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Film Review: चेहरे पर मुस्कान बिखेरती रानी मुखर्जी की ”हिचकी”

II उर्मिला कोरी II फ़िल्म- हिचकी निर्माता- यशराज निर्देशक- सिद्धार्थ पी मल्होत्रा कलाकार- रानी मुखर्जी, नीरज काबी,हर्ष मायर और अन्य रेटिंग- तीन रियल लोगों की ज़िंदगी की कहानियां रुपहले परदे पर ‘हिचकी’ इसी लीग की फ़िल्म है. यह फ़िल्म मोटिवेशनल स्पीकर और शिक्षक ब्रेड कोहेन की कहानी है जो टुरेट सिंड्रोम के ग्रसित होने के […]

II उर्मिला कोरी II

फ़िल्म- हिचकी

निर्माता- यशराज

निर्देशक- सिद्धार्थ पी मल्होत्रा

कलाकार- रानी मुखर्जी, नीरज काबी,हर्ष मायर और अन्य

रेटिंग- तीन

रियल लोगों की ज़िंदगी की कहानियां रुपहले परदे पर ‘हिचकी’ इसी लीग की फ़िल्म है. यह फ़िल्म मोटिवेशनल स्पीकर और शिक्षक ब्रेड कोहेन की कहानी है जो टुरेट सिंड्रोम के ग्रसित होने के बावजूद एक कामयाब टीचर बने. उनकी ज़िंदगी पर लिखी किताब पर एक अमेरिकन फ़िल्म बन चुकी है.

‘हिचकी’ इसका बॉलीवुड या कहे देशी रूपांतरण है. यहां ब्रैड की भूमिका में रानी मुखर्जी है. उनका किरदार नैना माथुर का है जो टुरेट सिंड्रोम से ग्रसित है. उसे बोलने में बीच बीच में तकलीफ होती है. उस दौरान वह अजीब अजीब आवाज़ें निकालती है. गर्दन को बार बार झटकती है.

नैना माथुर इस सिण्ड्रोम की वजह से उसे 12 स्कूलों से बचपन में निकाल दिया गया. उसके खुद के पिता को उस पर शर्म महसूस होती है. अब वह जब खुद टीचर बनना चाहती है तो उसके लिए ये आसान नहीं है. 18 स्कूल उसे रिजेक्ट कर चुके हैं. उसे किसी तरह उसी स्कूल में नौकरी मिल जाती है जहां से वह पढ़ी है लेकिन उसे स्टूडेंट के तौर पर 14 ऐसे बच्चे मिले हैं जो गरीब बस्ती से हैं.

राइट टू एजुकेशन के तहत वह इस बड़ी स्कूल में आ तो गए हैं लेकिन स्कूल मैनेजमेंट और एलीट हाई क्लास बच्चे उन्हें अपनाने को तैयार नहीं है. जिससे वह बच्चे भी बगावत पर उतर आए हैं. वह दूसरे टीचर की तरह नैना को भी भगा देना चाहते हैं लेकिन नैना आसानी से हार मानने वालों में से नहीं है.

तमाम अड़चनों के बावजूद नैना खुद को और उन बच्चों को मैनेजमेंट के सामने लायक साबित करके दिखाती है।कैसे इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी. सबसे पहले फ़िल्म की पूरी टीम की इसलिए तारीफ करनी होगी कि उन्होंने टुरेट सिंड्रोम नामक बीमारी से हम सभी का परिचय करवाया.

फ़िल्म इस बात पर प्रकाश डालती है कि दिल से टुरेट सिंड्रोम या किसी भी सिंड्रोम का शिकार होना सबसे ज़्यादा भयानक है. यह फ़िल्म शिक्षा व्यवस्था पर बहुत सधे ढंग से सवाल उठाती है. जो अब तक सिर्फ अच्छे और बुरे स्टूडेंट की बात करता रहा है. यह फ़िल्म इस बात पर महत्व देती है कि टीचर अच्छे और बुरे होते हैं स्टूडेंट नहीं.

फ़िल्म की कहानी में नयापन नहीं है अंडरडॉग के विनर बनने की कहानी कई बार इसी अंदाज में आ चुकी है. पटकथा पर और काम करने की ज़रूरत महसूस होती है. क्लाइमेक्स बहुत ही सपाट रह गया है. फ़िल्म का ट्रीटमेंट और अभिनय फ़िल्म से आपको बांधे ज़रूर रखता है. रानी मुखर्जी और बच्चों की बॉन्डिंग वाले दृश्य अच्छे बन पड़े हैं.

अभिनय की बात करें तो यह फ़िल्म रानी मुखर्जी की फ़िल्म है और उन्होंने शानदार परफॉरमेंस दी है. उनकी बॉडी लैंग्वेज से लेकर बात करने का तरीका सबकुछ खास है. नीरज काबी का काम अच्छा है. सचिन सुप्रिया की जोड़ी एक अरसे बाद फ़िल्म में दिखी है लेकिन उनके हिस्से चंद दृश्य ही आये हैं. फ़िल्म में नज़र आए सभी बच्चों का काम शानदार है.सभी अपने अपने किरदार के बहुत करीब दिखे.

फ़िल्म के संवाद कहानी को प्रभावी बनाते हैं. गीत संगीत कहानी के अनुरूप है. कुलमिलाकर आम बॉलीवुड फिल्मों से इतर यह फ़िल्म रानी और युवा कलाकारों के बेहतरीन अभिनय के लिए देखी जा सकती है.

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