नयी दिल्ली : सरकार दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत बोली लगाने के बाद पीछे हटने वालों को हतोत्साहित करने के लिए जल्द ही ‘प्रभावी कदम’ उठाएगी. दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता का लक्ष्य मुख्य रूप से एक निश्चित समयावधि में दबाव वाली संपत्ति से जुड़े मुद्दे को सुलझाना है. हालांकि, कुछ मौकों पर संस्थाएं स्वीकृत समाधान योजना को लागू करने में विफल रही हैं .
इस पृष्ठभूमि में कॉरपोरेट मामलों के सचिव इन्जेती श्रीनिवास ने मंगलवार को कहा कि संहिता के तहत बिना गंभीरता के बोली लगाने वालों को हतोत्साहित करने के लिए सरकार कुछ कदमों पर विचार कर रही है. उद्योग मंडल सीआईआई की ओर से आयोजित कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा, “कुछ मामलों में निपटान के एक साल या उससे अधिक समय बाद भी समाधान करने वाला योजना को लागू नहीं कर पाता है. हम ऐसी अर्जियों का क्या करें? निपटान में बहुत अधिक समय और संसाधन लगता है साथ ऋण शोधन अक्षमता पर भी बहुत अधिक लागत आती है.”
श्रीनिवास ने कहा कि ऐसे मामलों को लेकर विचार किया जा रहा है कि क्या पूरी निपटान प्रक्रिया का व्यय ऐसे आवेदकों पर ही डाल देना चाहिए या कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू करनी चाहिए या उन्हें फिर से समाधान की अर्जी डालने के लिए प्रतिबंधित किया जाना चाहिए. अधिकारी ने कहा, “ये सारे सवाल हैं और इनके जवाब स्पष्ट होने चाहिए. मुझे लगता है कि सरकार ऐसे लोगों को हतोत्साहित करने के लिए प्रभावी कदम उठाएगी, जो हल्केपन में बोली लगाते हैं और फिर पीछे हट जाते हैं.”
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