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अभिषेक बच्चन महिला कलाकारों को बहुत सुरक्षित महसूस करवाते हैं- निमरत कौर

अभिनेत्री निमरत कौर जल्द ही जिओ स्टूडियो और नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो रही फिल्म दसवीं में नज़र आनेवाली हैं. फ़िल्म लंचबॉक्स के बाद वह दसवीं में अपने किरदार बिमला देवी को सबसे चुनौतीपूर्ण करार देती हैं.

अभिनेत्री निमरत कौर जल्द ही जिओ स्टूडियो और नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो रही फिल्म दसवीं में नज़र आनेवाली हैं. फ़िल्म लंचबॉक्स के बाद वह दसवीं में अपने किरदार बिमला देवी को सबसे चुनौतीपूर्ण करार देती हैं. इस फ़िल्म में उन्हें दर्शकों के रिएक्शन का बेसब्री से इंतज़ार है. निमरत हिंदी प्रोजेक्ट्स के साथ साथ विदेशी शोज का भी लगातार हिस्सा बनती रही हैं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत.

इस फ़िल्म के लिए आपने अपना 15 किलो वजन बढ़ाया है किरदार के लिए बॉडी ट्रांसफरमेशन एक्टिंग में कितना फर्क ले आता है?

बहुत फर्क पड़ता है. वो जो एक रौब बनता है. एक बॉडी लैंग्वेज आती है. सिर्फ वजन बढ़ाने से ही नहीं बल्कि वजन घटाने से भी यह आता है. टेस्ट केस सीरीज के लिए मैंने अपने सबसे बेस्ट शेप में थी तो उसने मेरे किरदार में जो एक एनर्जी, फुर्ती चाहिए थी वो ले आया. दसवीं में उसका उल्टा हुआ. मेरे हाइट की लड़की जब 15 किलो वजन बढ़ाएगी तो वो मेरी बॉडी लैंग्वेज सब पर फर्क लेकर ही आएगा. प्रोस्थेटिक मेकअप से आप वो न्याय अपने किरदार के साथ नहीं कर सकते हैं. जो नेचुरल तरीके से मोटे पर कर सकते हैं.

यह फ़िल्म शिक्षा व्यवस्था पर है ,अपने स्कूल,कॉलेज के दिनों में पढ़ने में कितनी अच्छी थी?

मैं बहुत पढ़ाकू थी साथ ही बहुत शरारती भी. मैं अपने स्कूल डीपीएस में कल्चरल और डिसिप्लिन सेक्रेटरी थी. मैंने उस पोजिशन का खूब गलत फायदा उठाया है. खुद शरारतें करती थी और दूसरों पर उसका इल्जाम डाल देती थी. वैसे मैंने दसवीं में90 प्रतिशत नंबर लाया था सर्विस बैकग्राउंड मिडिल क्लास फैमिली तो हमेशा से हमारे घर में शिक्षा को बहुत महत्व दिया जाता था. एक्टिंग करने का जब फैसला किया तो घरवालों ने साफ कर दिया था कि डिग्री तो आपके पास होनी ही चाहिए. मेरे पिता रिटायरमेंट के बाद अपने गांव जाकर स्कूल शुरू करना चाहते थे. वो शिक्षा को बहुत महत्व देते हैं. मेरे चाचाजी पढ़े लिखे नहीं थे इसका मेरे पिता को बहुत अफसोस था. शिक्षा एक ऐसी चीज़ है. जो आपसे कोई नहीं छीन सकता है. बाकी हर चीज़ छीनी जा सकती है.

फ़िल्म के ट्रेलर लॉन्च के बाद से अभिषेक, निर्देशक तुषार और निर्माता दिनेश विजन आपकी तारीफ कर रहे हैं क्या इतनी तारीफ आपको प्रेशर में डालती है?

मेरे साथ ऐसा नहीं है।जब मैं किसी चीज़ को कमिट कर लेती हूं कि मैं वो करूंगी तो मैं अपना बेस्ट देती हूं. अब उसके बाद मुझे पीछे मुड़कर ये ना सोचना पड़े कि यार मैंने इसके साथ न्याय नहीं किया. उतनी मेहनत नहीं की. जितनी करनी चाहिए थी. वो सोच मुझे सबसे ज़्यादा प्रेशर में ये बात डाल सकती है और वो मेरे करियर का आखिरी दिन हो सकता है. लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं. मैं अच्छी एक्टर हूं या नहीं हूं. ये सब नहीं सोचती हूं. मैं अपनी ही दुनिया में रहती हूं. मुझे दूसरों की राय ज़्यादा प्रभावित नहीं करती है. मैं बचपन से ही ऐसी हूं.

क्या आलोचनाएं भी आपको परेशान नहीं करती हैं?

उससे होती हूं और मैं जानना चाहती हूं कि लोगों की क्या राय है. कल हमारी फ़िल्म की स्क्रीनिंग थी. मेरी ये जानने में ज़्यादा रुचि थी कि क्या कमी मेरे परफॉरमेंस में रह गयी. क्या अच्छा था वो नहीं जानना. क्या और अच्छा हो सकता है. ये जानने में मुझे बहुत रुचि रहती है ताकि खुद को मैं बेहतरीन बना सकूं.

आपकी लाइफ में सबसे बड़ा क्रिटिक कौन है?

मेरी मां,वे बहुत ही सिंपल शब्दों में बहुत गहरी बात बोल जाती हैं.

अभिषेक बच्चन को कोएक्टर के तौर पर किस तरह से परिभाषित करेंगी?

मैं उन्हें रेटिंग दूंगी तो कोएक्टर के तौर दस में से दस देना चाहूंगी. उनके साथ काम करके आपको पता चल जाएगा कि उनकी परवरिश कितने बेहतरीन ढंग से हुई है. वह एक महिला कोएक्टर को बहुत सुरक्षित महसूस करवाते हैं. वे कमाल के स्टोरी टेलर हैं. सेट पर वो हमेशा आपको एंटरटेन करते रहते हैं. उनकी इतनी बड़ी लिगेसी है कवियों और महान एक्टर्स की लेकिन वे एकदम नार्मल रहते हैं.

लंच बॉक्स से आपने इंडस्ट्री शुरुआत की लेकिन अब तक आपने बहुत कम प्रोजेक्ट्स में ही नज़र आयी हैं?

मैं बाहर काम करने जाती हूं तो वहां के काम में छह आठ महीने चले जाते हैं. होमलैंड की है अभी एक एप्पल टीवी के लिए वेब सीरीज करने जा रही हूं. वेस्ट में काम खत्म करने के बाद वापस मुम्बई आओ तो लोग सोचते हैं कि आप एले में रहते हैं. उन्हें समझाना पड़ता है कि भइया मैं एले में नहीं रहती हूं. मैं वहां बस शूट करती हूं. मुझे मुम्बई से बहुत प्यार है. कहीं दूसरी जगह मुझे रहना नहीं है. वापस आकर फिर से यहां लोगों से जुड़ती हूं और प्रोजेक्ट करती हूं. एले जब जाती हूं तो वहां भी लोग यही कहते हैं कि आप यहां क्यों नहीं ज़्यादा काम करते हैं तो बात ये है कि मैं दोनों इंडस्ट्री में सक्रिय हूं इसलिए दोनों में चुनिंदा प्रोजेक्ट्स में दिखती हूं. भगवान करें लोग यही पूछे कि आप कम काम क्यों कर रही हैं (हंसते हुए) ये ना बोले कि आपको नहीं देखना है.

आमतौर पर देखा जाता है कि वेस्ट में काम करने के बाद एक्टर्स अपना बेस वहां ही बनाने लगते हैं, लेकिन आपका कहना है मुम्बई के बिना आप नहीं रह सकती हैं?

मैं यहां के रहन सहन में बहुत सहज हूं, विदेश की ज़िंदगी मुझे एलियन लगती है. काम में कहीं भी कर सकती हूं लेकिन घर मेरा भारत ही रहेगा. दसवीं की रिलीज के बाद वेस्ट की एक वेब सीरीज फाउंडेशन सीजन 2 के लिए प्राग जा रही हूं. एक डेढ़ महीने का काम रहेगा. उसके बाद मुम्बई आने के बाद एक हिंदी वेब सीरीज की शूटिंग शुरू करूंगी.

आपने इरफान खान साहब के साथ अपने करियर की शुरुआत की है,उनका जाना इंडस्ट्री की कितनी बड़ी क्षति मानती हैं?

अभी हाल ही में लेखक रितेश से मेरी बात हो रही थी. उनके जाने के बाद एक पॉसिबिलिटी चली गयी है जैसे हमलोग मिस्टर बच्चन को देखते हैं. उनके साथ एक पॉसिबिलिटी है कि ये काम को कहा ले जाएंगे. वैसा ही इरफान साहब के साथ था. ये पार्ट अगर इरफान करते तो कैसा करते. ये हमेशा रह अब जायेगा.

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