IIअनुप्रिया अनंत II
फिल्म : जेड प्लस
कलाकार : मोना सिंह , आदिल हुसैन , मुकेश तिवारी , संजय मिश्रा
निर्देशक : डॉ चंद्रप्रकाश दिवेदी
रेटिंग : 3.5 स्टार
एक आम आदमी यानी कॉमन मैन को जब वीआईपी बना दिया जाए तो एक आम आदमी भी कैसे बदलता है और कैसे उसकी जिंदगी में तबदीली आती है.जेड प्लस इस लिहाज से एक बेहद दिलचस्प कहानी है.फिल्म के पात्र काल्पनिक जरूर हैं. लेकिन वह वास्तविक लगते हैं. क्योंकि वह हम में से ही एक हैं.
एक हिंदी भाषी देश का प्रधानमंत्री उस देश की भाषा न बोलता है न समझता है. लेकिन फिर भी वह देश का प्रधानमंत्री है. चंद्रप्रकाश दिवेदी की फिल्म जेड प्लस के माध्यमसे सबके पहला करारा वॉर यही करते हैं. जेड प्लस एक आम पंचरवाले को प्रधानमंत्री द्वारा मिले जेड प्लस सिक्योरिटी की कहानी है. लेकिन यह सिर्फ एक किसी व्यक्ति विशेष की कहानी नहीं है. पंचरवाले असलम के माध्यम से निर्देशक ने आम आदमी की एक व्यथा को उजागर करने की कोशिश की है. फिल्म में दर्शाया गया है कि अगर भूल चूक भी प्रधानमंत्री से हुई है तो भरपाई आम आदमी को ही करनी है.
फिल्म में कई परतें हैं. ये परत जैसे जैसे खुलती हैं. राजनीति का घिनौना खेल स्पष्ट नजर आने लगता है. फिल्म में मुख्यमंत्री के सबसे करीबी एक संवाद में कहते हैं कि राजनीति पंचर की दुकान ही है.यहाँ किसी की हवा निकाली जाती है तो किसी का पंचर ठीक किया जाता है. निर्देशक ने व्यंगात्मक तरीके से कई चिट्ठों को खोलने की कोशिश की है, कैसे सत्ता में प्रमुखता से बैठे हुए मठाधीशों को दरअसल उनके मोहरे भी नचाते हैं. साथ ही किस तरह एक प्रधानमंत्री भी अपनी सरकार को बचाने के लिए पीपल वाले पीर के पास पहुँच सकते हैं. स्मृति ईरानी द्वारा एक ज्योतिष से हाथ दिखाने की बात पे हंगामा क्यों बरपा. इस फिल्म को देख कर उन प्रशंसकों को जवाब मिल जायेगा.
अपने देश की सरकार किस तरह अपने मतलब के लिए आम आदमी और आंतकवादी दोनों का सहारा लेती है. यह भी आप इस फिल्म में देखेंगे जो कि एक नया पहलूहै. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के सलाहकार क्या-क्या रवैये अपनाते हैं. इसे इस फिल्म में बखूबी से दर्शाया गया है. इसी शुक्रवार को रिलीज हुई फिल्म ऊँगली में नोटों के दम पर एक अंधे को भी ड्राइविंग लाइसेंस देना और प्रधानमंत्री का बिना असलम की बात सुने उसे जेड प्लस की सिक्योरिटी दे देना यह दर्शाता है कि दोष कहाँ है. जेड प्लस इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि वर्तमान में भी कई ऐसे लोगों को बेवजह सुख सुविधाओं से लैस किया जा रहा है. किस तरह आम आदमी मोहरा बनता है. किस तरह आम आदमी के पैसे पर ही राजनेता ऐशो-आराम की जिंदगी जीते हैं.
जेड प्लस एक आईओपनर फिल्म है. जिसमेंआपको फिल्म देखते हुए हंसी आती है. लेकिन बाद में जब आप अध्ययन करें तो एक गंभीर कहानी नजर आती है. फिल्म में हर किरदार देश के किरदार हैं. फिल्म में असलम की पत्नी कहती है कि गरीबी कोई पाप नहीं है. बीमारीनहीं है. वह हराम की कमाई को हाथ नहीं लगाएगी तो उन तमाम लोगों के मुँह पर एक जोरदार तमाचा जड़ता है जो गरीबों को पैसे के दम पर खरीदते हैं.
फिल्म में दो दोस्तों के बहाने कश्मीर के मुद्दे को भी अलग नजरिया दिया गया है. एक लड़की यहाँ कश्मीर है. दो दोस्त आपस में लड़ भीड़ गए हैं. जो कभी एक दूसरे के साथ स्कूटर पे घूमते थे. हिंदुस्तान और पाकिस्तान के कश्मीर मुद्दे पे उलझना दर्शाता है. इस फिल्म की खूबी फिल्म की कहानी और स्क्रिप्ट है. लेखक रामकुमार सिंह ने जिस कल्पना से पूरी कहानी रची है, वह सराहनीय है.
ऐसे लेखको की हिंदी सिनेमा की जरूरत है. जो एक साथ कहानी में मनोरंजन, ड्रामा, इमोशन और एक सोशल मेसेज भी दें. आदिल हसन ने असलम के किरदार को जिस तरह निभाया है, वह असलम ही लगे हैं.मोना सिंह एक सधी अभिनेत्री हैं और उन्हें और मौके मिलने चाहिए. मुकेश तिवारी और संजय मिश्रा जिस कहानी में होते हैं वे कहानी के जान होते हैं. वर्तमान परिपेक्ष्य को देखते हुए यह एक आवश्यक फिल्म है.