पणजी: हिंदी सिनेमा में ज्यादा कमायी और जल्दी मुनाफे की होड़ में यह व्यवसाय जल्द ही ध्वस्त हो जायेगा क्योंकि 100 करोड़ की कमाइ के चक्कर में बॉलीवुड की ज्यादा-से-ज्यादा फिल्में बहुत अधिक प्रिंट्स में रिलीज हो रही हैं. उक्त बातें शेखर कपूर ने कही.
‘ऐलिजाबेथ’ फेम निर्देशक 68 वर्षीय कपूर ने बताया कि 1987 में जब उन्होंने अपनी फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ को 350 प्रिंट में रिलीज किया था तब लोगों ने उन्हें ‘पागल’ कहा था. हालांकि फिल्म सुपरहिट रही थी. कपूर ने कहा, ‘‘मुझे याद है ‘मिस्टर इंडिया’ को 350 प्रिंट में रिलीज करने के लिए लोग मुझे पागल बुला रहे थे. उनका कहना था कि कोई फिल्म इतनी बडी संख्या में रिलीज नहीं होती और मैं सिर्फ पैसे बर्बाद कर रहा हूं.’’
‘एनएफडीसी फिल्म बाजार’ से इतर एक समूह को संबोधित करते हुए कपूर ने कहा, ‘‘लेकिन अब स्थिति बदल गयी है. फिल्म निर्माता जल्दी-से-जल्दी 100 करोड की कमाई के चक्कर में 4000-5000 प्रिंट रिलीज कर रहे हैं. इस ट्रेंड को देखते हुए मुङो लगता है कि हिन्दी सिनेमा का व्यवसाय विध्वंस की ओर जा रहा है.’’ इस सत्र में अतिथि वक्ता फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने कहा कि इससे क्षेत्रीय सिनेमा के व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘क्षेत्रीय सिनेमा कुछ बहुत अच्छी फिल्में बना रहा है. मराठी और तमिल सिनेमा में बॉलीवुड फिल्मों से ज्यादा बडी फिल्में बन रही हैं. लेकिन उन्हें बमुश्किल ही अच्छी ओपनिंग मिल पाती है और ऐसा हमारी फिल्मों के बडे सितारों तथा ज्यादा संख्या में उनके प्रिंट रिलीज होने की वजह से होता है. वे भारत में अपनी फिल्में रिलीज करने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते क्योंकि ज्यादातर लोग कमाई करने के लिए त्योहारों के मौसम में फिल्में रिलीज करते हैं. अगर वे रिलीज टालते भी हैं तो फिल्में पाइरेसी बाजार में आ जाती हैं.’’