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देवघर: चुनाव जीता तो खरीदी पुरानी एंबेसडर कार

बलराम मधुपुर/देवघर/गोड्डा : आज जहां चुनाव लड़ना काफी महंगा हो गया है. गरीब उम्मीदवार अब चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकते हैं. पहले जहां कम काफी कम खर्च में ही चुनाव हो जाता था. अब एक चुनाव लड़ने के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाना पड़ता है. ये कहना है अविभाजित बिहार के […]

बलराम
मधुपुर/देवघर/गोड्डा : आज जहां चुनाव लड़ना काफी महंगा हो गया है. गरीब उम्मीदवार अब चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकते हैं. पहले जहां कम काफी कम खर्च में ही चुनाव हो जाता था. अब एक चुनाव लड़ने के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाना पड़ता है.
ये कहना है अविभाजित बिहार के गोड्डा सांसद सलाउद्दीन अंसारी का. सादगी से 1985 का उपचुनाव लड़े और कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते. तब और अब के चुनावी परिदृश्य के बारे में पूर्व सांसद सलाउद्दीन कहते हैं कि 1985 में जब वे चुनाव लड़े तो अपनी जेब से एक रुपया भी खर्च नहीं किया. उपचुनाव जीते. चुनाव में जो भी रकम खर्च हुआ था, वह पार्टी स्तर से ही खर्च हुआ था. लेकिन वह खर्च भी बहुत मामूली था.
भाड़े का एंबेसडर कार से गये थे नामांकन करने : प्रो अंसारी ने बताया कि 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर समीनुद्दीन अंसारी दोबारा चुनाव जीते थे. लेकिन शपथ लेने से पूर्व ही उनका निधन हो गया था.
जिसके बाद 1985 के फरवरी माह में गोड्डा लोकसभा का उप चुनाव हुआ. उस समय वे मधुपुर कॉलेज में कॉमर्स विषय के शिक्षक के साथ ही मधुपुर नगर परिषद के चेयरमैन भी थे. अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए पहचाने जाने वाले प्रो अंसारी को उस दौरान कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया. श्री अंसारी बताते हैं कि प्रोफेसर रहने के बाद भी उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसा नहीं था.
लेकिन उस दौर के चुनाव में पैसे का बहुत महत्व नहीं था. टिकट मिलने पर वे सिर्फ भाड़े के दो एंबेसडर कार में समर्थकों के साथ गोड्डा जाकर नामांकन कर आये और चुनाव प्रचार में जुट गये. चुनाव खर्च में वाहन समेत जिन्हें भी पैसा दिया गया. वह पार्टी और कार्यकर्ताओं के स्तर पर ही हुआ. उन्होंने अपनी जेब से एक रुपया भी खर्च नहीं किया और भाजपा के जनार्दन यादव को हरा कर वे चुनाव जीते थे.
अब तो पार्टी फंड छोड़, अलग से दो करोड़ खर्च करने पड़ते हैं : प्रो सलाउद्दीन ने बताया कि जब वे गांव में प्रचार में जाते थे, तो ग्रामीण बड़े ही जोश के साथ स्वागत सत्कार करते थे. खाना भी सामूहिक रूप से कार्यकर्ताओं के साथ गांव में ही हो जाता था. खाना भी कार्यकर्ता ही खिलाते थे.
लेकिन आज का दौर बिल्कुल बदल चुका है. अब के चुनाव में ईमानदार और गरीब प्रत्याशियों के लिए कोई जगह नहीं है. अभी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कम से कम एक प्रत्याशी को पार्टी फंड छोड़ कर डेढ़ से दो करोड़ रुपये खर्च करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि खास कर 2004 के चुनाव से ही खर्च काफी बढ़ गया.
जो प्रत्येक पांच साल में महंगा होता जा रहा है. उन्होंने बताया कि उसके बाद भी वे 1989 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़े. लेकिन भाजपा के जनार्दन यादव से हार गये. इसके बाद वे 1996 में राजद की टिकट पर भी तीसरी बार गोड्डा लोकसभा चुनाव लड़े. जिसमें काफी कम मतों से भाजपा के जगदंबी यादव से चुनाव हार गये.
हालांकि इस चुनाव में उनका व्यक्तिगत खर्च भी काफी हुआ. बताते चले कि अपनी सादगी के लिए मशहूर प्रो अंसारी को कभी तामझाम रास नहीं आया. सांसद काल में भी वे अपने बॉडी गार्ड और वाहन के साथ चलना पसंद नहीं करते थे. चुनाव जीतने के बाद उन्होंने 27 हजार में एक सेकेंडहैंड एंबेसडर कार खरीदा था. जिसे कुछ साल बाद बेच दिया. उसके बाद उन्होंने आज तक न तो अपने साथ बॉडीगार्ड रखा और न ही चारपहिया वाहन रखा.

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