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हरिवंश राय की भूमिका निभाना चाहते हैं अमिताभ

नयी दिल्ली : अभिनय से अलग देश के सजग नागरिक की तरह विभिन्न समस्याओं का जिक्र करते हुए फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने यहां कहा कि उनकी ख्वाहिश है कि वह पर्दे पर अपने पिता डा. हरिवंश राय बच्चन की भूमिका को साकार करें.अमिताभ बच्चन कल रात द पेंग्विन एनुएल लेक्चर 2013 में अपना संबोधन […]

नयी दिल्ली : अभिनय से अलग देश के सजग नागरिक की तरह विभिन्न समस्याओं का जिक्र करते हुए फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने यहां कहा कि उनकी ख्वाहिश है कि वह पर्दे पर अपने पिता डा. हरिवंश राय बच्चन की भूमिका को साकार करें.अमिताभ बच्चन कल रात द पेंग्विन एनुएल लेक्चर 2013 में अपना संबोधन देने जब स्टेज पर आये तब उनके हाथ में किताबें थी और उनमें कई बुकमार्क लगे हुए थे. वह गहरे नीले रंग का सूट पहने हुए थे.

एक श्रोता के सवाल के जवाब में बच्चन ने कहा, यदि उन्हें मौका मिले तो वह अपने पिता और हिन्दी में हालावाद के प्रवर्तक डा. हरिवंश राय बच्चन की भूमिका को पर्दे पर निभाना पसंद करेंगे. यह पूछे जाने पर की वह किस फिल्म को सबसे बेहतरीन फिल्म मानते हैं तो उन्होंने कहा कि दिलीप कुमार अभिनीत गंगा जमुना को वह सबसे बेहतरीन फिल्म मानते हैं और दिलीप साहब के किरदार को पसंद करते हैं.

हालांकि, अपनी पसंदीदा किताब और लेखक के बारे में पूछे गये सवाल को वह टाल गये और कहा कि वह हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं की किताबें पढ़ते हैं. कविता की किताबों का प्रकाशन कम होने की बात को स्वीकार करते हुए अमिताभ बच्चन ने कहा कि किताबें व्यक्ति को शिक्षित करती हैं और इन्हें वही पढ़ सकता है, जो साक्षर होगा. लेकिन फिल्में गैर साक्षर व्यक्ति भी देख सकता है. किताबें व्यक्ति की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं.

अमिताभ ने कहा कि फिल्मों की कोई सीमा नहीं होती है और यह लोगों को एकजुट करती हैं. फीचर फिल्मों ने तमिल, उर्दू सहित कई भारतीय भाषाओं की कहानियों को अपनाया है. अमिताभ ने कहा कि भारतीय फिल्म उद्योग और अन्य प्रदर्शन कलाओं की सभी धर्मों, भाषाओं और संस्कृति में दिलचस्पी है. संयुक्त राष्ट्र के दूत अमिताभ ने अपने संबोधन में देश में शिक्षा की कमी, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में कम महिला शिक्षा दर, दहेज हत्या, बलात्कार के मामलों, वेश्यावृत्ति, तेजाब हमले और महिलाओं पर हो रहे अत्याचार संबंधी अन्य मामलों का जिक्र किया.

उन्होंने इस संदर्भ में बच्चन की कविता खून के छापे का भी पाठ किया और कहा कि हर व्यक्ति इन छापों को मिटा देगा या उस पर पुताई कर देगा. लेकिन संवेदनशील व्यक्ति इन खून के छापों को कभी अपनी दीवार से नहीं मिटाता.

उन्होंने कहा कि वह कोशिश कर रहे हैं कि बालिकाओं के लिए फिर से स्कूल बनाये जाये. सही मायनों में समानता तब तक नहीं आयेगी जब तक हम शिक्षा का प्रचार प्रसार नहीं करते. 71 वर्षीय अभिनेता ने कहा कि सभी कलाकार एक तरह के धरातल पर और एक तरह के प्रतीकों से अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. लेकिन उसके दर्शक अपने अपने तरीके से इन प्रतीकों को देखते हैं.

कालेज के दिनों को याद करते हुए अभिनेता ने बताया कि हमारे वक्त में स्नातक करना बड़ी बात थी और इसके बाद नौकरी नहीं मिलने से हम सभी दोस्त परेशान थे. दिल्ली का काफी हाउस हमारे मिलने का स्थान था. एक दिन एक दोस्त ने कहा, हमारे माता पिता ने हमें न ही पैदा किया होता और न ही यह समस्या होती.

उन्होंने कहा, यह बात मुझे जम गयी। इसके बाद पहली और आखिरी बार मैंने अपने बाबूजी के सामने जाकर (यह) बात कह दी. वह चुप रहे और अगले दिन एक कागज मेरे तकिये के नीचे रखा था, जिसमें लिखी कविता में उनका उत्तर था. उन्होंने वह कविता भी पढ़कर सुनायी. इस कविता में जिन्दगी की कशमकश से परेशान नई पीढ़ी की व्याकुलता दर्शायी गयी है.

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