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लोकसभा चुनाव : आसान नहीं गुरुनगरी से पुरी की राह

अखिल तलवारचंडीगढ़ : गुरु नगरी से केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी की राह आसान नहीं दिख रही है. बाहरी का टैग उन पर ऐसा चस्पा हुआ कि अब तक नहीं छूटा. फिर भाजपा की गुटबाजी भी उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है.भाजपा ने 2014 में अमृतसर सीट से अपने हैवीवेट कैंडिडेट अरुण जेटली को […]

अखिल तलवार
चंडीगढ़ :

गुरु नगरी से केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी की राह आसान नहीं दिख रही है. बाहरी का टैग उन पर ऐसा चस्पा हुआ कि अब तक नहीं छूटा. फिर भाजपा की गुटबाजी भी उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है.भाजपा ने 2014 में अमृतसर सीट से अपने हैवीवेट कैंडिडेट अरुण जेटली को टिकट दिया था. उन पर भी बाहरी होने का ऐसा लेबल लगा कि चुनाव तक नहीं छूटा. नतीजतन जेटली करीब एक लाख वोटों से कैप्टन अमरिंदर सिंह से हार गये. पुरी भी अभी तक इससे जूझ रहे हैं.

हालांकि, वह पहले दिन से ही दलीलें दे रहे हैं कि जलियांवाला बाग नरसंहार के समय उनके नाना यहां थे तो वह बाहरी कैसे हो सकते हैं. लेकिन, कांग्रेस ने इसे ही मुद्दा बनाया है और लोगों के बीच भी कहीं न कहीं यह बात अभी तक है.
इससे पुरी को नुकसान हो सकता है. पुरी की दूसरी समस्या पार्टी की गुटबाजी है. प्रदेश प्रधान श्वेत मलिक और पूर्व मंत्री अनिल जोशी के बीच टकराव चुनाव शुरू होने के बाद भी खत्म नहीं हो रहा. कुछ दिन पहले हुए संकल्प दिवस कार्यक्रम के दौरान प्रभारी कैप्टन अभिमन्यु के सामने जोशी और मलिक के गुटों के बीच जबरदस्त तू तू-मैं मैं और नारेबाजी हुई.
पुरी के आने के बाद एक कार्यक्रम की तस्वीरें मीडिया को भेजते समय मलिक गुट ने जोशी की फोटो क्रॉप करके हटा दी. इसलिए जोशी ने अब अपने आपको सिर्फ अपने हलके नॉर्थ तक समेट लिया है. यह प्रदेश प्रधान मलिक का शहर है, पर वह दूसरे हलकों में जाने के कारण यहां लगातार गैर मौजूद रहे हैं.
सेंट्रल हलके से चुनाव लड़ने वाले राष्ट्रीय मंत्री तरुण चुघ भी अब चुनाव प्रचार को आये हैं. बाकी सीटों पर भाजपा नेता प्रचार कर रहे हैं, लेकिन भाजपा के चुनाव प्रचार में तालमेल की काफी कमी है. पुरी के साथ आयी उनकी टीम और स्थानीय भाजपा में भी तालमेल नहीं है. यह भी पुरी के लिए ठीक नहीं है. एक और बात है जो पुरी के खिलाफ जा रही है.
कांग्रेस उम्मीदवार गुरजीत औजला स्थानीय होने के साथ मिलनसार हैं, लेकिन लंबे समय तक तमाम देशों में शीर्ष राजनयिक के तौर पर काम कर चुके पुरी शायद खुद को अभी तक राजनीतिक ताने-बाने में ढाल नहीं पाये हैं. मीडिया के एक सवाल पर उनके तीखे जवाब का वीडियो भी वायरल हुआ. पर पिछले एक हफ्ते के दौरान पुरी की स्थिति में सुधार हुआ है.
बाहरी का ठप्पा लगा होने के कारण ही पिछले चुनाव में जेटली करीब एक लाख वोटों से हारे थे
अकाली दिग्गजों की कमी
ग्रामीण इलाकों में भाजपा को जिताने की जिम्मेदारी शिअद की होती है. इस बार शिअद के कई दिग्गज गायब हैं. मजीठिया का प्रतिनिधित्व करने वाले बिक्रम बठिंडा में हरसिमरत कौर बादल के चुनाव में फंसे हैं.
अटारी के प्रतिनिधि गुलजार सिंह रणिके खुद फरीदकोट से चुनाव लड़ रहे हैं. अजनाला के प्रतिनिधि पूर्व सांसद रतन सिंह अजनाला और उनके बेटे बोनी अजनाला ने पार्टी छोड़कर शिरोमणि अकाली दल-टकसाली बना ली है.
प्रचार में मुख्य मुद्दे गायब
चुनाव में मुख्य मुद्दे गायब हैं. कंटीले तार के पार खेती, बॉर्डर एरिया पैकेज, इंडस्ट्री का रिवाइवल, इंटिग्रेटेड चेक पोस्ट से पाकिस्तान को खुला कारोबार और नशे जैसे मुद्दे शहर के लिए अहम हैं. कस्टम ड्यूटी 200 फीसदी होने से कारोबार ठप है. शहर में ट्रैफिक सबसे बड़ी समस्या है, तो बेरोजगारी और कानून-व्यवस्था भी है. जीएसटी, नोटबंदी और राज्य सरकार द्वारा इंडस्ट्री को सस्ती बिजली के वादे की बात भी कोई नहीं कर रहा है.
भाजपा का इमोशनल कार्ड
कांग्रेस स्थानीय और मिलनसार औजला बनाम बाहरी पुरी का मुद्दा बना रही है. इसके जवाब में भाजपा ने इमोशनल कार्ड खेला है. भाजपा के चुनाव प्रचार में लोगों से यही कहा जा रहा है कि पिछली बार गलती कर ली, इस बार मत करना. जेटली का मंत्री बनना तय था, फिर भी हरा दिया. पुरी तो पहले से मंत्री हैं, राजग आयी तो उनका दोबारा मंत्री बनना तय है.
ऐसे में पुरी की जीत ही शहर के लिए बेहतर होगी. अगर इस बार भी हैवीवेट कैंडिडेट हारा, तो आगे से किसी ने अमृतसर वालों की सुध नहीं लेनी. भाजपा को लगता है कि 1984 के सिख नरसंहार पर सैम पित्रोदा के बयान से सिख वोटों का ध्रुवीकरण उसके पक्ष में होगा, तो कांग्रेस को लगता है कि बेअदबी और नशों को लेकर शिअद के प्रति लोगों के गुस्से का उसे फायदा होगा.
कांग्रेस को भी है भितरघात का खतरा
2017 के उपचुनाव में गुरजीत औजला करीब दो लाख वोटों से जीते थे. लेकिन, पार्टी के स्थानीय नेताओं में उनका काफी विरोध है. शहर के पांच विधायकों ने पार्टी को लिखकर दिया था कि औजला को टिकट नहीं दिया जाए.
क्योंकि सांसद के तौर पर औजला की गतिविधियों ने विधायकों के लिए ही समस्याएं खड़ी कर दीं. शुरुआत में कोई भी नेता उनके साथ नहीं चल रहा था. पर सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने घुड़की दी कि जिस हलके से भी कोई हारा तो मंत्री पद ले लिया जायेगा.
पिछले चुनाव के नतीजे साल जीते हारे अंतर
2017 ( उपचुनाव) गुरजीत सिंह औजला (कांग्रेस) रजिंदर मोहन छीना (भाजपा) 199189
2014 कैप्टन अमरिंदर सिंह (कांग्रेस) अरुण जेटली (भाजपा) 102770
2009 नवजोत सिंह सिद्धू (भाजपा) ओपी सोनी (कांग्रेस) 6958
2007 (उपचुनाव) नवजोत सिंह सिद्धू (भाजपा) सुरिंदर सिंगला (कांग्रेस) 77626
2004 नवजोत सिंह सिद्धू (भाजपा) आरएल भाटिया (कांग्रेस) 109632

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