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मस्तिष्क को विश्राम देता है मूर्छा प्राणायाम

मूर्छा का अर्थ है ‘मूर्छित होना.’ इस प्राणायाम द्वारा साधक विषय-जगत की चेतना से मूर्छित हो जाता है. इसके अभ्यास से सिर हल्का हो जाता है और बेहोशी के समान स्थिति हो जाती है. साधक की दृश्य जगत के प्रति आसक्ति समाप्त हो जाती है. उसका देहाभाष (शरीरभान) मिटने लगता है और मन में शक्ति […]

मूर्छा का अर्थ है ‘मूर्छित होना.’ इस प्राणायाम द्वारा साधक विषय-जगत की चेतना से मूर्छित हो जाता है. इसके अभ्यास से सिर हल्का हो जाता है और बेहोशी के समान स्थिति हो जाती है. साधक की दृश्य जगत के प्रति आसक्ति समाप्त हो जाती है. उसका देहाभाष (शरीरभान) मिटने लगता है और मन में शक्ति आती है.
अभ्यास की विधि
ध्यान के किसी आरामदायक आसन में बैठ जाएं, सिर, मेरुदंड और गरदन एक सीधी लाइन में दोनों हाथ घुटनों के ऊपर अपने पूरे शरीर को शांत व शिथिल बनाने का प्रयास करें. अब आप अपने हरेक आते-जाते श्वसन-प्रश्वसन के प्रति सजग बनें और उसे धीमा तथा गहरा होने दें.
अब धीरे से खेचरी मुद्रा लगाते हुए अपने सिर को थोड़ा पीछे की ओर झुकाते हुए उज्जायी प्राणायाम के साथ दोनों नासिका छिद्रों से धीरे-धीरे सांस लें और अपनी आंखों को अपने दोनों भोहें के बीच देखते हुए शांभवी मुद्रा मुद्रा लगाएं. अब आप दोनों हाथों को घुटनों के ऊपर दबाते हुए अपनी कोहनियों को सीधा करते हुए अपने दोनों हाथों को पूरा सीधा करें.
इस अवस्था में क्षमता के अनुसार सांस को अंदर रोकेंगे. अब अपने हाथों को ढीला करते हुए अपनी सांस छोड़ें. अपनी आंखें बंद कर लें और धीरे-धीरे सिर को सीधा करें. आंखों को बंद रखते हुए शरीर को शिथिल छोड़ दें. अाप हल्का और शांति का अनुभव करेंगे. यह अभ्यास का एक चक्र हुआ.
अवधि : मूर्छा प्राणायाम से अधिक लाभ पाने के लिए इसका अभ्यास एक घंटा तक किया जा सकता है. किंतु नये अभ्यासी को शुरू में 10 मिनट करना पर्याप्त होगा. दैनिक अभ्यास के साथ इसकी अवधि आप धीरे-धीरे बढ़ा सकते हैं. लेकिन, तनाव और दबाव न आने दें. जब मूर्छा या बेहोशी का अनुभव होने लगे, तो अभ्यास बंद कर दें. मूर्छा प्राणायाम के अभ्यास का उत्तम समय आसनों के पश्चात और ध्यानाभ्यास के पहले माना गया है. सोने से पहले भी यह अभ्यास लाभदायक है.
सावधानियां : यह अभ्यास सिर में हल्केपन या बेहोशी की अवस्था लाता है. इसलिए इसे किसी विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए.इस प्राणायाम का अभ्यास इतना नहीं करना चाहिए कि बेहोश हो जाएं. अत: अभ्यास के दौरान जैसे ही मूर्छा का अनुभव होने लगे, तो तुरंत अभ्यास बंद कर दें.
सीमाएं : मूर्छा प्राणायाम का अभ्यास उच्च रक्तचाप, सिर में चक्कर आना या मस्तिष्क में चोट लगना और हृदय या फेफड़े के रोगों से पीड़ित लोगों को नहीं करना चाहिए.
इसके अलावे जिन्हें मिर्गी, मस्तिष्क विकार या कैरोटिड धमनियों के विकारवाले रोगियों को अभ्यास नहीं करना चाहिए. इस अभ्यास का लक्ष्य अर्ध-मूर्छा की अवस्था को प्राप्त करना होता है, न कि पूर्ण अचेतावस्था में जाना.
ध्यान दें : आरंभ में कुशल योग प्रशिक्षक का मार्गदर्शन जरूर प्राप्त करें, अन्यथा नुकसान हो सकता है.
संपूर्ण शरीर को देता है आराम
मूर्छा प्राणायाम एक शक्तिशाली अभ्यास है. इसमें जैसे-जैसे कुंभक की अवधि बढ़ती है. वैसे-वैसे आनंद में वृद्धि होती जाती है. इसके अभ्यास से संपूर्ण शरीर और मस्तिष्क को अपार विश्राम मिलता है. व्यक्ति का बहिर्मुखी मन स्वत: अंतर्मुखी होने लगता है. अत: धीरे-धीरे वह बाह्य जगत के अनुभवों जैसे- गंध, स्पर्श इत्यादि संवेदनाओं से संबंध विच्छेद कर लेता है.
धीरे-धीरे मस्तिष्क विचार रहित हो जाता है. इसके पश्चात स्वत: ध्यान और परमानंद की प्राप्ति होती है.यह प्राणायाम ध्यान की तैयारी के लिए एक उत्तम अभ्यास है, क्योंकि यह मन को अंतर्मुखी बना कर अतिन्द्रिय स्थिति का अनुभव दिलाने में सहायक होता है. इसके अलावे यह प्राणायाम तनाव, चिंता, क्रोध, स्नायु रोगों एवं अन्य मानसिक समस्याओं से मुक्ति दिलाता है. तथा यह शरीर के प्राण में वृद्धि करता है.

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