-शिकोह अलबदर-
है अपना दिल तो आवारा…ना जाने किस पे आयेगा, ना तुम हमें जानो, ना हम तुम्हें जाने, मगर लगता है कुछ ऐसा मेरा हमदम मिल गया…,ना ये चांद होगा, ना तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे…, जैसे रोमांटिक गीतों को अपनी आवाज देने वाले हेमंत दा हमारे बीच तो नहीं है लेकिन उनकी यह मधुर आवाज हमें आज भी लुभाती है और उनकी याद दिला जाती है. उनकी आवाज आज भी हमें साठ के दशक के भारतीय सिनेमा जगत में वापस ले जाती है.
अपनी कल्पना की सृजनशीलता को अगर हम और मजबूत करें तो आज भी हमें भारतीय सिनेमा के ब्लैक एंड व्हाइट रूपहले परदे पर पार्शवगायक के रूप में वो दिख जाते हैं. हेमंत दा ने ना सिर्फ फिल्मी गीतों में अपनी आवाज दी बल्कि उन्होंने बतौर संगीतकार के रूप में भी अपने किरदार को बखूबी निभाया. साथ ही कई गीत भी लिखे. उनकी आवाज में बांग्ला और हिंदी भाषा में लगभग 2000 गीत रिकार्ड हैं. इंसाफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के….गीत में जहां वे एक बेहतरीन पार्श्व गायक की भूमिका में नजर आये वहीं आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं, झांकी हिंदुस्तान की, हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल कर और दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढ़ाल… जैसे गीतों को अपने संगीत से सजाया.
आज भी हर वर्ष हम राष्ट्रीय पर्व के दौरान इन गीतों को बजा कर गाहे-बगाहे उन्हें याद कर लेते हैं.हिंदी फिल्म जगत के इस नायाब हस्ती का जन्म 16 जून 1920 में बनारस में हुआ था. उन्होंने अपनी गंगा जमुनी तहजीब के साथ अपने जवानी के पलों को कोलकाता की गलियों में बिताया. बनारस से शुरू गायकी के इस सफर की शुरुआत का पहला पड़ाव कोलकाता था और फिर जब उन्होंने मुंबई का रूख किया तो गीत-संगीत के फिजा ने नयी करवट ली.
उन्हें कई फिल्मों के लिए एक साथ गायकी के लिए अवसर मिलने लगे. हालांकि यह वो वक्त था जब फिल्म जगत में कई नामी कलाकारों ने अपनी खास जगह बना रखी थी. इन सब के बीच हेमंत की गायकी का अंदाज उस दौर के गायकों से कुछ अलग था.हेमंत दा के कैरियर की शुरुआत यूं तो इंजीनियरिंग की पढ़ाई से प्रारंभ हुआ था लेकिन उनके रगों में गीत-संगीत ने उन्हें इससे अलग होने को मजबूर कर दिया. बंगाली संगीतकार शैलेस दासगुप्ता से जहां संगीत सीखने की प्रेरणा मिली वहीं उस्ताद फैय्याज खान से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली.
पार्श्व गायक के रूप में उन्होंने बांग्ला फिल्म नेमाई सन्यास से गायकी के कैरियर की शुरुआत की थी. इसके बाद उनकी आवाज का जादू ऐसा चला कि उन्हें लगातार गाने के अवसर मिलते रहे. महज तेरह साल की उम्र में हेमंत दा ने पहली बार ऑल इंडिया रेडियो में 1933 में अपनी गायकी प्रस्तुत की थी. हेमंत कुमार ने शुरूआती दौर में ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया के लिए गैर फिल्मी गीत गाते रहे. उस दौर में उनके दो गीत कितना दुख भुलाया तुमने और ओ प्रीत निभाने वाले काफी मशहूर हुए. हेमंत ने कई फिल्मों में अपनी आवाज दी. हालांकि हेमंत दा के गाये कुछ गाने बहुत अधिक प्रसिद्ध नहीं हुए. हेमंत ने अपना वैवाहिक जीवन बांग्ला फिल्मों की गायिका बेला मुखर्जी के साथ बिताया.
उन्होंने पहली बार 1944 में आयी हिंदी फिल्म इरादा में महान अभिनेता देव आनंद के लिए अपनी आवाज दी. फिल्म जल, सजा, अनारकली, शर्त जैसी कई फिल्मों में उन्होंने अपनी गायकी से संगीत प्रेमी के दिलों पा छा गये. खामोशी, अनुपमा ममता , प्यासा जैसी कई फिल्मों के लिए गीत लिखे और संगीत दिये.
फिल्म अनारकली का गीत जाग दर्द-ए-इश्क जाग, शर्त फिल्म का गाना देखो वो चांद छुपके आदि को अपने सुरो से सजाया. वहीं पहली बार नागिन फिल्म के लिए संगीत देने का काम किया. संगीतकार के रूप में शुरू की गयी इस पारी के शुरुआत में ही उन्हें बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला.
ये सिलसिला फिर नहीं ठहरा. इस सफर के दौरान उन्होंने कई फिल्मों में अपने संगीत दिये. हेमंत दा ने गुरु दत्त के फिल्मों में अपनी आवाज दी और उनकी आवाज का ऐसा जादू था कि गुरु दत्त ने अपनी फिल्म साहिब बीबी और गुलाम में हेमंत कुमार को ही मौका देना पसंद किया. हेमंत कुमार के संगीत से संवारे हुए जितनी भी फिल्में है उनमें फिल्म अनुपमा का खास मुकाम है. आज हेमंत दा तो हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी गहरी आवाज संगीत प्रमियों के बीच आज भी जिंदा है.