-हरिवंश-
जनकवि अवध बिहारी जी ने भितहरवा की आम सभा में कहा कि ‘भितहरवा की पर्ण कुटी ही गांधी की परिभाषा’. सचमुच गांधी के जीवन दर्शन को समझने के लिए इस पर्ण कुटी से बेहतर कोई शास्त्र नहीं है. इस गांव के आम की अमराई में ही गांधी अपनी पत्नी और सहकर्मियों के साथ ठहरे, बाद में अपने हाथों यहां कुटी बनायी. लेकिन आज लोग अवध बिहारी जी के शब्दों में ‘सत्ता मद में अपनी विरासत भूल रहे हैं.’
कुछ वर्षों पूर्व यह इलाका डाकुओं के आतंक से पीड़ित था. इसे बिहार का ‘मिनी चंबल’ कहा जाता था. इन्हीं दिनों चंद्रशेखर इस इलाके में आये थे. उन्हें मालूम हुआ कि पास में ही भितहरवा आश्रम है, जहां पहली बार गांधी जी आ कर ठहरे थे. यहीं से उन्होंने आंदोलन आरंभ किया. इस आश्रम की नींव बा और बापू ने अपने हाथों रखी थी. लंबे अरसे तक बा-बापू और उनके सहकर्मी यहां रहे और अनेक रचनात्मक कार्य आरंभ किये. बा ने यहां एक स्कूल आरंभ किया था.
ये सभी चीजें जर्जर अवस्था में थीं. बा और बाबू द्वारा स्थापित स्कूल-आश्रम की जर्जर अवस्था देख कर जब चंद्रशेखर यहां ‘बापू स्मृति’ को सुरक्षित रखने के लिए सक्रिय हुए, तो तत्कालीन बिंदेश्वरी दुबे सरकार की नींद खुली. इस आश्रम के विकास के लिए ताबड़तोड़ झूठी सरकारी घोषणाएं हुईं. जिस आश्रम की नींव स्वयं बा-बापू ने डाली थी, वहां सरकारी समारोह में शिलान्यास की एक पट्टी लगा दी गयी. उस पर खुदा है कि बिहार सरकार की मंत्री उमा पांडे ने यहां शिलान्यास किया. मूर्खता की यह सीमा वर्णनातीत है. जिस आश्रम स्कूल की नींव खुद बा-बापू ने डाली, वहां मिट्टी के घर और झोपड़ी बनायी, वहां उमा पांडे ने शिलान्यास किया.
स्थानीय लोगों के जनसहयोग द्वारा आरंभ किया गया चंद्रशेखर का यह कार्य काफी आगे बढ़ चुका है. गांव के आसपास के नौजवानों में गांधी के प्रति नयी उत्सुकता जग रही है. अकसर चंद्रशेखर यहां आ कर ठहरते हैं. इसके पूर्व नितांत पिछड़े और घोर देहात सिताबदियारा में चंद्रशेखर ने अदभुत जेपी स्मारक बनाया है. यहां प्रभावती जी के नाम से एक बड़ी लाइब्रेरी भी चल रही है. हाल ही में मध्य प्रदेश के करौंदी में नरेंद्रदेव-लोहिया जी की स्मृति में चंद्रशेखर ने लोहिया स्मारक बनवाने की शुरुआत की है. पिछले दिनों यहां दो दिवसीय सेमिनार भी हुआ. इसमें अनेक मशहूर लोगों ने शिरकत की और दो दिनों तक सामाजिक-आर्थिक समस्याओं पर विचार मंथन होता रहा. इस सम्मेलन का सुखद पहलू यह था कि अनेक बुद्धिजीवियों के साथ जमीन से जुड़े कार्यकर्ता भी इसमें शरीक हुए.
चंद्रशेखर की पहल पर आचार्य नरेंद्र देव की स्मृति में बड़ी-बड़ी योजनाएं और दो समितियां बनी हैं. एक समिति में पुरानी पीढ़ी के उमाशंकर दीक्षित, पंडित कमलापति त्रिपाठी, मधु लिमये, अच्युत पटवर्द्धन, डीडी शर्मा, एमजे अकबर, उदयन शर्मा आदि लोक शरीक हैं. इन रचनात्मक योजनाओं के साथ चंद्रशेखर ने नयी पीढ़ी के अनेक प्रतिबद्ध और निष्ठावान लोगों को जोड़ा है. बिहार के मशहूर संघर्षशील विधायक सुबोधकांत सहाय, आचार्य नरेंद्र देव स्मारक के संबंध में गठित दूसरी समिति के संयोजक हैं. उनके नेतृत्व में देश के नितांत पिछड़े इलाकों के लिए सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रम बन रहे हैं. पिछले दिनों इन जिलों में कार्य करनेवाले कार्यकर्ता पैदल चल कर करौंदी आये थे. अब कालाहांडी में इन लोगों का अगला सम्मेलन हो रहा है. राजीव रंजन, मिर्जापुर के बीरेंद्र जी, श्याम रजक जैसे अनेक उत्साही और प्रतिबद्ध युवक चंद्रशेखर के इस रचनात्मक अभियान में जी-जान से जुड़े हैं.
इन कार्यों से अलग चंद्रशेखर ने भोड़सी, पुणे और रांची के घोर आदिवासी इलाके में भारत यात्रा केंद्र स्थापित किये हैं. चंद्रशेखर की कल्पना है कि भविष्य में ये केंद्र वैचारिक ऊर्जा प्रवाहित करने के स्रोत के रूप में उभरें. उनका प्रयास है कि सिद्धांतहीन राजनीति के इस माहौल में लोग इन केंद्रों के आईने से अपने अतीत और महापुरुषों की झलक पाते रहें और नये समाज के लिए शक्ति ग्रहण करें.