नयी दिल्ली : अगर कोई आपसे पूछे कि कांचीपुरम की रेशमी साड़ी, अल्फांसो आम, नागपुर की नारंगी और कोल्हापुरी चप्पल में क्या समानता है, तो जवाब देना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह सभी उत्पाद उन 326 भारतीय उत्पादों में शामिल हैं, जिन्हें उनकी भौगोलिक पहचान मिल चुकी है. सरकार की ओर से यह भौगोलिक पहचान संकेतक बौद्धिक संपदा अधिकार संवर्द्धन एवं प्रबंधन प्रकोष्ठ (सीपम) देता है. सीपम औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग (डीआईपीपी) के अंतर्गत आता है.
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प्रकोष्ठ ने एक ट्वीट में बताया कि भौगोलिक पहचान पंजीयक ने एक और कीर्तिमान स्थापित किया है. विभिन्न श्रेणियों में अब तक कुल 326 उत्पादों को उनकी भौगोलिक पहचान से जोड़ा जा चुका है. इसमें 14 विदेशी भौगोलिक संकेतक रखने वाले उत्पाद शामिल हैं. किसी उत्पाद की भौगोलिक पहचान, उसकी गुणवत्ता, विशिष्टता और उसकी उत्पत्ति की विशिष्ट जगह की पहचान कराती है. जिस उत्पाद को यह संकेतक मिलता है, तो कोई और कंपनी या व्यक्ति उस नाम से दूसरे किसी उत्पाद को नहीं बेच सकता है.
यह संकेतक 10 साल की अवधि के लिए होता है, जिसका बाद में नवीनीकरण कराया जा सकता है. साथ ही, इससे किसी उत्पाद को उसकी विशिष्टता बनाये रखने के लिए कानूनी संरक्षण भी मिलता है. इन उत्पादों में बासमती चावल, दार्जिलिंग चाय, चंदेरी कपड़ा, मैसुरू रेशम, कुल्लू की शॉल, कांगड़ा चाय, तंजौर की चित्रकला, इलाहाबादी सुरखा (अमरूद की किस्म), फरुखाबादी छापा, लखनवी जरदोजी और कश्मीरी अखरोट की लकड़ी पर नक्काशी शामिल हैं.
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