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ऑस्टियोपोरोसिस में इन योगासनों से होगा लाभ
अनुपमा योगाचार्य, इ-मेल : meditatoranupama@gmail.com ऑस्टियोपोरोसिस में ऐसे आसन विशेष उपयोगी होते हैं, जो खड़े रहकर अथवा पीछे झुककर किये जाते हों, जैसे- वृक्षासन, त्रिकोणासन, वीरभद्रासन, पार्श्वकोणासन, ऊष्ट्रासन, शवासन. भुजंगासन, धनुरासन, मरकासन, आदि भी ऑस्टियोपोरोसिस में काफी उपयोगी हैं. ये आसन स्लिप डिस्क, साइटिका, सर्वाइकल, रीढ और कमर दर्द भी दूर करते हैं. ऑस्टियोपोरोसिस के […]
अनुपमा
योगाचार्य, इ-मेल : meditatoranupama@gmail.com
ऑस्टियोपोरोसिस में ऐसे आसन विशेष उपयोगी होते हैं, जो खड़े रहकर अथवा पीछे झुककर किये जाते हों, जैसे- वृक्षासन, त्रिकोणासन, वीरभद्रासन, पार्श्वकोणासन, ऊष्ट्रासन, शवासन. भुजंगासन, धनुरासन, मरकासन, आदि भी ऑस्टियोपोरोसिस में काफी उपयोगी हैं.
ये आसन स्लिप डिस्क, साइटिका, सर्वाइकल, रीढ और कमर दर्द भी दूर करते हैं. ऑस्टियोपोरोसिस के मरीज को आगे झुककर किये जानेवाले आसनों से बचना चाहिए. ऑस्टियोपोरोसिस कैल्शियम की कमी और बोन डेंसिटी कम हो जाने से पैदा होने वाला रोग है. कपालभाति और अनुलोम-विलोम 15-15 मिनट करने से हड्डियां मजबूत रहती हैं और कैल्शियम की कमी दूर होती है.
वृक्षासन :
इससे मांसपेशियों में खिंचाव पैदा होता है. शरीर में संतुलन कायम होता है और हड्डियां मजबूत होती हैं.
– विधि : दोनों पैरों के बीच लगभग आधे फीट की दूरी बनाकर खड़े हों. दायें पैर को हाथों के सहारे बायीं जंघा पर इस प्रकार रखें कि दायें पैर की एड़ी गुप्तांग के पास हो और पंजे की दिशा नीचे की ओर रहे ताकि दायां पांव 90 डिग्री पर आ जाये. दोनों हथेलियों से प्रार्थना की मुद्रा बनाकर हाथों को धीरे से सिर के ऊपर ले जाएं.
इस अवस्था में दोनों बाजू कान से सटे होंगे. कुछ समय तक इस अवस्था में संतुलन बनाये रखने के बाद हाथ को धीरे से नीचे लाएं, फिर दायें पैर को नीचे ले आएंं. यह प्रक्रिया दोनों पैरों से 5 चक्र तक करें.
– सावधानी : अनिद्रा या उच्च रक्तचाप के रोगी इसे न करें.
त्रिकोणासन :
इससे रीढ की हड्डी खुलती है और लचीली बनती है. पीठदर्द दूर होता है.
– विधि : खड़े होकर दोनों पैरों के बीच लगभग ढाई फुट का अंतर रखते हुए अपने हाथों को कंधों के समानांतर फैलाएं. फिर सांस भरते हुए दायें हाथ को सिर के ऊपर ले जाएं ताकि दायां बाजू कान को स्पर्श करने लगे. इसी अवस्था में सांस छोड़ते हुए शरीर को बायीं ओर झुकाएं. घुटना सीधा रखें और बायें बांह बायें पैर पर न टिकाएं. सहज सांस के साथ इस अवस्था में कुछ पल रहने के बाद फिर दायीं ओर से इस क्रिया को दोहराएं. 5 चक्र करें.
भुजंगासन : इस आसन में फन उठाये सर्प के समान आकृति बनती है. इससे रीढ की हड्डी लचीली बनती है.
– विधिः पेट के बल लेट जाएं. घुटनों और एड़ियों को मिलाएं तथा पैरों को तना हुआ
रखें. सांस भरते हुए हाथों को कंधों की सीध में लाएं और हथेलियों को सीने के बगल में इस प्रकार रखें कि कोहनियां ऊपर की ओर उठी हुई हों. ठुड्डी सहित नाभि प्रदेश से ऊपर के हिस्से को ऊपर उठाएं. सांस लेते हुए 30 सेकेंड तक बने रहें. फिर सांस छोड़ते हुए सामान्य अवस्था में आ जाएं. सांस छोड़ते हुए ही सिर को जमीन से स्पर्श कराते हुए शिथिल होने दें. दो-तीन बार करें. – सावधानी : गर्भवती और हर्निया के रोगी न करें.
वीरभद्रासन :
पीठ में खिंचाव पैदा होता है तथा कंधे, बाजू और पीठ की मांसपेशियां सबल होती हैं.
– विधि : सीधे खड़े हो जाएं. दायें पैर को 2 से 4 फुट तक आगे ले जाएं. दायें घुटने को हल्का मोड़ें. बायां पैर सीधा रहे तथा उसका तलवा जमीन के साथ लगा हो. गहरी सांस लेते हुए दोनों हाथों को ऊपर ले जाएं अपने कंधों को आराम दें. दोनों कानों को अपने कंधे के पास न आने दें. अपनी सांस को धीरे से छोड़ते हुए पूर्वावस्था में आ जाएं. इस प्रकिया को बायें पैर से भी दोहराएं.
– सावधानीः गठिया रोगी इसे न आजमाएं. गर्भवती महिलाएं दीवार के सहारे ही इसे करें.
वर्ल्ड ऑस्टियोपारोसिस डे 2020 अक्तूबर को
डॉ रमनीक महाजन
निदेशक, ऑर्थोपेडिक एंड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट, मैक्स हॉस्पिटल, नयी दिल्ली
हमारा शरीर हड्डियों के ढांचें पर टिका है. जब तक हमारी हड्डियां मजबूत रहेंगी, हमारे शरीर का मूवमेंट सुचारु रूप से होगा यानी अपना कार्य सुगमता पूर्वक कर पाने के लिए हड्डियों का मजबूत होना आवश्यक है. हालांकि, उम्र ढलने के साथ ही हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और रोजमर्रा के कामों में तकलीफ होने लगती है.
ऐसा मुख्य रूप से हड्डियों का घनत्व कम होने की वजह से होता है. ऐसे में कई बार हल्के झटके से भी हड्डियां टूट जाती हैं. ऑस्टियोपोरोसिस ऐसा ही रोग है. इसके कारणों और बचाव के बारे में बता रहे हैं हमारे एक्सपर्ट.
हड्डियों के ढांचे पर टिका हमारा शरीर तभी तक फिट रहता है, जब तक हमारी हड्डियां मजबूत हों. उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों का घनत्व (बोन मास डेंसिटी) कम होने लगता है. इसके अलावा हमारे खान-पान और जीवनशैली का असर भी हड्डियों के स्वास्थ्य पर पड़ता है.
हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए विटामिन डी और कैल्शियम होना जरूरी है. कैल्शियम जहां हड्डियों को बनाने में मदद करता है, वहीं विटामिन-डी शरीर में कैल्शियम के अवशोषण में मदद करता है. कैल्शियम के मुख्य स्रोत जहां दुग्ध उत्पाद हैं, वहीं विटामिन-डी के मुख्य स्राेतों में सूर्य की सीधी रोशनी, कुछ मछलियां, अंडे का पीला भाग और दुग्ध उत्पाद हैं.
हालांकि, हम कई कारणों से सूर्य के स्रोत से विटामिन-डी लेने में सक्षम नहीं हैं. इनमें प्रमुख है सूर्य से निकलनेवाली अल्ट्रावायलेट किरणों का डर. इसके अलावा अब ज्यादातर घरों में एसी लगी होती है. लोग गर्मी में घरों से बाहर निकलना नहीं चाहते, कुछ लोगों को सन बर्न और स्किन के काले होने का डर भी होता है. महिलाओं में स्किन कॉन्सस होना या कहीं काले न हो जायें का डर भी उन्हें सन बाथ लेने नहीं देता है.
हड्डियों की कमजोरी के कारण दो तरह की बीमारियां हो सकती हैं. पहला आर्थराइटिस और दूसरा आॅस्टियोपोरोसिस. इनमें आर्थराइटिस के कारण जहां जोड़ों की हड्डियों में परेशानी होती है, वहीं ऑस्टियोपोरोसिस मोटी हड्डियों को कमजोर करती हैं और यह स्पाइनल कॉर्ड से जुड़ी हड्डियों को अधिक नुकसान पहुंचाती हैं. आॅस्टियोपोरोसिस साइलेंट किलर की तरह काम करता है और हड्डियों को धीरे-धीरे कमजोर बनाता है.
इस बीमारी को बुढ़ापे की बीमारी माना जाता था, लेकिन बदलते लाइफ स्टाइल के कारण अब यह कम उम्र में होनेवाली बीमारी भी बन गयी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में मौजूद स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की सूची में कार्डियोवस्कुलर डिजीज के बाद आॅस्टियोपोरिसिस दूसरे नंबर पर आता है.
वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि हमारी हड्डियां तकरीबन 35-40 साल की उम्र तक सबसे ज्यादा कैल्शियम अवशोषित करती हैं, जिससे डेंसिटी या मजबूती कायम करती हैं और नये टिशूज बनाती हैं. ये हड्डियां प्रोटीन, कैल्शियम, फाॅस्फोरस जैसे मिनरल्स, विटामिन-डी जैसे पोषक तत्वों से मिलकर बनती हैं. इनकी मजबूती बनाये रखने के लिए बैलेंस्ड न्यूट्रीशियस डाइट का नियमित सेवन जरूरी है.
लेकिन पोषण से भरपूर डाइट की कमी और अनहेल्दी लाइफ स्टाइल का असर हमारी हड्डियों पर पड़ता है. इससे हड्डियों की मिनरल्स डेंसिटी कम होने लगती है और वह कमजोर हो जाती हैं. समय पर ध्यान न दिये जाने पर यह हल्की चोट और कई बार तो मोच आने पर भी आसानी से टूट जाती है. पीड़ित व्यक्ति आॅस्टियोपोरोसिस का शिकार हो जाता है.
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