मुंबई:’लक्ष्मी’ समाज को आईना दिखाती एक फिल्म है. कई सच्ची घटनाओं से यह फिल्म प्रेरित है. समाज में देह व्यापार के धंधे को दर्शाती यह फिल्म दर्शकों को भा रही है. हैदराबाद के एक छोटे-से गांव में रहने वाली लक्ष्मी के इर्द-गिर्द फिल्म की कहानी घूमती है. लक्ष्मी 14 साल की नाबालिग लड़की को पिता के द्वारा चंद रुपयों के लिए एक महिला को बेचाने के बाद कहानी शुरु होती है. महिला ने मुनाफे के लिए उसे दलाल के हाथों सौंप देती है.
फिर लक्ष्मी कोठे पर पहुंच जाती है उसके साथ बार-बार बलात्कार हुआ, ढेरों जुल्म हुए मगर वो लड़की एक एनजीओ की सहायता से स्टिंग ऑपरेशन करवाकर उनकी कैद से निकलती है और पहुंचती है अदालत तक. इस फिल्म में मोनाली ठाकुर ने 14 साल की लक्ष्मी का किरदार बखूबी निभाया है. कोठे की मालकिन के रोल में शेफाली शाह ने अच्छा अभिनय किया है. दलाल के रोल में फिल्म के निर्देशक नागेश कुकनूर भी जमे हैं. ये फिल्म नागेश की स्टाइल की है, जिसमें कहानी कहने का तरीका बड़ा सरल है. फिल्म को प्रमोट किया गया लक्ष्मी की लड़ाई बताकर, लेकिन लक्ष्मी की लड़ाई कम और उस पर अत्याचार ज्यादा दिखाया गया, जिसे हम कई बार पर्दे पर देख चुके हैं. फिल्म में गाली-गलौच बहुत ज्यादा हैं.
इस फिल्म में अगर इतनी गालियां न होती तो शायद फैमिली ऑडियंस भी सिनेमाघरों का रूख कर सकती थी. फिल्म के एंड टाइटल में दिखाया गया है कि लक्ष्मी का केस आंध्र प्रदेश का पहला ऐसा मुकदमा था, जिसमें दोषियों को सजा मिली. लक्ष्मी न सिर्फ कहानी है, देह व्यापार की सच्चाई की बल्कि एक साहसी लड़की की लड़ाई है, जो बुलंद होकर देह व्यापार के खिलाफ अपनी आवाज उठाती है. फिल्म में इंटरटेनमेंट वैल्यू न के बराबर है, मगर एक संदेश है, जो समाज को झकझोरता है.