सीमा विवाद से लेकर द्विपक्षीय व्यापार और ब्रिक्स बैंक जैसे तमाम मुद्दों पर बात हुई. इस मुलाकात में मोदी ने शी चिनपिंग से कई मुद्दों पर बातचीत की दोनों पक्ष सीमा संबंधी विवाद को सुलझाने के लिए 17 दौर की विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता कर चुके हैं. भारत का कहना है कि यह विवाद 4,057 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा से जुड़ा है जबकि चीन का दावा है कि यह केवल अरुणाचल प्रदेश के 2,000 किलोमीटर क्षेत्र तक सीमित है, जिसे वह दक्षिणी तिब्बत करार देता है. बैठक के दौरान मोदी ने यह सुझाव भी दिया कि तिब्बत स्थित कैलास मानसरोवर के लिए यात्रा के एक और मार्ग की व्यवस्था की जाए क्योंकि यह क्षेत्र बेहद दुर्गम है. इस यात्रा में 19,500 फुट की बेहद मुश्किल चढ़ाई करनी पड़ती है हालांकि चीन के राष्ट्रपति ने इस पर कोई त्वरित प्रतिक्रिया नहीं दी पर उनकी इन मांगों पर गौर करन की बात जरुर कही. ब्रिक्स सम्मेलन में दोनों देशों के बीच बढ़ती नजदीकी भविष्य में दोनों देशों के रिश्ते पर गहरा असर करेगी.
जापान से नजदीकी बढ़ाने की चुनौती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान से नजदीकी बढ़ाने की भी कोशिश में है. जापान भी भारत से व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करना चाहता है. जापान भारत में उसी पैमाने पर निवेश करना चाहता है जैसा कि 80 और 90 के दशक में उसने चीन में किया था. अब चीन के साथ तनातनी के माहौल में जापान भारत में एक कारगर ऑप्शन देख रहा है. भारत भी जापान के साथ संबंधो को बेहतर करके चीन को साधना चाहता है. जापान अच्छी तरह जानता है कि भारत में उसके निवेश से जापान की आर्थिक व्यवस्था में सुधार संभव है. पीएम नरेंद्र मोदी को जुलाई के पहले हफ्ते में जापान टूर पर जाना था. लेकिन उससे पहले जापानी उद्योग जगत ने भारत के सामने कुछ मांगें रख दी. भारत के साथ आर्थिक रिश्ते गहरे करने के लिए उसने जापानी उद्योग प्रतिनिधियों और स्टाफ के लिए वीजा पॉलिसी को उदार बनाने और वहां के वकीलों को भारत में काम करने की इजाजत देने की मांग की है, ताकि जापानी इनवेस्टर्स और प्रफेशनल्स का भारत पर भरोसा गहरा हो सके. भारत भी जापान के साथ बेहतर संबंध की उम्मीद करता है.
अमेरिका और रुस को एक साथ साधने की कोशिश
नरेंद्र मोदी के लिए अमेरिका और रुस के साथ रिश्तों को मबजबू करने की चुनौती है. दोनों देशों को भारत एक साथ साधना चाहता है. अमेरिका भारत के नये प्रधानमंत्री से मिलने के लिए उतावला है. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें अमेरिका आने का न्योता दिया. भारत के साथ साझेदारी बढ़ाने के संकेत देने के लिए ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा 26 मई, 2014 के बाद से अब तक अपने दो उच्चस्तरीय नुमाइंदों को भारत भेज चुके हैं. मोदी की अमेरिका यात्रा भी 30 सितंबर को तय हो गई है. इस दौरान भारत और अमेरिका के बीच होने वाली रणनीतिक वार्ता की जमीन तैयार करने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने भी मोदी को अमेरिका आने का न्योता दिया. अमेरिका के इन प्रयासों से स्पष्ट है कि भारत के साथ व्यापारिक और राजनीतिक संबंध भी बेहतर करने के लिए अमेरिका उत्सुक है. दूसरी तरफ रुस भी भारत के साथ होते प्रगाड़ संबधों को लेकर खुशी जता चुका है. प्रधानमंत्री ने रुस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ मुलाकात के दौरान उन्होंने रुस के साथ रक्षा एवं ऊर्जा क्षेत्रों में विशेष रणनीतिक साझेदारी को व्यापक बनाने की पैरवी की है. इसके साथ उन्होंने रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को आगामी दिसंबर में होने वाली उनकी भारत यात्रा के दौरान कुडनकुलम परमाणु बिजली संयंत्र का दौरा करने के लिए आमंत्रित किया. मोदी ने भी रुस को एक अच्छा दोस्त बताया उन्होंने कहा कि हम रुस के साथ हुई दोस्ती का बेहद सम्मान करते है. कुल मिलाकर इन दोनों देशों के साथ रिश्ते बेहतर करने और इन देशों के बीच अपनी अलग पहचान बनाने की पूरी कोशिश कर रहा है.
बांग्लादेश और श्रीलंका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों को भारत के करीब लाने की है. भारत औ बांग्लादेश के बीच चला आ रहा समुद्री विवाद भी खत्म हो गया. संयुक्त राष्ट्र के एक न्यायाधिकरण ने विवादित क्षेत्र का लगभग 80 फ़ीसदी हिस्सा बांग्लादेश को देने का फ़ैसला किया है.फ़ैसले के तहत दोनों देशों के बीच विवाद में फँसे बंगाल की खाड़ी के 25,000 वर्ग किलोमीटर के इलाक़े का 19,500 किमी. का क्षेत्र बांग्लादेश को दिया गया है और क़रीब छह हज़ार किमी. का क्षेत्र भारत के हिस्से में आया है. इसके अलावा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी इन दो देशो के बीच रिश्ते को बेहतर करने की कोशिश में है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने गुरुवार को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को क्रीम कलर की साड़ी भेंट की, वहीं हसीना ने बदले में भारतीय नेता को बांग्लादेश की प्रसिद्ध जामदानी साड़ी तोहफे में दी. दूसरी तरफ भारत श्रीलंका से रिश्ते सुधारने के लिए नाराज तमिल लोगों को मानने की कोशिश कर रहा है. मोदी के शपथग्रहण समारोह में तमिल श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की उपस्थिति इन दोनों देशों के रिश्ते को बेहतर होते रिश्ते का सबूत है.