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बच्चे का रोना दूर करना है, तो उसे करीब से समझना होगा

अंकिता जैन स्तंभकार ankita87jn@ gmail.com उस दिन रात हो चली थी, 8 बजे रहे थे. मुझसे मिलने मेरी कुछ सहेलियां आयी थीं. थोड़ी देर हमलोगों ने बात की और फिर मेरा डेढ़ महीने का बेटा रोने लगा. मैं उसे चुप कराने में लग गयी, लेकिन जानती थी कि वह इतनी जल्दी चुप नहीं होगा. उसे […]

अंकिता जैन
स्तंभकार
ankita87jn@
gmail.com
उस दिन रात हो चली थी, 8 बजे रहे थे. मुझसे मिलने मेरी कुछ सहेलियां आयी थीं. थोड़ी देर हमलोगों ने बात की और फिर मेरा डेढ़ महीने का बेटा रोने लगा. मैं उसे चुप कराने में लग गयी, लेकिन जानती थी कि वह इतनी जल्दी चुप नहीं होगा. उसे नींद आ रही थी. वह मेरा साथ चाहता था.
पैदा होने से लेकर अब तक लगभग हर रात मेरी जागते हुए या उसे गोदी में लेकर बैठे हुए बीती थी. इसलिए इतना अंदाजा हो गया था कि रात के वक़्त उसका रोना किसी बीमारी का संकेत नहीं, बल्कि एक रूटीन जैसा हो गया है. तब मैंने जानकारी इकठ्ठा करनी चाही कि आखिर शाम होते ही मेरा बेटा अपना कलेजा बाहर निकालकर क्यों रोता है?
असल में शाम को रोने को लेकर कई भ्रांतियां भी हैं, जैसे बच्चे का पेट दुख रहा है, हींग लगा दो या बच्चा का पेट नहीं भर रहा, वह भूखा रहता है, उसे कोई तकलीफ है आदि. इस तरह की बातों से कई बार मां दिक्कत में पड़ जाती है, वह ख़ुद को हीन समझने लगती है. जबकि असल कारण कुछ और होते हैं.
हम माओं को अपने बच्चे का रोना अगर दूर करना है, तो सबसे पहले हमें उन्हें करीब से, बहुत करीब से समझना होगा. उनके रोना का मतलब हम तभी समझ सकते हैं जब हम उनके रोने का अर्थ निकाल पायेंगे. जितना मैंने अब तक समझा है, बच्चे का रोना भी एक भाषा है. अगर उसे भूख लगी है तो वह अलग तरह से रोता है, अगर उसे और लेटना नहीं है, तो रोने की आवाज़ अलग होती है, वैसे ही जैसे उसे कोई तकलीफ या दर्द होता है तो वह अलग तरह से रोता है.
अगर बच्चे को नींद आ रही है तब भी उसका रोना अलग होता है. डेढ़ महीने के चौबीसों घंटे वाले साथ ने मुझे मेरे बेटे के रोने को डिकोड करना सिखा दिया था. इसलिए पता था कि कब वह सोने के लिए रोता है और कब दर्द या भूख आदि से. जन्म से लेकर इस छोटे-से अंतराल में बच्चा पेट के बाहर की दुनिया से पूरी तरह वाकिफ़ नहीं होता, उसे नहीं पता कि रात होती है तो सोना है और दिन होता है तो उठना है.
बच्चों के रोने को लेकर जो भ्रांतियां हैं, उनके कारण इन वजहों से भी हो सकते हैं, जैसे- बच्चा देर से सोयेगा तो देर तक सोयेगा : अकसर सुबह में माताओं को बहुत काम होते हैं.
इसलिए वह चाहती है कि उसका बच्चा सुबह देर तक सोता रहे, ताकि तब तक वह सारे काम निबटा ले. पर बच्चे प्राकृतिक नियम के हिसाब से चलते हैं- जल्दी सोना, जल्दी उठना. रिसर्च कहती है कि यदि बच्चों को शाम में जल्दी सुलाया जाये तो वे एक भरपूर और अच्छी नींद सो पाते हैं. देर तक जगाने से बच्चे ज्यादा थक जाते हैं, जिससे वे रोना शुरू कर देते हैं. फिर उन्हें नींद आती है, लेकिन वे सो नहीं पाते तो रोने लगते हैं.
ऊपर का दूध दिया करो, पूरी रात सोयेगा : कई लोगों का मानना है कि बच्चों को देसी घुट्टी या गाय का दूध देने से वे पूरी रात सोते हैं. यह कुछ हद तक संभव हो सकता है, लेकिन यह बच्चों की प्राकृतिक बढ़ने की प्रक्रिया को क्षति पहुंचाती है. रात में दो-तीन घंटे में यदि बच्चा मां का दूध पीने के लिए बार-बार उठ रहा है तो यह उसके लिए दो कारणों से अच्छा है.
एक तो यह उसका प्राकृतिक क्रम है, दूसरा बच्चा अपनी भूख को अपने हिसाब से समझने की कोशिश कर रहा है. यदि हम उसे रात्रि में ओवरलोड करके सुला दें, तो हो सकता है वह सारी रात भूख से न उठे, लेकिन ऐसे में उसकी आंतों एवं पाचन शक्ति पर असर पड़ता है. जो उसे धीरे-धीरे पचाना चाहिए था, अब उसके ऊपर इकठ्ठा डाल दिया, जो उसके लिए भविष्य में नुकसानदेह होता है.
अब यदि आप अपने बच्चे को छः माह तक सिर्फ मां का दूध ही देने का निर्णय ले चुके हैं, तो रात में जागने के लिए भी तैयार रहिए. दोनों हाथ में लड्डू तो नहीं मिल सकते ना. मां का दूध बच्चे के लिए सबसे ज्यादा गुणकारी और लाभकारी है, लेकिन साथ ही वह जल्दी पच भी जाता है. इसलिए बच्चों का छोटा-सा पेट जल्दी खाली हो जाता है और भूख उनकी नींद में खलल डालकर उन्हें आपको उठाने के लिए मजबूर कर देती है. पर यह सिर्फ कुछ महीनों की बात है. बच्चे के जीवनभर की तंदुरुस्ती और सेहत के लिए हम मात्र छः माह तक तो इतना कर ही सकते हैं… हैं न ?
याद रखें, जो बच्चे सिर्फ मां के दूध पर छः माह बिताते हैं, वे ज्यादा स्वस्थ भविष्य, एक स्वस्थ बढ़ने की प्रक्रिया और सेहतमंद वजन पाते हैं. ज्यादा थुलथुला करने की चाह में आप अपने बच्चे की चर्बी अभी से मत बढ़ाइए.
सब बच्चे एक जैसे नहीं होते. बच्चे को मोटा करने की चाह में उसे जबरदस्ती मत सुलाइए. न ही फॉर्मूला फीड आदि दीजिए. यह सब सिर्फ तबके लिए जब आप किसी वजह से अपना दूध देने में सक्षम न हों.
कई बार कई लोगों ने मुझे ऐसा कहा कि सुलाने के लिए दूध पिलाने की आदत मत डाल, बच्चा फिर बिना इसके सोयेगा ही नहीं. यह कितना ठीक है, कितना गलत है? असल में बच्चे तभी चैन की नींद सो सकते हैं जब वे अपने आपको सुरक्षित मानें.
ऐसे में मां की छुअन और उसके साथ से ज्यादा सुरक्षित उन्हें क्या लगेगा! इसके अलावा मां के दूध में cholecystokinin नाम का हार्मोन भी होता है, जो मां और बच्चे दोनों के लिए नींद लाने का काम कर देता है. इसके अलावा मां के दूध में tryptophan नामक हार्मोन भी होता है, जो नींद लानेवाला एमिनो एसिड भी है. मां के रातवाले दूध में एमिनो एसिड भी होता है, जो serotonin synthesis में सहायक हिया जिससे जागने-सोने की प्रक्रिया बनती है. इसलिए मां का दूध स्वास्थ के हिसाब से भी बच्चे के लिए लाभकारी है.
अब यदि इसका कोई नुकसान है भी, तो वह इकलौता यह है कि बच्चे को मां का दूध पीकर सोने की आदत हो जायेगी. लेकिन लंबे समय के लिए यह कोई नुकसान नहीं, क्योंकि जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होगा, वहः अपने से सोना सीखने लगेगा.
तब यह आदत उसे परेशान नहीं करेगी. इसलिए यदि आपका बच्चा कलेजा फाड़कर रोता है, तो उसे दूध पिलाएं, लोरी सुनाएं, थोड़ी प्यारी-प्यारी थपकी दें, फिर देखिए वह सो जायेगा. नहीं भी सोता है तो उसे आपके पास रखिए, आपके कलेजे से लगकर वह बेशक चुप हो जायेगा. ऐसा शोध कहती हैं- जो बच्चे दिन बिना किसी परेशानी के बिताते हैं, वे रात भर बिना रोए चैन से सो पाते हैं.
क्रमश:

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