नयी दिल्ली : राम मंदिर के समर्थन में आये पक्षकारों को उम्मीद है कि 50 सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपना फैसला दे सकता है. इन्होंने बताया कि इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 90 सुनवाई में फैसला दिया था. हालांकि बाबरी मस्जिद से जुड़े पक्षकार ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि केस में दस्तावेजों के अंबार हैं. उन सभी पर प्वाइंट टू प्वाइंट दलीलें रखी जायेंगी. हिंदू महासभा के वकील विष्णु शंकर जैन नेे बताया कि केस में 7 भाषाओं हिंदी, उर्दू, पाली, संस्कृत, अरबी आदि के ट्रांसलेटेड डॉक्युमेंट्स (अनूदित दस्तावेज) जमा हो चुके हैं.
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ज्ञात हो कि इस मामले में 7 साल से पेंडिंग 20 याचिकाएं पहली बार 11 अगस्त,2017 को लिस्ट हुईं. पहले ही दिन दस्तावेजों के अनुवाद पर मामला फंस गया. संस्कृत, पाली, फारसी, उर्दू और अरबी समेत 7 भाषाओं में 9 हजार पन्नों का अंग्रेजी में ट्रांसलेशन करने के लिए कोर्ट ने 12 हफ्ते का वक्त दिया. इसके अलावा 90 हजार पेज में गवाहियां दर्ज हैं. उत्तर प्रदेश सरकार ने ही 15 हजार पन्नों के दस्तावेज जमा कराये हैं.
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुन्नी वक्फ बोर्ड 14 दिसंबर, 2010 को सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. फिर एक के बाद एक 20 याचिकाएं दाखिल होगयीं. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई, 2011 को हाइकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया, लेकिन सुनवाई शुरू नहीं हुई. इस दौरान 7 चीफ जस्टिसबदलगये. सातवें चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने इस साल 11 अगस्त को पहली बार याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.
शिया बोर्ड का कौन-सा प्रपोजलसुप्रीमकोर्ट के रिकॉर्ड में आया?
मुस्लिमों के एक गुट ने उत्तर प्रदेश के शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के बैनर तले कोर्ट में एक मसौदा पेश किया था. इस मसौदे के मुताबिक, विवादित जगह पर राम मंदिर बनाया जाये और मस्जिद लखनऊ में बनायी जाये. इस मस्जिद का नाम राजा या शासक के नाम पर रखने की बजाय मस्जिद-ए-अमन रखा जाये.