नयी दिल्ली: वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम की उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पद पर नियुक्ति विवाद ने आज उस समय नया मोड ले लिया जब प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढा ने स्पष्ट किया कि कार्यपालिका ने ‘एकतरफा’ कार्यवाही करके उनका नाम अलग किया था जो ‘सही नहीं’ था.
प्रधान न्यायाधीश ने एक कार्यक्रम में नई सरकार के सत्ता में आने के एक महीने के भीतर हुये इस विवाद पर अपनी खामोशी तोडते हुये कहा, ‘‘पहली बात तो मैंने गोपाल सुब्रमण्यम की फाइल कार्यपालिका द्वारा एकतरफा तरीके से अलग करने पर आपत्ति की थी. यह सही नहीं था.’’ न्यायमूर्ति लोढा ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता उनके लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. शीर्ष अदालत के न्यायाधीश डा बी एस चौहान के सेवानिवृत्त होने के अवसर पर आयोजित समारोह में उन्होंने वकीलों से कहा, ‘‘यह मत समझिये कि न्यायपालिका की आजादी के साथ समझौता किया गया है.’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं भारत की 1.2 अरब की आबादी से वायदा करता हूं कि न्यायपालिका की आजादी से समझौता नहीं होगा. मैं इस पद को त्यागने वाला पहला व्यक्ति होउंगा यदि न्यायपालिका की आजादी से समझौता हुआ.’’
न्यायमूर्ति लोढा ने अपने विदेश प्रवास के दौरान ही सुब्रमण्यम द्वारा अपनी शिकायत सार्वजनिक करने पर भी अप्रसन्नता व्यक्त की.न्यायमूर्ति लोढा ने कहा कि 28 जून को लौटने पर उन्होंने सुब्रमण्यम से बैठक में उनसे फिर से विचार करने (न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति की सहमति वापस लेने के उनके निर्णय) के लिये कहा. उन्होंने अगले दिन छह पंक्ति के पत्र में अपना निर्णय बताते हुये कहा कि वह इससे पीछे नहीं हट सकते. न्यायमूर्ति लोढा ने कहा कि कुछ दिन बाद प्रधान न्यायाधीश ने एक बार फिर उनसे बात की तो सुब्रमण्यम ने अपना फैसला दोहराया.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘29 जून को जब उन्होंने पत्र लिखकर अपनी स्थिति दोहराई तो मेरे पास प्रस्ताव (न्यायाधीश के रुप में सुब्रमण्यम की नियुक्ति की सिफारिश) वापस लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था.’’ न्यायाधीशों की समिति द्वारा भेजे गये तीन नामों, कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्र, उडीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल और प्रसिद्ध वकील रोहिन्टन नरिमन को सरकार ने स्वीकार कर लिया था.
सुब्रमण्यम द्वारा अपनी सहमति वापस लेने का निर्णय सार्वजनिक किये जाने के बाद सरकार ने कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की लेकिन कानून मंत्रलय के सूत्रों ने कहा कि सरकार को उनकी क्षमताओं पर कोई संदेह नहीं रहा है जबकि पद के लिये उनकी ‘उपयुक्तता’ को लेकर कुछ मसले थे.