नयी दिल्ली : जाने माने निर्माता निर्देशक प्रकाश झा ने कहा कि उनकी आने वाली फिल्म ‘सत्याग्रह’ के रिलीज होने के समय का कुछ राज्यों में होने वाले चुनाव से कोई लेना देना नहीं है, उनका मकसद लोगों का मनोरंजन करना है और अगर फिल्म कोई सामाजिक बदलाव लाने में सफल होती है तब यह ‘बोनस’ होगा.झा कहा, ‘‘ यह कहना ठीक नहीं है कि उनकी फिल्म ऐसे समय में रिलीज हो रही है जब कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव है. चुनाव के समय से फिल्म का कोई लेना देना नहीं है.’’ प्रकाश झा से पूछा गया था कि उनकी फिल्म सत्याग्रह का पटकथा अन्ना हजारे और निर्भया आंदोलन से मिलते जुलते होने की बात कही जा रही है, साथ ही फिल्म ऐसे समय में रिलीज हो रही है जब कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘ बदलाव एक अनवरत एवं स्थायी प्रक्रिया है. फिल्में समाज का आइना होती हैं. हम इन घटनाओं में पात्र ढूंढते है और उसी को उकेरने का प्रयास करते हैं. इस फिल्म को किसी एक विषय से नहीं जोड़ा जा सकता है.’’झा ने कहा, ‘‘ इस फिल्म में एक पिता के पुत्र खोने की व्यक्तिगत व्यथा और एक पुत्र के पिता को पाने की चाहत के द्वन्द्व को दिखाया गया है. कैसे यह द्वन्द्व समाज को घर कर लेती है, समाज उससे कैसे जुड़ता है और यह आंदोलन का रुप लेता है. यही कहानी है.’’ उन्होंने कहा कि ‘अंत में सत्य की जीत होती है. यह बड़ी बात है, इसमें बड़ा दर्शन छिपा है. इस फिल्म में इसे रेखांकित किया गया है.
प्रकाश झा ने कहा, ‘‘ हिन्दुस्तान में एक बड़ा युवा वर्ग है. सत्याग्रह उनके साथ एक संवाद है, क्योंकि वे अपनी बात कहने के लिए कहीं एक हो जाते हैं. उन्हें किसी नेतृत्व की जरुरत नहीं है.’’उन्होंने कहा कि मिस्र, सीरिया, बांग्लादेश आदि देशों में जन आंदोलन इस बात का प्रमाण है. भारत इससे अलग नहीं है. यह पूछे जाने पर कि क्या वह अपनी फिल्मों के जरिये सामाजिक आंदोलन का मार्ग प्रशस्त करने का प्रयास कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि फिल्मों का मकसद मनोरंजन होता है, अगर इस दौरान समाज में कोई बदलाव लाने में सफल रहते हैं तो यह बोनस होगा.
फिल्म में अमिताभ बच्चन के किरदार के बारे में पूछे जाने पर झा ने कहा, ‘‘ अमिताभ बच्चन एक सेवानिवृत प्रिंसिपल हैं. छोटा का स्कूल चलाते हैं. उनकी मुलाकात कुछ लोगों से होती है जिनकी सोच अलग है, जो उन्हें अच्छा नहीं लगता है. बाद में कुछ तालमेल बैठता है. यहां व्यवस्था से जुड़ी परेशानियों को भी सामने आई हैं. और जब लोगों की बात व्यवस्था में नहीं सुनी जाती है तब आंदोलन होता हैं.’’ उन्होंने कहा कि फिल्म निर्माण के दौरान भैय्या (अमिताभ बच्चन)ने कई बार बाबूजी (हरिवंश राय बच्चन) की थिसिस की कुछ पंक्तियों को हमसे साझा किया, ‘‘ सत्य की आंखों में आंखे डालने के बाद चुप रहना मुश्किल है.’’झा ने कहा कि हम सत्याग्रह में इसी की तलाश करने का छोटा का प्रयास कर रहे हैं.