नीलम कुमारी
टेक्निकल ऑफिसर झाम्कोफेड
पूजा-पाठ में प्रयोग किये जानेवाली दूब घास औषधीय दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है़ इसकी लता जमीन पर फैलती है़ इसमें प्रत्येक जोड़ से जड़ निकलकर जमीन पर फैलती है़ पत्ते लंबे, रेखाकार, पतले और एक से चार इंच लंबे होते है़ं फूल रहा या बैंगनी रंग का होता है़ बीज अत्यंत छोटे होते है़ं यह घास दो तरह की होती है. हरा : यह बड़े आकार का होता है और सफेद जिसका आकार छोटा होता है, लेकिन औषधीय दृष्टिकोण से यह ज्यादा महत्वपूर्ण है़ संस्कृत में इसे दुर्वा, हिंदी में दूब कहते है़ं इसका वानस्पतिक नाम सायनोडोन डेक्टायलोन है. यह पाेएसी परिवार की घास है़ इसका उपयोगी भाग पंचांग है़
औषधीय उपयोग
यह कफवात और पित जनित बीमारियों में उपयोगी है़ दूब घास शीतल प्रकृति की होती है. यह इसकी सबसे बड़ी विशेषता है़ यह स्वाद में कसैला, मीठापन व कुछ कड़वाहट लिए हुए होती है़ यह घास खून साफ करती है़ पेट और शरीर में जलन की समस्या दूर होती है. त्वचा को स्वस्थ रखती है. इससे जख्म भरता है़ रक्त स्राव रूकता है. दूब घास शरीर की दुर्बलता दूर करती है़ जहरीले कीड़े-मकौड़े के कांटने पर इसका रस प्रयोग किया जाता है़ नेत्र रोग, नाक से खून आना, उल्टी, मुंह के छाले, हैजा, दस्त, चर्म रोग आदि में यह उपयोगी है़
उल्टी : घास का रस निकाल कर उसमें मिश्री मिला कर पीने से उल्टी की समस्या ठीक होती है़
हैजा : घास को चावल के पानी के साथ पीस कर उसमें मिश्री मिला कर प्रयोग किया जाता है़
चर्मरोग : इसकी जड़ का काढ़ा प्रयोग किया जाता है़ दूब को हल्दी के साथ पीस कर लेप करने से दाद, खाज, खुजली, फुंसी आदि की समस्या ठीक होती है.
नेत्र रोग : हरी दूब का रस आंखों के ऊपर लेप किया जाता है़ दूब को महीन पीस कर उसकी गाेली बना कर गीले कपड़े में लपेट कर आंखों के ऊपर थोड़ी देर रखने से जलन और दर्द की समस्या ठीक होती है़
नक्सीर : दूब को पीस कर ललाट पर लेप करना चाहिए. दूब का ताजा रस दो बूंद नाक में डालने से नकसीर बंद हो जाता है़
घाव व चोट : चोट-मोच से यदि खून बहने लगे, तो दूब को पीस कर उसकी पट्टी बांधने से खून का बहना रुक जाता है़ जख्म जल्दी ठीक होता है़ दूब घास एंटीसेप्टिक का काम करती है़
एनिमिया : प्रतिदिन दूब का रस प्रात: काल लेने से शरीर में खून की कमी दूर होती है़ इससे खून साफ होता है़
नोट: चिकित्सीय परामर्श के बाद ही उपयोग करें.