नयी दिल्ली: कवि और गीतकार गुलजार का मानना है कि भारतीय साहित्य बहुत समृद्ध है तथा निदेशकों को उसे फिल्म या टीवी सीरीज में ढालने के दौरान बेहद सावधान रहना चाहिए तथा उसमें अनावश्यक मनोरंजन का पुट नहीं डालना चाहिए.
इस साल दादासाहब फाल्के पुरस्कार के लिए चुने गए 79 वर्षीय निर्देशक सुविख्यात भारतीय लेखकों की कृतियां बडे और छोटे पर्दे के लिए ढाल चुके हैं.गुलजार ने आज यहां एक कार्यक्रम में कहा कि साहित्य सुधारक नहीं हो सकता, वह बस अतीत के युग की याद दिला सकता है या उसे रिकार्ड कर सकता है. उन्होंने कहा, ‘‘ज्ञान अर्जित करने के लिए आज कई माध्यम हैं. आज के युवा हर चीज गूगल पर अंगुलियों पर ढूढ लेते हैं. लेकिन साहित्य बहुत महत्वपूर्ण है और मेरा लक्ष्य उन्हें उसके प्रति सरल तरीके से प्रोत्साहित करना है. ’’
गुलजार ने कहा, ‘‘श्याम बेनेगल की फिल्में उसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं. उनकी फिल्में दर्शकों को अपने साथ जोड लेती है और उनका मनोरंजन करती हैं लेकिन उनमें गानों और नृत्य का अनावश्यक डोज नहीं होता.’’