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भ्रष्टाचार की वही पुरानी कहानी सत्याग्रह

फिल्म: सत्याग्रह निर्देशक: प्रकाश झा निर्माता: प्रकाश झा और यूटीवी कलाकार: अमिताभ बच्चन, अजय देवगन,करीना कपूर,अर्जुनरामपाल और अमृता राव रेटिंग: तीन प्रकाश झा की सत्याग्रह अन्ना हजारे की सत्याग्रह से अलग है. यह बात भले ही फिल्मकार प्रकाश झा ने कही है लेकिन फिल्म देखने के बाद यह बात साफ हो जाती हैं कि निर्देशक […]

फिल्म: सत्याग्रह

निर्देशक: प्रकाश झा

निर्माता: प्रकाश झा और यूटीवी

कलाकार: अमिताभ बच्चन, अजय देवगन,करीना कपूर,अर्जुनरामपाल और अमृता राव

रेटिंग: तीन

प्रकाश झा की सत्याग्रह अन्ना हजारे की सत्याग्रह से अलग है. यह बात भले ही फिल्मकार प्रकाश झा ने कही है लेकिन फिल्म देखने के बाद यह बात साफ हो जाती हैं कि निर्देशक के दिमाग में कहीं न कहीं अन्ना हजारे का सत्याग्रह था. हां उसे थोड़े अलग तरह से जरुर निर्देशक ने प्रस्तुत करने की कोशिश की है शायद किसी तरह के विवाद से बचने के लिए वरना यह फिल्म बहुत हद तक अन्ना के सत्याग्रह की याद दिलाती है. जिस तरह से उनके अनशन का मंच था. वैसा मंच इस फिल्म में भी दिखता है. रामलीला मैदान का यहां भी जिक्र है. पुलिसिया कार्यवाही यहां भी है. यहां भी सोशल साइट्स का इस्तेमाल युवाओं को एकजुट करने केलिए किया गया है. मीडिया का सहारा प्रकाश झा की इस सत्याग्रह ने भी लिया है.

वैसे फिल्म की कहानी ईमानदार प्रिंसिपल द्वारका प्रसाद की है. जिनका इंजीनियर बेटा एक्सीडेंट में मारा जाता है. उसके मुआवजे के पैसों के लिए शुरु हुई जंग बाद में एक बहुत बड़े आंदोलन का रुप ले लेती है. जहां हर आम आदमी को न्याय देने की जंग शुरु हो जाती है. यह बात भी सामने आती है कि द्वारका प्रसाद के बेटे का एक्सीडेंट नहीं बल्कि उसकी हत्या हुई है.इसी के इर्द गिर्द फिल्म की कहानी बुनी गयी है. फिल्म की कहानी में यह बात भी उठायी गयी है कि मौजूदा दौर के नेता पैसे लगाकर चुनाव जीतते हैं इसलिए कुर्सी पा लेने के बाद उनका एकमात्र उद्धेश्य सिर्फ पैसे बनाना ही रह जाता है. सत्तारुढ़ पार्टी हो या विपक्ष सभी की मिलीभगत से देश को खोखला करने का भ्रष्ट तंत्र चल रहा है.

यह बातें सर्वविदित है. यही वजह है कि फिल्म की कहानी में ऐसा कुछ भी नहीं है. जिसे देखने के बाद युवा पीढ़ी कुछ सोचने या करने को मजबूर हो जाए. जो समाज में घट रहा है.उसी को प्रकाश जा ने अपने चित परिचित अंदाज में परोसा है. एक बार फिर भीड़ का इस्तेमाल बखूबी किया गया है. जिसके लिए वह जाने जाते हैं. यह फिल्म एक राजनीति और सामाजिक मुद्दा उठाती है. जिस कारण उनकी पिछली फिल्मों राजनीति, आरक्षण की यह फिल्म भी एक अगली कड़ी दिखती है. किरदारों को लुक भी बहुत हद तक राजनीति और आरक्षण की तरह की है. फिल्म की गति इंटरवल से पहले जरुरत से ज्यादा धीमी रही है. अभिनय के मामले में अमिताभ बच्चन और मनोज बाजपेयी बेहतरीन रहे हैं.

मनोज की संवाद अदाएगी याद रह जाती है. वहीं अमिताभ बच्चन अपने अभिनय से इस फिल्म को खास बनाते हैं. खासकर वह सीन जब वह माइक पर बोलने आते हैं मगर जिस तरह से वह मंच पर धाराशायी हो जाते हैं. उनके अभिनय की बानगी को दर्शाता है. अजय भी जंचे हैं. अजरुन रामपाल और अमृता राव ठीक रहे हां करीना कपूर जर्नालिस्ट के किरदार के साथ न्याय नहीं कर पायी है. उनके किरदार पर उनका ग्लैमर ज्यादा हावी रहा है. फिर चाहे उनका बॉडी लैग्वेंज को या बोलने का तरीका.जनता राज और रघुपति राघव गाने फिल्म की कहानी के साथ न्याय करते हैं. कुल मिलाकर यह एक साधारण फिल्म है. जो भ्रष्टाचार की पुरानी रटी रटायी कहानी को बयां कर रहा है. प्रकाश झा जैसे उम्दा निर्देशक हमेशा कुछ अलग कुछ नया करने की उम्मीद बांधते हैं,लेकिन यह फिल्म उस उम्मीद पर खरी नहीं उतरती है.

उर्मिला कोरी

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