-अनुप्रिया अनंत-
फिल्म : भाग मिल्खा भाग
कलाकार : फरहान अख्तर, सोनम कपूर, प्रकाश राज, पवन मल्होत्रा, दलीप ताहिल, योगराज सिंह
निर्देशक : राकेश ओम प्रकाश मेहरा
रेटिंग : 4.5 स्टार
मिल्खा सिंह एक निर्देशक द्वारा मुद्दतों बाद शिद्दत से बनी फिल्म है. इसे आप किसी फैन की फिल्म नहीं कह सकते. यह निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा द्वारा भारतीय सिनेमा को दी गयी एक ट्रीब्यूट फिल्म है. राकेश ओम प्रकाश खुद को बॉलीवुड के निर्देशक नहीं मानते, चूंकि वे कम फिल्में बनाते हैं और लंबे अंतराल पर फिल्में बनाते हैं. अच्छा है कि वह बॉलीवुड निर्देशक नहीं, वरना हिंदी सिनेमा इतनी बेहतरीन फिल्म से अछूती रह जाती. मिल्खा सिंह पर आधारित इस फिल्म को केवल बायोपिक कह देना निर्देशक की मेहनत की अवहेलना और अनदेखी होगी. भाग मिल्खा भाग एक ऐसे सफर की कहानी है, जहां एक बच्चा अपने परिवार को खो देता है. लेकिन अपने परिवार से मिली सीख को वह सिख हमेशा अपने साथ लिये चलता है.
उसमें आग है. वह बचपन से अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है.सबसे पहले बात फिल्म के शीर्षक की , फिल्म का शीर्षक भाग मिल्खा भाग सिर्फ इसलिए नहीं रखा गया, चूंकि मिल्खा सिंह धावक थे और हम प्राय: एक खिलाड़ी को उसका हौसला बढ़ाने के लिए यही कहते हैं कि भाग और तेज भाग़ . यहां भाग मिल्खा भाग के पीछे मिल्खा सिंह की पूरी दर्द से भरी कहानी, अपनों को खोने की दास्तां नजर आती है. एक बच्चा अपने परिवार को खो चुका है, जान बचा कर वह भारत आता है. बहन पर हो रहे अत्याचारों पर वह आवाज उठाता है. फिर वह चोर बनता है. फिर प्रेमी, फिर प्रेम के लिए आर्मी का जवान. मिल्खा की जिंदगी से ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं. उसे अपनी प्रेमिका के साथ शादी करनी है.
बच्चे पैदा करना है. लेकिन प्रेम करना आसान है. हासिल करना नहीं. वह धावक बनता है क्योंकि उसे बस एक ग्लास दूध पीना है. वह खिलाड़ी बनता है, क्योंकि उसे इंडिया का ब्लेजर पहनना है. उसे पैसे चाहिए क्योंकि उसे बहन के कान के झूमके जो गिरवी रखे थे. उसे लौटाना है. राकेश ओम प्रकाश मेहरा कभी वर्तमान तो कभी फ्लैशबैक में जिस तरह हमें मिल्खा सिंह की कहानी सुनाते हैं और दिखाते हैं. हम मिल्खा के साथ उस स्क्रीन पर होनेवाले दर्द को महसूस करने लगते हैं. हम मिल्खा के साथ हो जाते हैं. मिल्खा हंसता है तो हम हंसते हैं. उसके दर्द से हमारे शरीर में भी कंपन होती है. अपनों की ही लाशों के ढेर पर वह खून से लथपथ बार बार फिसल रहा है.फिल्म का यह दृश्य दिल को दहलाने वाला है.
अपनों को खोने का दर्द क्या हो सकता है.यह सिर्फ वही समझ सकते हैं, जिसने इस दर्द को झेला है. राकेश फरहान के बचपन, फिर उसकी जवानी, उसकी बदमाशियां और फिर उसके जवान से विश्व स्तरीय धावक बनने की दास्तां एक ऐसे कहानी कार की तरह सुनाते हैं जैसे राकेश सामने बैठे हैं और हम पूरी शांति से उनकी कहानी सुन रहे हैं और साथ ही साथ देख रहे हैं. मिल्खा सिंह फ्लाइंग सिख कैसे बनते हैं, क्यों बनते हैं. इसकी पूरी दास्तां आप फिल्म में देख सकते हैं. वे हार कर भी सिकंदर हैं. क्यों हैं? इसके सारे सवाल आपको फिल्म में मिल जायेंगे. फिल्म में जो भी दृश्य फिल्माये गये हैं, वे वाकई हमें पुराने दौर के पाकिस्तान की सैर करा जाते हैं. निर्देशन के दृष्टिकोण से भी फिल्म विजुअली हाल के दौर में बनी फिल्मों में सबसे स्तरीय है. फिल्म की डिटेलिंग और सटीक संवादों के प्रयोग से इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि निर्देशक ने अपने होम वर्क पर कितनी कड़ी मेहनत की होगी. प्रसून के संवाद आपको कभी खूब हंसायेंगे तो कभी आपको खूब रुलायेंगे. मिल्खा सिंह की जीत के साथ आप महसूस करेंगे कि आपकी जीत है.
उनकी हार पर आप हार महसूस करेंगे. मिल्खा सिंह बहुत गुस्सैल थे. उनमें आग थी. लेकिन उन्होंने अपने आग की ताकत मैदान पर दिखायी. वे उस वक्त भी आक्रोशित नहीं हुए जब शेर सिंह राणा ईष्र्या से उन्हें हॉकी से पिट कर अपना रास्ता साफ करते हैं. वे खेल का जवाब खेल से देते हैं. खेल के मैदान पर होने वाल कटाक्ष का भी जवाब वह खुद खेल कर देते हैं. राकेश ओम प्रकाश ने फरहान को फिल्म में जिस तरह मिल्खा बनाया है. और फरहान ने जिस तरह मिल्खा का किरदार निभाया है. वह 100 प्रतिशत से भी ज्यादा तारीफ के काबिल हैं. फरहान जितने बेहतरीन निर्देशक हैं उससे कहीं अधिक एक्टर. उन्हें देखते हुए कहीं से नहीं लगता कि आप मेट्रो पोलिटियन सिटी में पले बढ़े एक हाइ क्लास सोसाइटी मेंटेन करनेवाले किसी सेलिब्रिटी की फिल्म देख रहे हैं. उन 3 घंटों के लिए फरहान फरहान नहीं मिल्खा हैं. वह राष्ट्रीय पुरस्कार समेत सभी पुरस्कार के हकदार हैं.
साथ ही साथ फिल्म में पवन मल्होत्रा ने जिस तरह अभिनय किया है, वह अतुलनीय हैं. वह बेहतरीन अभिनेता तो हैं ही. लेकिन फिल्म में वे जिस तरह मिल्खा सिंह के गुरु बनते हैं और अपना फर्ज निभाते हैं. वाकई किसी हुनर को ताज तभी मिलता है, अगर उनकी जिंदगी में मिल्खा सिंह के गुरुदेव की तरह ही कोई गुरु हो. जो मिल्खा को मिल्खा बनाता है. प्रकाश राज ने अपने सीमित दृश्यों में भी दिल को मोह लिया. दिव्या दत्ता ने मिल्खा की बहन के किरदार को सार्थकता से जिया है. वे फिल्म की तीसरी महत्वपूर्ण स्तंभ हैं. फिल्म के गाने बेफिजूल नहीं, बल्कि इंस्पेरेशनल और सिचुएशनल हैं. सोनम ने अपने स्पेशल अपीयरेंस में भी ध्यान खींचा है . एक दृश्य है, जहां मिल्खा हार जाता है.
क्योंकि उनके पैरों में पत्थर चुभ जाता है. लेकिन फिर भी सेलेक् शन कमिटी की नजर उन पर जाती है. उस वक्त मिल्खा के गुरु समझाते हैं कि हर बार यह जरूरी नहीं कि जो पत्थर तुमने चुभा है, वह इतना बड़ा हो कि लोगों की नजर में आ जाये, जो कड़ी मेहनत करती होगी. भाग मिल्खा भाग टीम वर्क है. छोटे किरदारों ने भी अपने किरदारों को सार्थकता से जिया है. योगराज सिंह ने भी एक गंभीर और मुक्ममल कोच की किरदार को सार्थकता से जिया है और सभी को प्रभावित किया है. फिल्म लंबी है. लेकिन दर्शकों से अपील है कि कृपया इस फिल्म में वक्त की अवधि को न जोड़ें. उस सफर को देखें और मिल्खा सिंह की जिंदगी को जीने की कोशिश करें. यकीन करें, आप थियेटर से बाहर निकलने के बाद मिल्खा को अपने जेहन में लेकर जायेंगे. जरूर देखें. सदी की बेहतरीन फिल्मों में से एक़