नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने जज के रूप में नियुक्ति संबंधी वारंट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है केंद्र सरकार अगर सिफारिश को वापस भेजती है तो यह उसके अधिकार क्षेत्र में है. इस संबंध में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने वकील इंदिरा जयसिंह की याचिका को अकल्पनीय बताते हुए कहा कि ऐसा पहले कभी नहीं सुना गया है.
इंदिरा जयसिंह ने अपनी याचिका में कहा कि केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट काॅलेजियम की सिफारिश के बावजूद जस्टिस केएम जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्ति को रोक दिया है. ध्यान रहे कि केंद्र ने कॉलेजियम की सिफारिश के आधार पर इंदु मलहोत्रा को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त करने को मंजूरी दे दी, जबकि एएम जोसेफ का नाम कॉलेजियम के पुनर्विचार के लिए वापस कर दिया.
इंदिरा जयसिंह ने कहा है कि 100 से ज्यादा वकीलों ने केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी है कि केंद्र ने जस्टिस केएम जोसेफ के नाम को महत्व क्यों नहीं दिया. उनके अनुसार, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जस्टिस जोसेफ ने केंद्र के उत्तराखंड के संबंध में दिये फैसले को खारिज कर दिया था. उल्लेखनीय है कि 2016 में केंद्र ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाया था, इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस जोसेफ ने इस फैसले को रद्द कर दिया था.
केंद्र के कदम पर आज उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन ( एससीबीए ) ने भी तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की. उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के प्रमुख और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने मल्होत्रा का नाम स्वीकार करने और न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम पर दोबारा विचार के लिए कहने के केंद्र सरकार के कदम को ‘‘ परेशान करने वाला ‘ करार दिया.
वहीं, कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ऊपरी अदालतों में अपने लोग भरना चाहती है.