पटना: सुजनी बिहार की लोकप्रिय कला है. ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं वर्षों से इस कला के जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में इसे अपनी आर्थिक उन्नति का आधार बनाये हुए है. बड़ी संख्या में महिलाएं इस कार्य को कर रही हैं. बिहार के कई ऐसे जिले हैं, जहां इस कला को लेकर काफी समय से काम होता रहा है, लेकिन संसाधन के अभाव में यह कला दम तोड़ रही थी. महिला हित में काम करने वाली संस्था ने इस पर ध्यान दिया. पटना में उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान व पटना हाट ने कलाकारों को जगह दी. जिसका काफी उत्साहजनक परिणाम सामने निकल कर आ रहा है.
आकर्षण हो रहा था कम
इलाके में सुजनी का काम पहले भी होता रहा है, पर तब इससे जुड़ी महिलाएं संगठित नहीं थी. इस काम को करने से उन्हें कोई उनकी मेहनत के हिसाब से लाभ नहीं मिल रहा था. छिटपुट तरीके से हो रहे काम को इस स्तर तक सफलता नहीं मिलने का एक कारण असंगठित तरीके से कार्य का ना होना भी था. जिससे इलाके की महिलाओं में सुजनी के प्रति धीरे-धीरे आकर्षण कम हो रहा था. वे इस काम को छोड़ रही थी.
गांव से निकल कर शहर तक पहुंची यह कला
गांव की गलियों में बनने वाली सुजनी की कृति के मुरीद हर तरफ हैं. चाहे वह कोई भी इलाका हो. इसके तहत किसी फूल, सुंदर दृश्य या किसी देवी-देवता की कृति को सुई की सहायता से थीन पेपर पर उकेरा जाता है, जिसके बाद इस पेपर को कपड़े के नीचे रख के कपड़े पर कॉपी कर ली जाती है. बारीकी और मेहनत के इस अद्भुत संगम को सही आकार तब मिलता है, जब यह बन कर तैयार हो जाती है. कलाकार कहते हैं कि इसके ज्यादा खरीदार ट्रेड फेयर में ज्यादा मिलते हैं. गांव की महिलाएं राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली प्रदर्शनी में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करती आ रही हैं. इसके अलावा सरस मेला के साथ-साथ पटना में आयोजित होने वाले बिहार दिवस समारोह में भी अपनी कला का प्रदर्शन किया है. इन सभी जगहों पर इसके खरीदार डिजाइन की प्रशंसा करते हैं. इसके अलावा अगर कोई खरीदार ऑर्डर देता है, तो इसके काम को महिलाएं पूरी कर देती हैं.
कई तरह के हैं कार्य
सुजनी की कढ़ाई ज्यादातर साड़ी के ऊपर की जाती है, इसके साथ ही शॉल, समीज, कुर्ती, फ्रॉक पर भी इसकी कढ़ाई की जाती है. सुजनी कला को आम जीवन में प्रयोग होने वाले सामानों में ही बनाया जाता है. जिसे महिलाएं बहुत पसंद करती हैं. इसके अलावा कुशन कवर, बेड सीट, झोला, मोबाइल हैंडसेट का कवर, टीवी कवर, तकिया कवर और हैंड बैग पर भी इसके कार्य किये जाते हैं. इन सभी का मूल्य रंग के सामंजस्य और कढ़ाई के मुताबिक होता है. साड़ी के ऊपर किये गये कार्य को जहां महिलाएं काफी पसंद करती हैं ़
पिता से िमली प्रेरणा तो सुजनी कला का किया सृजन
यूं तो अब बिहार में कई ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने सुजनी कला को आगे बढ़ाने का काम किया है. लेकिन उनमें से एक हैं, दानापुर निवासी माला गुप्ता. वे बचपन से ही कला सृजन करती आ रही हैं. उन्होंने विवाह के बाद अपने पिता के प्रेरणा से इसे एक प्रोफेशन के रूप में अपनाने का फैसला किया. इन्हें अहमदाबाद में प्रशिक्षण लेने का भी मौका मिला, जिसने इन्हें एक प्रभावी प्रशिक्षक बना दिया. इन्होंने कई महिलाओं को प्रशिक्षण दिया. वे इस कला का सृजन कर अपना घर तक चला रही हैं. इससे उनकी कला में नये आयाम जुड़े. इन्हें सुजनी शिल्प में उत्कृष्ट कृति के लिए वर्ष 2014-15 के राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.