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मोदी सरकार ने अमेरिका के दावे को किया खारिज, कहा-WTO के नियमों के अनुरूप है भारत का आयात शुल्क

नयी दिल्ली : भारत ने उच्च दर से आयात शुल्क लगाने के अमेरिका के दावे को खारिज कर दिया है. भारत ने मंगलवार को कहा कि उसका आयात शुल्क ऊंचा नहीं है और यह विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के अनुरूप है. वाणिज्य सचिव अनूप वाधवान ने यहां संवाददाताओं से कहा कि हम इससे […]

नयी दिल्ली : भारत ने उच्च दर से आयात शुल्क लगाने के अमेरिका के दावे को खारिज कर दिया है. भारत ने मंगलवार को कहा कि उसका आयात शुल्क ऊंचा नहीं है और यह विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के अनुरूप है. वाणिज्य सचिव अनूप वाधवान ने यहां संवाददाताओं से कहा कि हम इससे बिल्कुल सहमत नहीं हैं. हमारा शुल्क (आयात शुल्क) उसी दायरे में हैं, जो हम डब्ल्यूटीओ के तहत लगाने के हकदार हैं. उन्होंने कहा कि हमारा शुल्क अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं तथा कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं के अनुकूल है.

वाणिज्य सचिव ने कहा कि देश का आयात शुल्क डब्ल्यूटीओ प्रतिबद्धता के तहत उसके दायरे में है और औसतन उन दरों से कम है. आयातित वस्तुओं पर जो शुल्क लगाया जाता है, उसे लागू दर कहा जाता है और जिस सीमा तक शुल्क में वृद्धि की जा सकती है, उसे अधिकतम दर कहा जा सकता है. भारत का व्यापार भारांश औसत शुल्क 7.6 फीसदी है, जो ज्यादातर खुली अर्थव्यवस्थाओं तथा कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ तुलनीय है.

इसे भी देखें : अमेरिकी उत्पादों पर भारत ने बढ़ाया आयात शुल्क

वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, विकास के क्रम में कुछ मामलों में शुल्क ऊंचा हो सकता है, यह सभी अर्थव्यवस्थाओं पर लागू होता है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि भारत शुल्क के मामले में ‘राजा’ है और हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल जैसे उत्पादों पर काफी उच्च स्तर से शुल्क लगाता है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2017-18 में बढ़कर 74.5 अरब डॉलर पहुंच गया, जो 2016-17 में 64.5 अरब डॉलर था. भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष की स्थिति है. अमेरिका ने इस मुद्दे को भी उठाया है.

मंत्रालय ने यह भी कहा कि विभिन्न कदमों के कारण तेल एवं प्राकृतिक गैस एवं कोयले की अमेरिका से खरीद बढ़ी है, जिससे भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 2017 और 2018 में उल्लेखनीय रूप से कम हुआ है. बयान के अनुसार, यह कटौती 2018 में 4 अरब डॉलर से अधिक अनुमानित है. ऊर्जा तथा असैन्य विमानों की बढ़ती मांग जैसे कारणों से आने वाले साल में इसमें और कमी आयेगी.

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