नयी दिल्ली :महिलाओं के मुद्दे उठाने के लिए जानी जाने वाली कार्यकर्ता और नंदिता दास को लगता है कि महिलाएं अभी भी हाशिये पर हैं और दैनिक जीवन में उन्हें असमानता का सामना करना ही पड़ता है. नंदिता ने बताया कि वर्ष 2008 में जब वह हिंदी राजनीतिक थ्रिलर ‘फिराक’ का निर्देशन कर रही थीं तब उनका सामना कई बार इस समस्या से हुआ. उन्होंने कहा, फिराक का निर्देशन करते समय कई लोगों ने मुझसे पूछा कि एक महिला निर्देशन कैसे कर सकती है.
लेकिन असल बात यह है कि निर्देशन करते समय आप यह नहीं सोचते कि आप महिला हैं या नहीं. हाल ही में नंदिता ने ऑक्सफैम इंडिया द्वारा आयोजित एक गोष्ठी ‘वूमेन्स लीडरशिप’ में भाग लिया था.
44 वर्षीय अभिनेत्री ने बताया, महिला होने के नाते मैं चीजों को अलग नजरिये से देखती हूं. उदाहरण के लिए, अगर फिल्म हिंसा के बारे में है तो महिला का नजरिया पुरुष के नजरिये से अलग होगा. उन्होंने कहा, अलग-अलग सोच और अलग राय का होना महत्वपूर्ण है. नंदिता ने कहा, मेरे कई नारीवादी मित्रों ने बताया कि ऐसे विषय पर मुङो फिल्म करते देख वह आश्चर्यचकित रह गये, जो महिला उन्मुखी नहीं हैं. लेकिन महिला होने के नाते हम पर कई मुद्दों का असर पड़ता है और हम अलग-अलग मुद्दों पर प्रतिक्रिया भी भिन्न-भिन्न देते हैं.