वाशिंगटन : अमेरिका में बैंकिंग क्षेत्र की दिग्गज कंपनी जेपी मॉर्गन पर रिकॉर्ड स्तर पर लगभग 80 हजार करोड़ रुपये (13 अरब डॉलर) का जुर्माना लगाया गया है. अमेरिकी मीडिया में आयी खबरों के मुताबिक गिरवी के आधार वाली प्रतिभूतियों के मामले की जांच के बाद जेपी मॉर्गन पर जुर्माना लगाया गया है. अमेरिकी न्याय विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच हुई बातचीत के बाद इस पर सहमति बनी.
कंपनी पर ज्यादा मूल्य वाली गिरवी आधारित प्रतिभूतियों की बिक्रीका आरोप लगा था, जिसके चलते ऐसा माना जाता है कि वर्ष 2007 में बैंकिंग तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त होने की कगार पर पहुंच गया. पिछले महीने, लंदन व्हेल घोटाला मामले में जेपी मॉर्गन पर करीब 61 अरब रु पये का जुर्माना लगा था. पूर्व कर्मचारी ब्रूनो इकिसल ने वित्त बाजार पर बड़ा दावं लगाते हुए ऐसी खरीद-फरोख्त की, जिससे ऐसे घोटाले की स्थिति बन गयी.
जोखिमपूर्ण संपत्ति: वॉलस्ट्रीट जर्नल ने इस फैसले से अवगत अधिकारियों का हवाला देते हुए कहा कि जेपी मॉर्गन को जुर्माने की यह भारी रकम चुकानी होगी. शुक्र वार को जेपी मॉर्गन के वकीलों और अमेरिका के अटॉर्नी जनरल एरिक होल्डर तथा उनके सहयोगी टोनी वेस्ट के बीच हुई बातचीत के बाद न्याय विभाग ने ऐसा फैसला किया.
सबसे बड़ा जुर्माना
इस पर न्याय विभाग और न ही बैंक ने कोई टिप्पणी की है. अगर इस बात की पुष्टि हो जाती है तो यह किसी अमेरिकी कंपनी द्वारा सेटेलमेंट के तौर पर चुकायी गयी सबसे बड़ी रकम होगी. पर करीब 7 खरब 95 अरब रु पये की जुर्माने की इस रकम में 5 खरब 51 अरब रु पये बतौर जुर्माना शामिल है, जबकि 2 खरब 44 अरब रु पये की राशि संघर्ष कर रहे घर के मालिकों को राहत देने के लिए दी जायेगी. वित्तीय संकट के दौर में कई निवेश बैंकों ने बाजार में गिरवी आधारित प्रतिभूतियों की पेशकश की थी.
मीडिया की प्रतिक्रिया
वॉल स्ट्रीट : अमेरिका में 2007 में आर्थिक संकट का कहर महसूस होने लगा था. जेपी मोर्गन बैंक के लिए यह बड़ी आफत है.
न्यूयॉर्कटाइम्स : यह निवेश बैंक भी इस पर लगभग सहमति देने के कगार पर पहुंच रहा था, लेकिन इसके अंतिम ब्योरे पर अब भी चर्चा की जा रही है.
यह भी जानें
नहीं चुकाया 121.8 करोड़ का जुर्माना
नयी दिल्ली : भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एक संसदीय समिति को बताया है कि देश की आपराधिक न्यायिक प्रणाली से संबंधित ‘विलंब’ की वजह से उसके द्वारा डिफाल्टरों के खिलाफ शुरू की गयी मुकदमे की कार्रवाई के प्रभावी नतीजे सामने नहीं आये हैं. बाजार नियामक ने कहा है कि चूककर्ताओं या डिफाल्टरों ने मार्च, 2011 से जून, 2013 के दौरान उन पर लगाया गया 121 करोड़ का जुर्माना नहीं चुकाया है. सेबी कानून के प्रावधानों के तहत संपत्ति कुर्क करने व मौद्रिक जुर्माना वसूलने संबंधी के अधिकार के बारे में उसने कहा कि मौजूदा प्रावधानों के तहत डिफाल्टरों द्वारा जुर्माना नहीं चुकाने की स्थिति में नियामक सिर्फ मुकदमे की कार्रवाई ही कर सकता है.
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