II अनुप्रिया अनंत II
फिल्म : तेरे बिन लादेन डेड या अलाइव
कलाकार : पद्युमन, मनीष पॉल,सिंकदर खेर, पीयूष मिश्रा
निर्देशक : अभिषेक शर्मा
रेटिंग : 3 स्टार
अभिषेक शर्मा इस बार ‘तेरे बिन लादेन’ का सीक्वल लेकर आये हैं. उन्होंने अपनी बातचीत में यह बात स्पष्ट की थी कि फिल्म में उन्होंने पूर्णरूप से सीक्वल और पहली फिल्म के कई हिस्से नहीं लिये हैं. उन्हें सिर्फ संदर्भ के रूप में ही इस्तेमाल किया है. अभिषेक अपनी इस सोच में कामयाब भी दिखे हैं. फिल्म की कहानी ओसामा बिन लादेन की अमेरिका की घोषणा के बाद शुरू होती है. यह एक व्यंग्यात्मक कॉमेडी है.
ओसामा मर चुका है. यह घोषणा अमेरिका ने की थी. लेकिन अब तक इस पर कोई सबूत अमेरिका ने नहीं दिया है. यह फिल्म इस मुद्दे को हास्य अंदाज में प्रस्तुत करती है. फिल्म का पहला हिस्सा जिस अंदाज में लिखा गया है और जिस तरह प्रस्तुत किया गया है. वह मजेदार है. निर्देशक ने कई पंच और वन लाइनर के माध्यम से फिल्म को मजेदार बनाने का प्रयास किया है. एक तरफ अमेरिका की टीम है, जो चाहती है कि साबित हो जाये कि ओसामा मारा गया है.
दूसरी तरफ आतंकवादियों का संगठन चाहता है कि ओसामा जिंदा रहे क्योंकि ओसामा के जिंदा रहने पर ही उन्हें निश्चित फंड मिलते हैं, जिनसे उनकी जीवनी चलती है. निर्देशक ने दरअसल, इन सारे किरदारों के माध्यम से एक हकीकत दर्शकों के सामने रखने की कोशिश की है कि आखिरकार इस तरह के मुद्दे किस तरह आकार लेते हैं. इसका चिट्ठा खोलने की कोशिश करती है. राष्ट्रपति को मिस्टर प्रेसिडेट कह कर संबोधित किया गया है. मिस्टर प्रेसिडेंट के सहायक उनके दाहिने हाथ मिस्टर डेविड तय करते हैं कि वह ओसामा को ढूंढ लायेंगे और इसी क्रम में वे फिल्मी ओसामा से टकराते हैं.
वहां दूसरी तरफ आतंकवादियों के सरदार को भी ओसामा चाहिए. इस पूरे चक्रव्यूह में फिल्मी ओसामा उर्फ पद्दी फंस जाता है. फिल्म में बॉलीवुड व बॉलीवुड के कलाकारों की हॉलीवुड को लेकर लाड़ टपकाने वाली फितरत को बखूबी दर्शाया गया है. निर्देशक ने फिल्म के पहले हिस्से में अधिक मेहनत किया है. लेकिन अंतराल के बाद कहानी फीकी पड़ने लगती हैं. सारे दृश्य औपचारिक हो जाते हैं. आप अनुमान लगा सकते हैं कि आगे क्या होने वाला है. इन वजहों से फिल्म कमजोर होने लगती है.
जिस गति में निर्देशक ने फिल्म के कुछ दृश्य और किरदारों को गढ़ा, वह ब्लैक कॉमेडी के तर्ज पर नजर आयी थी. और बेहद रोचक तरीके से वह दर्शकों के सामने भी आयी. लेकिन अंतराल के बाद दृश्यों में दिलचस्पी कम होती है. किरदार थके से लगने लगते हैं. वह गति बरकरार नहीं रह पाती और शायद यही वजह है कि अंत आते आते फिल्म अपना अंदाज खो बैठती है. इसके बावजूद फिल्म में कुछ किरदारों के अभिनय की वजह से फिल्म औसत से अधिक बनी है. फिल्म में आपका खास ध्यान आकर्षित करते हैं सिकंदर खेर, वे फिल्म में दो भूमिकाओं में हैं.
मिस्टर चड्डा और मिस्टर डेविड के किरदार में उन्होंने बेहतरीन प्रस्तुती है. फिल्म में उन्हें ही सबसे बेहतरीन अभिनय करने के मौके दिये गये हैं. खास कर डेविड के रूप में उनकी अदाकारी बेहतरीन है. उनके चेहरे के हाव भाव बिल्कुल फिट बैठे हैं. पद्ुमन जिन्होंने फिल्म में ओसामा का किरदार निभाया है. वे फिल्म के लेखक भी हैं, इस लिहाज से उन्होंने किरदार को गढ़ने और संवाद लिखने में कुशलता दिखायी है. यकीनन उनसे बेहतरीन यह किरदार और कोई नहीं निभा सकता था. पीयूष मिश्रा व उनके सहयोगी कलाकारों ने भी फिल्म में कई बेहतरीन दृश्य दिये हैं, जिन पर काफी हंसी आती है.
मनीष पॉल को फिल्म में काफी स्कोप दिये गये. लेकिन मनीष अपनी बनी बनाई इमेज से बाहर ही नहीं निकल पाये हैं. वे कई दृश्यों में बहुत अधिक लाउड हैं, जो कि कानों और आंखों दोनों को चुभती है. कुछेक दृश्यों में उनके हाव भाव कमाल के हैं. लेकिन पीयूष मिश्रा, सिंकदर खेर, पदयुमन के सामने वे कमजोर कड़ी रहे हैं. फिल्म में ओबामा का किरदार निभा रहे कलाकार की भी तारीफ करनी होगी. उन्होंने बिल्कुल हूबहू किरदार को निभाया है. अली जफर के दृश्य और गाने फिल्म को मनोरंजक बनाये रखने में सहायक हुए हैं.
अभिषेक ने फिल्म के दृश्य में अपना स्टाइल स्टेटमेंट दिया है और वे काफी मजेदार रहा है. फिल्म के क्लाइमेक्स को और रोमांचक बनाया जा सकता था.फिल्म की खास बात यह है कि निर्देशक कई दृश्यों में व्यंग्यात्मक तरीके से कई सारी हकीकत बयां कर जाते हैं. ओसामा को लेकर ओबामा की सोच, अमेरिकी राजनीति की नीतियों की थोड़ी बहुत जानकारी हमें मिलती है.
डायरेक्टर्स मास्टर स्ट्रोक : तालिबानियों से युद्ध के दौरान गधे के मुख में लाउडस्पीकर लगा कर अलार्म बजाना.
मिस्टर प्रेसिडेंट पर आधारित गीत है काफी मनोरंजक