नयी दिल्ली : मुंबई के 1993 के बम विस्फोटों के मामले में पांच साल की कैद की सजा के खिलाफ सिनेअभिनेता संजय दत्त का आज अंतिम कानूनी विकल्प उस समय समाप्त हो गया जब उच्चतम न्यायालय ने उनकी सुधारात्मक याचिका खारिज कर दी.
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम, न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी, न्यायमूर्ति आर एम लोढा, न्यायमूर्ति और न्यायमूर्ति बी एस चौहान की सदस्यता वाली खंडपीठ ने संजय दत्त की सुधारात्मक याचिका को विचारयोग्य नहीं पाया और इसे खारिज कर दिया. संजय दत्त ने साढे तीन साल की शेष सजा भुगतने के लिये 16 मई को मुंबई की अदालत में समर्पण किया था. उन्हें शुरु में मुंबई की आर्थर रोड जेल रखा गया था लेकिन बाद में उन्हें पुणो की यरवदा जेल स्थानांतरित कर दिया गया. संजय दत्त अब तक 69 दिन जेल में गुजार चुके हैं.
शीर्ष अदालत ने 10 मई को संजय दत्त की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी. इस याचिका पर पांच साल की कैद की सजा देने के निर्णय पर पुनर्विचार का अनुरोध किया गया था. शीर्ष अदालत के निर्णय से प्रभावित पक्ष के पास राहत के लिये सुधारात्मक याचिका अंतिम कानूनी प्रक्रिया उपलब्ध है. सुधारात्मक याचिका पर सामान्यतया न्यायाधीशों के चैंबर में ही मूल निर्णय सुनाने वाले न्यायाधीशों के साथ दो या तीन वरिष्ठतम न्यायाधीश विचार करते हैं.
न्यायमूर्ति सदाशिवम और न्यायमर्ति बी एस चौहान की खंडपीठ ने 21 मार्च को गैरकानूनी तरीके से एके-56 राइफल और नौ एमएम की पिस्तौल रखने के जुर्म में संजय दत्त को दोषी ठहराने का निर्णय बरकरार रखा था लेकिन न्यायालय उनकी छह साल की सजा को घटाकर पांच साल कर दिया था. संजय दत्त यह निर्णय आने से पहले ही करीब डेढ़ साल जेल में बिता चुके थे. इसलिए उन्हें अभी साढ़े तीन साल जेल में गुजारने हैं. मुंबई में हुये इन विस्फोटों में 257 व्यक्ति मारे गये थे और सात सौ से अधिक जख्मी हो गये थे.