जूही स्मिता
-वास्तविक दुनिया से दूर काल्पनिक दुनिया में जी रहे एडिक्ट बच्चे
पटना : जहां एक ओर तकनीक हमारे लिए नये-नये आयाम खोल रही है. वहीं, दूसरी ओर इसके नुकसान भी सामने आ रहे हैं. पहले बच्चों में मोबाइल गेम का एडिक्शन ज्यादा देखने को मिलता था लेकिन अब इनमें एप के जरिये वीडियो बनाने का चलन भी काफी बढ़ा है. लाइक्स और कमेंट्स के लिए वे हर जोखिम को उठाने के लिए तैयार हो जाते हैं.
शुरुआत में बच्चे इन्हें शौकिया तौर पर बनाते हैं, लेकिन धीरे-धीरे लोगों के कमेंट्स और लाइक्स के लिए इन्हें बनाने के एडिक्शन के शिकार हो जाते हैं. हाल ही में कुछ ऐसे मामले सामने आये हैं, जिसमें बच्चे शुरुआत में पढ़ाई में काफी बेहतर कर रहे थे. लेकिन, वीडियो बनाने की लत ने उन्हें पढ़ाई से दूर कर दिया. यही नहीं माता-पिता द्वारा रोकने पर आक्रोश में चीजों को तोड़ने-फोड़ने लगते हैं.
यही नहीं कई बार बच्चे साइबर क्राइम और साइबर बुलिंग के भी शिकार हो सकते हैं. जरूरत है पैरेंट्स को बच्चों के प्रति सजग रहने की और उनके हर एक्टिविटी पर नजर रखने की.
काल्पनिक दुनिया में जीने लगते हैं
टिक-टॉक जैसे अन्य एप हर उम्र और हर वर्ग के लोगों को काफी दिलचस्प और मजेदार लगते हैं. उन्हें लगता हैं कि उनके अंदर की प्रतिभा जो लोगों को सामने कभी आ नहीं पायी वो अब इन एप्स के जरिये उभर कर सामने आ रही है. ये एप्स उन्हें हुनर को एक प्लेटफॉर्म देते हैं और इस तरह काल्पनिक दुनिया में जीने की शुरुआत होती है. धीरे-धीरे इसकी लत इतनी ज्यादा लग जाती है कि बच्चे अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. यह वर्ग अपनी जिम्मेदारियों से दूर होने लगता है.
वीडियो बनाने का क्रेज अब महिलाओं में भी बढ़ा
कुछ मामले ऐसे भी आये हैं, जहां महिलाएं अपना वीडियों शेयर करने के लिए अपने बच्चों की देखभाल को दरकिनार कर देती है. पहले ज्यादातर महिलाएं खाली समय में कुछ नयी सीखा करती थी, लेकिन जब से टिक-टॉक वीडियो और अन्य से एप से वीडियो बनाने का चलन बढ़ा है, कई महिलाएं इसके प्रति ज्यादा आकर्षित हो रही हैं. महिला हेल्पलाइन में ऐसे मामले देखे जा रहे हैं. एक मामले में तो पति ने पत्नी द्वारा रात भर वीडियो बनाने की लत से बच्चों के पढ़ाई में हो रहे नुकसान को लेकर मदद मांगी. रात- भर वीडियो बनाती और सुबह तक सोती रहती, जिसकी वजह से बच्चे समय पर स्कूल नहीं जा पाते थे. रोकने पर झगड़ा करने लगती थी. मामले में अभी काउंसेलिंग जारी है.
केस 1: पटना के रहने वाले 11 साल को सोनू और 18 साल का विक्की (दोनों काल्पनिक नाम) छह महीने पहले अपने स्कूल में टॉपर हुआ करते थे. लेकिन, धीरे-धीरे उनकी परफॉर्मेंस में गिरावट आने लगी. माता-पिता को बिना बताये दोनों मोबाइल लेकर वीडियो बनाते रहते थे. रोकने पर गुस्सा करते और खुद को रूम में बंद कर लेते, खाना नहीं खाते और स्कूल भी नहीं जाते. अभी दोनों की काउंसेलिंग जारी है.
केस 2: कंकड़बाग की रहने वाली सीता(काल्पनिक नाम) स्कूल से आने के बाद मोबाइल लेकर कमरे में चली जाती थी. रात-रात भर कमरे की लाइट जलती रहती थी. पैरेंट्स को लगता की सीता पढ़ती हैं. एक दिन अचानक सीता की दोस्त ने उसकी मां को सीता द्वारा बनाये गये खुद के वीडियो दिखाया. जब उन्होंने सीता से पूछा तो उसने चीजों को तोड़ना शुरू कर दिया. मोबाइल लेने पर खुद को कमरे में बंद कर खुद को नुकसान पहुंचाने की बात करने लगी. अभी उसकी काउंसेलिंग जारी है.
आज बच्चे पढ़ने की उम्र में एप से वीडियो बनाने की लत लग गयी है. वे काल्पनिक दुनिया में जीने लगते हैं. उन्हें सही गलत की जानकारी नहीं होती है. ऐसे में उनके वीडियो पर मिलने वाले लाइक्स और कमेंट्स को काफी संजीदगी से लेते हैं. यही वजह है कि उनमें एग्रेशन काफी बढ़ा है और उनके रिजल्ट में भी गिरावट आयी है. जरूरी है स्कूल और पैरेंट्स को इस पर ध्यान देने की.
डॉ बिंदा सिंह, मनोचिकित्सक