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Job सर्च करने के बजाय Startup की ज्यादा चाहत रखते हैं आज के बेरोजगार तुर्क

नयी दिल्लीः देश में बेरोजगारों की संख्या में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है, मगर इस बीच एक तथ्य यह भी सामने आया है कि बेरोजगार तुर्कों की फौज नौकरियों की तलाश करने में अधिक रुचि नहीं दिखा रही है. वजह यह है कि देश के ज्यादातर बेराजगारों में नौकरियों की चाहत नहीं है, बल्कि वे […]

नयी दिल्लीः देश में बेरोजगारों की संख्या में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है, मगर इस बीच एक तथ्य यह भी सामने आया है कि बेरोजगार तुर्कों की फौज नौकरियों की तलाश करने में अधिक रुचि नहीं दिखा रही है. वजह यह है कि देश के ज्यादातर बेराजगारों में नौकरियों की चाहत नहीं है, बल्कि वे खुद का कारोबार खड़ा करने के बाद स्टार्टअप की चाहत रखते हैं. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़े बताते हैं कि भारत के बेरोजगार युवाओं की फौज नौकरियों की तलाश नहीं कर रही है.

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जनवरी 2017 में देश में 40 करोड़ 84 लाख लोग बेरोजगार थे, लेकिन हैरत करने वाली बात यह है कि बेरोजगार और नौकरी तलाश रहे लोगों की तादाद 2 करोड़ 59 लाख थी. सात महीने बाद जुलाई के आखिर तक बेरोजगार लोगों की तादाद घटकर 40 करोड़ 54 लाख हो गयी है. वहीं, इस दौरान नौकरी ढूंढने वाले लोगों की तादाद भी घटकर 1 करोड़ 37 लाख हो गयी.

हालांकि, इस बीच सवाल यह भी खड़ा किया जा रहा है कि आखिर आज करोड़ों की संख्या में बेरोजगार युवा तुर्क नौकरियों की तलाश क्यों नहीं करते. इसके पीछे जो वजह बतायी जा रही है, वह यह है कि उनके अंदर एक भावना यह हो सकती है कि उनमें नौकरियों की चाहत नहीं है. वहीं, दूसरा कारण यह भी है कि वे नौकरी करने के बजाय खुद का बिजनेस खड़ा करना चाहते हैं. हालांकि, इन्हीं बेरोजगार तुर्कों को सहारा देने के लिए सरकार की आेर से आंत्रपेन्योरशिप को बढ़ावा देने के लिए कर्इ योजनाआें की शुरुआत भी की गयी है. दूसरी धारणा इन युवाआें में यह भी है कि वे किसी बाॅस के अधीन काम करने के बजाय खुद अपना बाॅस बनना चाहते हैं.

बेरोजगारों की फौज द्वारा नौकरी नहीं खोजे जाने के पीछे एक तीसरा कारण यह भी बताया जा रहा है कि वे अधिक से अधिक कार्यकुशलता हासिल करने के लिए आैर अधिक पढ़ार्इ करना चाहते हैं, ताकि आधुनिक श्रम बाजार के लिहाज से खुद को अतिकुशल कामगार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर सकें. इस समय बाजार में कुशल आैर अतिकुशल श्रमशक्ति की मांग अधिक है. विकसित देशों में लोग आर्थिक मंदी के वक्त खुद को आैर अधिक कुशल बनाने की जुगत में लग जाते हैं. संभव है कि भारत के बेरोजगार तुर्क भी खुद को विकसित देशों की श्रमशक्ति की तरह अत्यधिक कुशल बनाने की फिराक में लगे हों.

सीएमआईई में इस बात को लेकर भी चिंता जाहिर की गयी है कि जो युवा न नौकरी की तलाश कर रहे हैं आैर न ही आंत्रपेन्याेर बनने के लिए आगे की पढ़ार्इ कर रहे हैं, तो वे आखिर कर क्या रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि एेसे बेरोजगार तब कुछ करने की स्थिति में नहीं रहते. यह एक चिंता का विषय है. 30 सालों बाद प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में आने से पहले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं से 1 करोड़ नौकरियां पैदा करने का वादा किया था. अब सत्ता में आने के तीन साल बाद अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि अब तक कितनी नौकरियां पैदा हो पायी हैं.

सीएमआईई के सीईओ महेश व्यास बताते हैं कि बेरोजगारों की तादाद में कमी उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा में आयी है. ये कम विकसित राज्य है और इन्हीं राज्यों में ज्यादा युवा आबादी भी है. जिन बेरोजगार युवाओं ने जॉब की तलाश छोड़ दी है, उन्हें गैर-कानूनी गतिविधियों में आसानी से शामिल किया जा सकता है. ऐसे में आबादी की भिन्नता कहीं राक्षसी रूप न धारण कर ले. उन्होंने कहा कि इस मसले की गहन छानबीन और अच्छे से रिसर्च की जरूरत है.

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