फिल्म :डर एट द मॉल
निर्देशक:पवन कृपलानी
कलाकार:जिम्मी शेरगिल, नुसरत भरूचा, अरिफ जकारिया
संगीतकार:शंकर एहसान लॉय
रेटिंग:दो
हिंदी सिनेमा में हॉरर फिल्मों का अपना एक दर्शक वर्ग रहा है. यह दर्शक वर्ग इस जॉनर के लिए वफादार रहा है यही वजह है कि बदलते समय के साथ हॉरर जॉनर बी ग्रेड के फिल्मकारों को नहीं बल्कि ए ग्रेड की निर्देशकों की पसंद बन गयी है मगर विडंबना यह है कि कहानी के नाम पर आज भी इस जॉनर की फिल्मों में कुछ खास नहीं हो पाया है. इसी की अगली कड़ी रागिनी एमएमएस फेम पवन कृपलानी की फिल्म डर एट मॉल है.
बदले की कहानी इस फिल्म की भी है. फिल्म की कहानी एक मॉल की है, जहां अजीबोगरीब परिस्थितियों में अब तक आठ लोगों की मौत हो चुकी है. नया सिक्योरिटी गार्ड विष्णु( जिम्मी शेरगिल) की एंट्री होती है. वह अजीबोगरीब मॉल में हो रहे हादसों के बारे में पता लगाता है. जहां मालूम होता है कि उन सारी मौतों का जिम्मेदार कुछ आत्माएं हैं. साथ ही यह भी मालूम होता है किमॉल के मालिक आरिफ जकारिया ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर अमिटी नामक एक अनाथालय में रह रहे बच्चे और नन को जिंदा जला दिया था ताकि वह जमीन हथियाकर उस पर यह मॉल बना सकें.
वे आत्माएं अपना बदला किस तरह से लेती है. इसी के इर्द–गिर्द फिल्म की कहानी है. कहानी में उसी अनाथालय के बच्चों में से एक विष्णु का होना थोड़ा अजीब सा लगता है. कहानी में इसकी कोई जरुरत नहीं लगती थी. डरावने चेहरे और डरावनी आवाज के जरिये डराने का प्रयास विफल है. फिल्म को देखते हुए डर कम, हंसी ज्यादा आती है. अभिनय के मामले में आरिफ जकारिया ठीक रहे हैं. जिम्मी शेरगिल सहित बाकी सभी कलाकार निराश करते हैं. कुल मिलाकर डर एट द मॉल अपनी कमजोर कहानी और कलाकारों के परफॉर्मेस की वजह से कमजोर फिल्म साबित होती है.