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कसमें वादे प्यार वफा सब बातें हैं…

भारतीय शास्त्रीय संगीत में पॉप का जुझारुपन घोलने वाले सुरों के सरताज मन्ना डे हिंदी सिनेमा के उस स्वर्ण युग के प्रतीक थे जहां उन्होंने अपनी अनोखी शैली और अंदाज से पूछो ना कैसे मैंने, ए मेरी जोहराजबीं और लागा चुनरी में दाग जैसे अमर गीत गाकर खुद को अमर कर दिया था.मोहम्मद रफी , […]

भारतीय शास्त्रीय संगीत में पॉप का जुझारुपन घोलने वाले सुरों के सरताज मन्ना डे हिंदी सिनेमा के उस स्वर्ण युग के प्रतीक थे जहां उन्होंने अपनी अनोखी शैली और अंदाज से पूछो ना कैसे मैंने, ए मेरी जोहराजबीं और लागा चुनरी में दाग जैसे अमर गीत गाकर खुद को अमर कर दिया था.मोहम्मद रफी , मुकेश और किशोर कुमार की तिकड़ी का चौथा हिस्सा बनकर उभरे मन्ना डे ने 1950 से 1970 के बीच हिंदी संगीत उद्योग पर राज किया.

पांच दशकों तक फैले अपने करियर में डे ने हिंदी, बंगाली, गुजराती , मराठी, मलयालम , कन्नड और असमी में 3500 से अधिक गीत गाये और 90 के दशक में संगीत जगत को अलविदा कह दिया. 1991 में आयी फिल्म प्रहार में गाया गीत हमारी ही मुट्ठी में उनका अंतिम गीत था.

महान गायक आज बेंगलूर में 94 साल की उम्र में दुनिया से रुखसत हो गये. यह संगीत की दुनिया का वह दौर था , जब रफी, मुकेश और किशोर फिल्मों के नायकों की आवाज हुआ करते थे लेकिन मन्ना डे अपनी अनोखी शैली के लिए एक खास स्थान रखते थे. रवींद्र संगीत में भी माहिर बहुमुखी प्रतिभा मन्नाडे ने पश्चिमी संगीत के साथ भी कई प्रयोग किए और कई यादगार गीतों की धरोहर संगीत जगत को दी.

पिछले कुछ सालों से बेंगलूर को अपना ठिकाना बनाने वाले मन्ना डे ने 1943 में तमन्ना फिल्म के साथ पार्श्व गायन में अपने करियर की शुरुआत की थी. संगीत की धुनें उनके चाचा कृष्ण चंद्र डे ने तैयार की थीं और उन्हें सुरैया के साथ गीत गाना था. और सुर ना सजे, क्या गाऊं मैं रातों रात हिट हो गया जिसकी ताजगी आज भी कायम है.

950 में मशाल उनकी दूसरी फिल्म थी जिसमें मन्ना डे को एकल गीत ऊपर गगन विशाल गाने का मौका मिला जिसे संगीत से सजाया था सचिन देव बर्मन ने.1952 में डे ने एक ही नाम और कहानी वाली बंगाली तथा मराठी फिल्म अमर भुपाली के लिए गीत गाए और खुद को एक उभरते बंगाली पार्श्वगायक के रूप में स्थापित कर लिया.

डे साहब की मांग दुरुह राग आधारित गीतों के लिए अधिक होने लगी और एक बार तो उन्हें 1956 में बसंत बहार फिल्म में उनके अपने आदर्श भीमसेन जोशी के मुकाबले में गाना पड़ा. केतकी, गुलाब , जूही बोल वाले इस गीत को शुरू में उन्होंने गाने से मना कर दिया था.

शास्त्रीय संगीत में उनकी पारंगता के साथ ही उनकी आवाज में एक ऐसी अनोखी कशिश थी कि आज तक उनकी आवाज को कोई कापी करने का साहस नहीं जुटा सका.

यह मन्ना डे की विनम्रता ही थी कि उन्होंने बतौर गायक उनकी प्रतिभा को पहचानने का श्रेय संगीतकार शंकर जयकिशन की जोड़ी को दिया. डे ने शोमैन राजकपूर की आवारा, श्री 420 और चोरी चोरी फिल्मों के लिए गाया.

उन्होंने अपनी आत्मकथा मैमोयर्स कम अलाइव में लिखा है , मैं शंकरजी का खास तौर से ऋणी हूं. यदि उनकी सरपरस्ती नहीं होती तो जाहिर सी बात है कि मैं उन ऊचाइयों पर कभी नहीं पहुंच पाता जहां आज पहुंचा हूं. वह एक ऐसे शख्स थे जो जानते थे कि मुझसे कैसे अच्छा काम कराना है.

वास्तव में , वह पहले संगीत निदेशक थे जिन्होंने मेरी आवाज के साथ प्रयोग करने का साहस किया और मुझसे रोमांटिक गीत गवाये. मन्ना डे के कुछ सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में दिल का हाल सुने दिलवाला, प्यार हुआ इकरार हुआ , आजा सनम , ये रात भीगी भीगी , ऐ भाई जरा देख के चलो , कसमे वादे प्यार वफा और यारी है ईमान मेरा शामिल है.

मन्ना डे ने रफी , लता मंगेशकर, आशा भोंसले और किशोर कुमार के साथ कई गीत गये. उन्होंने अपने कई हिट गीत संगीतकार एस डी बर्मन, आर डी बर्मन, शंकर जयकिशन , अनिल बिस्वास, रोशन और सलील चौधरी, मदन मोहन तथा एन सी रामचंद्र के साथ दिए. उनकी आवाज ने न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी उनके चाहने वालों का एक हुजूम पैदा कर दिया जो उनकी लरजती आवाज के दीवाने थे. इसी के चलते उन्हें राष्ट्रीय गायक, पद्मश्री और पद्मभूषण जैसे सम्मानों से नवाजा गया.

मन्ना डे ने अपनी स्कूली शिक्षा कोलकाता के प्रसिद्ध स्काटिश चर्च कालेज और विद्यासागर कालेज से प्राप्त की थी. वह स्कूल के दिनों से ही गाते थे लेकिन जल्द ही उनके चाचा ने उन्हें संगीत की गंभीर रुप से शिक्षा देना शुरु कर दिया और वह अपने चाचा के साथ 1942 में मुंबई चले गए. वहां पहले उन्होंने अपने चाचा के साथ और बाद में सचिन देव बर्मन के साथ संगीत की बारिकियां सीखीं जिन्होंने उनकी प्रतिभा को सही मायने में पहचाना.

एक मई 1919 को पूर्ण चंद्र और महामाया डे के घर प्रबोध चंद्र डे के रुप में कोलकाता में पैदा हुए डे को उनके चाचा कृष्ण चंद्र डे ने प्रेरित किया जो खुद भी न्यू थियेटर कंपनी के ख्यातिनाम गायक और अभिनेता थे. मन्ना नाम उन्हें उनके इन्हीं चाचा ने दिया था और वह शुरु में बैरिस्टर बनना चाहते थे लेकिन अपने चाचा के प्रभाव में उन्होंने संगीत को कैरियर के रूप में अपनाने का फैसला किया.

डे ने केरल निवासी सुलोचना कुमारन से शादी की और उनकी दो बेटियां हुई. उनकी पत्नी का उनकी जिंदगी में बेहद महत्वपूर्ण रोल था और यही वजह थी कि जनवरी 2012 में सुलोचना की मृत्यु के बाद डे अपनी जिंदगी के अंतिम दिनों में एकदम उदासीन और एकांतवासी हो गए थे. वह बेंगलूर में अकेले रहते थे. डे के निधन से हिंदी फिल्म संगीत का एक अध्याय समाप्त हो गया.

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