मालिनी अवस्थी को भोजपुरी अकादमी का सांस्कृतिक राजदूत बनाये जाने पर हाल ही में विवाद खड़ा हो गया था. इस पर बिहार की प्रसिद्ध लोकगायिका शारदा सिन्हा ने प्रभात खबर को अपनी टिप्पणी भेजी है. पेश है उसकी दूसरी व अंतिम किस्त.
शारदा सिन्हा
कुछ दिनों बाद जब मालिनी अवस्थी को ब्रांड अंबेसडर बनाये जाने की सूचना आयी, तो फिर लोग मेरे नाम का हवाला देकर कहने लगे कि शारदा सिन्हा को क्यों नहीं बनाया गया. मुझसे पूछिए, तो मैं कहूंगी कि मालिनी एक अच्छी गायिका हैं, उनसे मेरे निजी ताल्लुकात हैं, मुझे दीदी कहती हैं, उनका ब्रांड अंबेसडर बनाने का अकादमी का फैसला था, इससे मुझे निजी तौर पर एक जरा भी बुरा नहीं लगा.
लेकिन, मैं तब हैरत में पड़ गयी, जब इस बाबत अकादमी की ओर से तर्क दिया गया कि शारदा सिन्हा तो मैथिली की गायिका हैं. साथ में यह भी कि अब उनमें ऊर्जा नहीं बची है, इसलिए अकादमी ने उन्हें नहीं पूछा. सच कहूं तो इस तरह के बयान से मैं थोड़े देर के लिए हतप्रभ रह गयी. मेरे अपने ही राज्य में, मुझे इस नजरिये से देखनेवाले लोग भी हैं, वे भी प्रबुद्घों की श्रेणी में आनेवाले लोग. यकीन नहीं कर पा रही थी. पूरा देश और दुनिया के दूसरे मुल्कों में फैले भारतीय मुझे या तो एक गायिका, लोक गायिका या अधिक-से-अधिक बिहार की लोक गायिका के तौर पर जानते हैं और उसी हिसाब से मान-सम्मान भी देते हैं.
मैथिली, भोजपुरी गायिका के तौर पर नहीं जानत़े मैं मैथिली मूल की हूं, लेकिन वर्षो में मैंने भोजपुरी को रग-रग में आत्मसात किया. उतनी ही शिद्दत से, उसी आत्मीयता स़े सिर्फ भोजपुरी ही नहीं, बिहार की ही दूसरी बोलियां मगही, बज्जिका से भी उसी तरह लगाव है. इन बोलियों के गीतों को भी ढूंढ कर निकाली, उसे गायी.
बचपन में रांची में रही थी, वहां नागपुरी गीत का चलन है, मंच पर अब भी नागपुरी गीत सुनाती हूं. इसकी परवाह नहीं करती कि स्नेता आनंदित हो रहे हैं या नहीं. मझे सुकून मिलता है, मैं अंदर से रसविभोर होती हूं. लेकिन, इतने वर्षो बाद, आज के समय में भी किसी ने यह कहा कि मैं मैथिली गायिका हूं, यह सुन कर मैं डर गयी हूं अंदर से. सोचने लगी हूं कि क्या जितनी उनमुक्तता, बेफिक्री से गाती रही हूं अब तक मंचों पर, वही उन्मुक्तता, बेफिक्री बरकरार रख पाऊंगी, जब ऐसे वाक्य मेरे कानों में टकरायेंगे.
वर्षो पहले जब मैं मैथिली के एक बड़े आयोजन में भोजपुरी गीत ‘जगदंबा घर में दियरा बार अईनी हे गीत गाना शुरू की थी, तो कुछ मैथिली भाषियों ने कहा था कि इसी गीत को आप मैथिली में क्यों नहीं गायीं. बाद में खुद के मेरे कई मैथिलीभाषी भाइयों ने यह प्रचारित करने की कोशिश की कि शारदा सिन्हा मैथिली होकर भोजपुरी गीत गाने में लगी हैं. मैथिली का घोरमट्ठा कर रही हैं. मैं सबकी बात सुनती रही, लेकिन किसी की बात की ओर ध्यान नहीं दिया. एक कान से सुन कर दूसरे कानों से निकालती रही हमेशा यही मानती रही कि मैं एक गायिका हूं, महज गायिका.
बिहारी हूं, इसलिए बिहारी लोकसंगीत मेरी रग-रग में है और उसमें मेरी रुचि है. मैं संगीत में भाषा लेकर कभी फर्क ही नहीं करती. राजस्थानी, नागपुरी, अवधि, सभी भाषाओं के गीत-संगीत की दिवानी हूं. लेकिन, इस बार जब किसी भोजपुरी ने ही मैथिली कह कर मुझे खारिज करने, उपेक्षित करने की कोशिश की, तो अजीब लग रहा है. मैं जानती हूं कि यह किसी व्यक्ति विशेष का सोच होगा, भोजपुरी समुदाय की नहीं.
लेकिन, आश्चर्य होता है कि इस बिहार में ऐसे लोग भी हैं, जो संस्कृति को इतने संकीर्ण दायरे में बांधने की कोशिश में ऊर्जा लगाये हुए हैं. वैसे तमाम लोगों को कुछ और तो नहीं, लेकिन इतना जरूर याद दिलाना चाहूंगी कि बिहार भाषायी विविधता के बावजूद उनमें जो एकापन हो, एकाकार होने की क्षमता है, उसे अलगाववादी नजरिये से अलग-अलग खाके में बांटने की कोशिश नहीं कीजिए़ सिर्फ बिहार ही नहीं, हिंदी इलाके की तमाम बोलियों में एक सामंजस्य है, उनमें भी फर्क कर हिंदी इलाके को और कमजोर करने की कोशिश नहीं कीजिए़
सभी की अपनी खासियतें हैं, अपनी खूबसूरती है, सभी की अपनी स्वतंत्र पहचान है, लेकिन सबमें एक-दूसरे से सामंजस्य बिठाने की साझी परंपरा भी है. सदियों से, पीढ़ियों स़े आखिरी में एक बात औऱ मुझे शारदा सिन्हा ही रहने दीजिए़ बिहारी मूल की एक गायिका भऱ इसी छोटी पहचान से मैं खुश हूं. मुझे अपनी सुविधा के लिए मैथिली, भोजपुरी में नहीं बांटिये, प्लीज़ और मुझे कभी किसी के मुकाबले लाने की कोशिश नहीं कीजियेगा. मैं न तो कभी मुकाबला में भरोसा रखती हूं, न उस राह की राही हूं. बतौर, कलाकार, बड़े कलाकारों की शोहबत और साथ गाने की आकांक्षी रही हूं, किसी से मुकाबले की ख्वाहिश कभी नहीं रही.
(लेखिका प्रसिद्ध लोकगायिका हैं.)