नयी दिल्ली:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनावों को 21 वीं सदी का निर्णायक बिंदु बताते हुए कहा कि हमें आम नागरिकों के हक में निष्ठा के साथ कार्य करना है. यदि सफल रहे, तो कोई वजह नहीं कि जनता हमसे नाता तोड़े. जनता ने सभी पारंपरिक जातिगत, धार्मिक और अन्य राजनैतिक समीकरणों की अनदेखी कर उम्मीद की राजनीति को चुना.
इसी क्रम में आगे कहा कि वस्तुत: देश की जनता तो 1967 में ही कांग्रेस से विमुख हो चुकी थी, लेकिन बाद में हुए प्रयोगों से निराश हो कर फिर से कांग्रेस के पास चली गयी. प्रधानमंत्री बनने के बाद रविवार को पहली बार भाजपा मुख्यालय आये मोदी ने यह बातें कार्यकर्ताओं के समक्ष कही. हमारा दायित्व है कि जनता हमसे 10 कदम आगे है, तो हम यह देखें कि उससे कैसे कदम से कदम मिला कर चलें. कैसे उसे आचरण में लाएं. दक्षेस देशों के नेताओं को अपने शपथ ग्रहण समारोह में न्योता देने का जिक्र करते हुए कहा कि सही समय पर किया गया कोई सही फैसला कितना प्रभावकारी हो सकता है, उसका यह एक नमूना है.
इस अंडर करेंट को समझे
मोदी ने कहा कि इससे पहले के चुनावों में राजनीति से ज्यादा जातीय समीकरणों की चर्चा होती थी, पर पहली बार जनता ने इसे परे होकर जनादेश दिया है. सवालिया लहजे में कहा कि आखिर यह कौन सी प्रेरणा व अपेक्षा थी जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक जनता को इस बिंदु से जोड़ रही थी. वस्तुत: यह जनता की आशा का चयन था. एक सामान्य अंडर करंट था. स्थिर सरकार, स्पष्ट जनादेश. ऐसे में सरकार के साथ पार्टी का भी अतिरिक्त दायित्व बढ़ गया है कि जनकांक्षाओं को पूरा करें. देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाने की आवश्यकता है. इसकी वजह से दुनिया भी भारत को उचित सम्मान और दर्जा देगी.
ऐतिहासिक बदलाव पर हो शोध
16 वीं लोकसभा चुनाव की चर्चा करते हुए मोदी ने कहा कि यह 21 वीं सदी का टर्निग प्वाइंट बनने वाला है. इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह शोध का विषय बनने वाला है. समाज विज्ञानी और राजनैतिक पंडितों को चुनाव व भाजपा की जीत का अध्ययन करना चाहिए, जैसा टोनी ब्लेयर के नेतृत्व में लेबर पार्टी की पहली जीत और बराक ओबामा के राष्ट्रपति के तौर पर पहली बार निर्वाचन पर चर्चा हुई थी. इस पर कई पुस्तकें आयीं. यह चुनाव राजनैतिक पंडितों, समाज विज्ञानियों के लिए महत्वपूर्ण चुनौती है. अगर राष्ट्र में इसे उचित महत्व मिलता है, यदि विश्वविद्यालय आगे आते हैं. हम उन सबका दस्तावेजीकरण कर सके. इसे दुनिया के समक्ष पेश कर सके, तो यह बड़ी बात होगी. भारत की जनता आम तौर पर इतिहास को लेकर सचेत नहीं है.