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महत्वपूर्ण फिल्म है मद्रास कैफे

कलाकार : जॉन अब्राहम, नरगिस फाकरी निर्देशक : शूजीत सरकार रेटिंग : 4 स्टार हाल के दौर में हिंदी फिल्मों में बनी फिल्म मद्रास कैफे हिम्मत से बनी एक मिसाल फिल्म है. शूजीत सरकार ने एक अहम मुद्दे पर एक विशेष और जरूरी फिल्म बनाई है. फिल्म देखने के बाद थियेटर से बाहर आने के […]

कलाकार : जॉन अब्राहम, नरगिस फाकरी

निर्देशक : शूजीत सरकार

रेटिंग : 4 स्टार

हाल के दौर में हिंदी फिल्मों में बनी फिल्म मद्रास कैफे हिम्मत से बनी एक मिसाल फिल्म है. शूजीत सरकार ने एक अहम मुद्दे पर एक विशेष और जरूरी फिल्म बनाई है. फिल्म देखने के बाद थियेटर से बाहर आने के बाद फिल्म समीक्षकों में चर्चा थी कि फिल्म नहीं चलेगी. लेकिन ऐसी फिल्मों के चलने या न चलने से अधिक जरूरी यह है कि चर्चा यह हो कि निर्देशक ने विषय क्या चुना है.

बिना किसी लाग लपेट के जिस तरह शूजीत ने पूरी करानी को दर्शाया है. अदभुत है. यह निर्देशक का रिसर्च दिखाता है. साथ ही उसकी स्पष्ट विजन भी. फिल्म की शुरुआत से ही वह स्पष्ट है कि यह कोई स्टारर फिल्म नहीं. जॉन अब्राहम किसी आम किरदार की तरह पहले शॉट में नजर आते हैं. तमिल मुद्दे को लेकर बनी यह अब तक की सबसे खास फिल्म है. जॉन या नरगिस फिल्म के किरदार लगे हैं. न कि स्टार. यह बतौर निर्माता जॉन की कामयाबी है कि उन्होंने ऐसे विषयों का चुनाव किया है. फिल्म वास्तविक घटना पर है. लेकिन उसे इस रूप में प्रस्तुत किया गया है कि इस पर कोई राजनैतिक बखैरा न उत्पन्न हो. हिंदी फिल्मों में रॉ एजेंट को भी प्राय: किसी लाजर्र देन लाइफ किरदारों में ही दिखाया जाता रहा है.

लेकिन इस फिल्म में रॉ एजेंट की वास्तविक तसवीर प्रस्तुत की है. इस फिल्म का रॉ एजेंट तो अपनी पत् नी से भी अपनी जिंदगी के बारे में कुछ नहीं बताता. शूजीत ने एक बड़ा निर्णय यह भी लिया है कि उन्होंने फिल्म में मुख्य किरदारों के अलावा सभी किरदारों का चुनाव बारीकी और सर्तकता से किया है. सिद्धार्थ बसु, पीयूष पांडेय, दिबांग जैसे कलाकारों को जो भी किरदार दिया गया है. उन्होंने उन किरदारों को बखूबी निभाया है.

इस फिल्म की खासियत है कि फिल्म ने अपेन सिस्टम की खामियों को न तो छुपाया है और न ही पक्षपात होकर कुछ भी दिखाया है. फिल्म में जिस तरह सिस्टम के दोष और उनकी मजबूरियों को दर्शाया गया है और जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री हत्याकांड को दर्शाया गया है. वह महत्वपूर्ण जानकारी देती है हमें. फिल्म में वास्तविक किरदारों के नाम काल्पनिक रखे गये हैं.

लेकिन फिर भी निर्देशक अपने उद्देश्य से नहीं भटका है. कोई गाना नहीं, कोई भी आयटम नंबर नहीं, बल्कि शूजीत हिंदी सिनेमा निर्देशकों को नयी सोच देते हैं कि बिना नाच गाने और ड्रामा या लाउड किरदारों के भी फिल्म को उद्देश्यपूर्ण बनाया जा सकता है. साथ ही दर्शकों को भी वह नयी सीख देते हैं कि उन्हें इस तरह की फिल्में देखनी कितनी जरूरी है. इसे हम केवल पॉलिटिकल ड्रामा फिल्म कह कर छोटा नहीं बना सकते. यह अपने विषय को लेकर एक गंभीर मुद्दे पर बनी एक स्पष्ट और सफल फिल्म है. हर भारतीय नागरिक को फिल्म देखनी ही चाहिए.

शूजीत ने विशेष कर जो लोकेशन और छोटे से छोटे किरदारों के चयन, उनके लुक और मेकअप पर जिस तरह सर्तकता बरती है. हिंदी फिल्मों में ऐसा कम ही देखा जाता है. शूजीत को, जॉन को और निर्माता शील कुमार और पूरी टीम को बधाई कि उन्होंने हिंदी सिनेमा में एक नयी सोच और नये अंदाज में एक महत्वपूर्ण फिल्म प्रस्तुत की है.

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